महाराष्ट्र के सियासी संकट के बीच कितनी अहम है राज्यपाल की भूमिका?
महाराष्ट्र सरकार में मंत्री और शिवसेना नेता एकनाथ शिंदे की बगावत के बाद राज्य में उपजे सियासी संकट के बीच अब राज्यपाल की भूमिका भी अहम हो गई है। यदि शिंदे बगावत कर सरकार के अल्पमत होने का दावा करते हैं तो राज्यपाल अपने संवैधानिक अधिकार के तहत मौजूदा सरकार को फ्लोर टेस्ट (बहुमत साबित करने) के लिए बुला सकते हैं। आइये जानते हैं कि महाराष्ट्र के मौजूदा हालातों में राज्यपाल की भूमिका कितनी अहम होगी।
महाराष्ट्र में क्यों खड़ा हुआ सियासी संकट?
बता दें विधान परिषद चुनाव के बाद शिंदे पार्टी के 10-12 विधायकों को लेकर गुवाहाटी पहुंच गए। वह काफी समय से मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और वरिष्ठ नेता संजय राउत से नाराज हैं। उन्हें लगता है कि उन्हें किनारे कर राउत का कद बढ़ाया जा रहा है। शिंदे ने गुरुवार को गुवाहाटी से 49 विधायकों के समर्थन का दावा किया है। इसमें शिवसेना के 42 और सात निर्दलीय विधायक हैं। उन्हें सरकार गिराने के लिए 37 विधायकों की ही जरूरत है।
राज्यपाल के पास है विधानसभा भंग करने का अधिकार
बता दें कि किसी भी राज्य में राज्यपाल को संविधान के अनुच्छेद 174 (2) (B) के तहत कैबिनेट की सहायता और सिफारिश के साथ विधानसभा को भंग करने का अधिकार है। हालांकि, संदेह की स्थिति में विधानसभा भंग का निर्णय राज्यपाल के विवेकाधिकार पर निर्भर करता है। इसी तरह विधानसभा सत्र के खत्म होने के बाद राज्यपाल अनुच्छेद 163 के तहत मिली शक्तियों के आधार पर सरकार को फ्लोर टेस्ट के लिए बुला सकता है।
विधानसभा अध्यक्ष को भी होता है फ्लोर टेस्ट के लिए बुलाने का अधिकार
सुप्रीम कोर्ट की ओर से साल 2020 में दिए गए फैसले के अनुसार, विधानसभा के चालू सत्र के दौरान यदि सरकार के अल्पमत में होने का दावा किया जाता है तो विधानसभा अध्यक्ष ही सरकार को फ्लोर टेस्ट के लिए बुला सकता है। चालू सत्र के दौरान अध्यक्ष की भूमिका अधिक महत्वपूर्ण होती है। बता दें सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला शिवराज सिंह चौहान और अन्य बनाम मध्य प्रदेश विधानसभा अध्यक्ष और अन्य के मामले की सुनवाई में दिया था।
राज्यपाल के अधिकारों पर क्या है सुप्रीम कोर्ट का मत
मामले की सुनवाई में जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और हेमंत गुप्ता की पीठ ने यह भी कहा था कि यदि राज्यपाल के पास उपलब्ध दस्तावेज या समग्री से स्पष्ट होता है कि मौजूदा सरकार के सदन में स्पष्ट बहुमत रखने या नहीं रखने की जांच की जरूरत है तो उन्हें फ्लोर टेस्ट का आदेश देने की शक्ति से वंचित नहीं किया जा सकता है। हालांकि, राज्यपाल यह आदेश विधानसभा सत्र के खत्म होने की स्थिति में ही जारी कर सकता है।
मध्य प्रदेश में भी राज्यपाल ने दिए थे फ्लोर टेस्ट के आदेश
बता दें कि राज्यपाल अनुच्छेद 175 (2) के तहत विश्वास मत के आंकलन के लिए सरकार को फ्लोर टेस्ट के लिए आमंत्रित कर सकते हैं। साल 2020 में मध्य प्रदेश के राज्यपाल को भी इसी तरह की स्थिति का सामना करना पड़ा था। उस दौरान ज्योतिरादित्य सिंधिया खेमे के विधायक भाजपा में शामिल हो गए और तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलनाथ ने राज्यपाल से विधानसभा भंग करने का आग्रह किया था। इसके बाद भी राज्यपाल ने फ्लोर टेस्ट कराया था।
विधायकों को अपने लिए फैसले करने का है अधिकार- सुप्रीम कोर्ट
उस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने बंदी विधायकों को वापस हासिल करने के किसी राजनीतिक दल के अधिकार के मामले पर कहा था कि विधायकों को खुद के लिए फैसले लेने का अधिकार है कि वह मौजूदा सरकार में विश्वास खो चुके हैं या नहीं और क्या उन्हें सदन का सदस्य बने रहना चाहिए। हालांकि, यदि उन्होंने दल बदल कानून का उल्लंघन किया है तो विधानसभा स्पीकर ही उन्हें अयोग्य करार दे सकते हैं। यह सदन की कार्यवाही का मामला है।