शिवसेना के 'तीर-कमान' पर दावा जताने के लिए एकनाथ शिंदे को क्या-क्या करना होगा?
महाराष्ट्र के सियासी संकट में एक के बाद एक नए मोड़ आते जा रहे हैं। शिवसेना से बगावत कर चुके बागियों ने एकनाथ शिंदे को अपना नेता चुन लिया है। कुछ जानकार मान रहे हैं कि शिंदे की नजर सरकार के साथ-साथ शिवसेना पर भी है और वो पार्टी के चुनाव चिन्ह पर अपना दावा ठोंकना चाहते हैं। आइये समझने की कोशिश करते हैं कि अगर शिंदे 'तीर-कमान' चाहते हैं तो उन्हें क्या-क्या करना पड़ेगा।
कहां ठोका जा सकता है चुनाव चिन्ह पर दावा?
चुनाव चिन्ह राजनीतिक पार्टियों की विशेष पहचान बन जाते हैं और उन पर दावों को लेकर कई पार्टियों के बीच विवाद हो चुके हैं। अगर किसी मान्यता प्राप्त दल में कोई फूट होती है तो उस पर अधिकार को लेकर चुनाव आयोग 'द इलेक्शन सिंबल्स (रिजर्वेशन एंड अलॉटमेंट) ऑर्डर, 1968' कानून के तहत फैसला करता है। ऐसा तब होता है, जब विधानसभा का सत्र न चल रहा हो। सत्र के दौरान यह अधिकार स्पीकर के पास चला जाता है।
आयोग कैसे तय करता है?
अगर चुनाव चिन्ह पर दावे का मामला चुनाव आयोग के पास पहुंचता है तो पार्टियों में वर्टिकल बंटवारे को देखा जाता है। इसका मतलब है कि पार्टियों के जनप्रतिनिधियों के साथ-साथ संगठन में पदाधिकारियों के समर्थन को भी देखा जाता है। पार्टियों के सांसदों, विधायकों और पदाधिकारियों की सूची निकालकर यह देखा जाता है कि उनमें से कितने लोगों का समर्थन किस गुट को है। कुछ स्थितियों में विधायकों और सांसदों के बहुमत के आधार पर फैसला लिया जाता है।
'तीर-कमान' के लिए शिंदे को क्या-क्या करना पड़ेगा?
अगर एकनाथ शिंदे शिवसेना के चुनाव चिन्ह 'तीर-कमान' पर दावा ठोंकना चाहते हैं तो उन्हें सांसद, विधायकों, पार्टी नेताओं, उपनेताओं, सचिवों, प्रवक्ताओं, मेयर, उप मेयर और विधानपरिषद के सदस्यों समेत बाकी पार्टी नेताओं में से आधे से अधिक का समर्थन चाहिए। भास्कर के अनुसार, अभी शिवसेना के पास 55 विधायक, 22 लोकसभा और राज्यसभा सांसद, 11 प्रवक्ता, 14 MLC, पांच-पांच मेयर और सचिव 19 नेता और 32 उपनेता हैं। इनके अलावा युवा सेना और महिला अघाड़ी जैसे संगठन भी हैं।
शिंदे के समर्थन में कौन-कौन?
गुवाहाटी में डेरा जमाए बैठे एकनाथ शिंदे के पास 42 शिवसेना विधायकों का समर्थन होने की बात कही जा रही है। कुछ सांसदों ने भी शिंदे के समर्थन में होने के संकेत दिए हैं। कुछ पार्षद भी अपना समर्थन शिंदे को दे चुके हैं।
अगर कोई भी खेमा बहुमत साबित न कर पाए तो?
अगर किसी पार्टी का कोई भी खेमा चुनाव चिन्ह पर दावे को लेकर बहुमत साबित नहीं कर पाता है तो चुनाव आयोग उस चिन्ह को फ्रीज कर लेता है। फिर दोनों गुटों को नए नामों के साथ पार्टी रजिस्टर करने को कह सकता है। इस तरह के दावों पर फैसला लेने के लिए चुनाव आयोग के लिए कोई समयसीमा तय नहीं है। कुछ स्थितियों में वह अस्थायी नाम या चिन्ह पर चुनाव लड़ने को भी कह सकता है।
पहले किन पार्टियों में ये विवाद हुए?
पिछले साल लोक जनशक्ति पार्टी में चिराग पासवान और उनके चाचा पशुपति कुमार पारस के बीच चुनाव चिन्ह को लेकर खींचतान हुई थी। 2017 में वीके शशिकला और ओ पन्नीरसेल्वम ने AIADMK के चुनाव चिन्ह दो पत्ती पर अपना दावा ठोंका तो इसे फ्रीज कर दिया गया था। उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के सत्ता में रहने के वक्त भी अखिलेश यादव और उनके पिता मुलायम सिंह यादव के बीच चुनाव चिन्ह को लेकर विवाद हुआ था।