आधार कार्ड और वोटर ID कार्ड को लिंक करने पर क्यों उठ रहे सवाल?

विपक्ष के वॉकआउट के बीच आधार कार्ड और वोटर ID को लिंक करने से संबंधित विधेयक मंगलवार को राज्यसभा से भी पारित हो गया। लोकसभा ने सोमवार को इस पर अपनी मुहर लगाई थी। सरकार के इस विधेयक पर कई तरह के सवाल उठ रहे हैं और कहा जा रहा है कि इसके कारण करोड़ों लोगों को अपना वोटिंग अधिकार खोना पड़ सकता है। ऐसा क्यों कहा जा रहा है और ये पूरा विवाद क्या है, आइए आपको बताते हैं।
चुनाव आयोग ने सबसे पहले मार्च, 2015 में अपने राष्ट्रीय मतदाता सूची शुद्धिकरण और प्रमाणीकरण कार्यक्रम के तहत आधार और वोटर ID को लिंक करना शुरू किया था। इसका उद्देश्य वोटर लिस्ट से डुप्लीकेट नामों की छंटनी करना था। हालांकि अगस्त, 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने आधार की संवैधानिकता पर सुनवाई करते हुए ऐसा करने पर रोक लगा दी। इसके बाद चुनाव आयोग ने सरकार ने इससे संबंधित चुनावी सुधार करने को कहा। मौजूदा विधेयक इन्हीं सुधारों के लिए है।
चुनाव कानून (संशोधन) विधेयक, 2021 में आधार कार्ड को वोटर ID कार्ड से जोड़ने का प्रावधान किया गया है। हालांकि ऐसा करना अनिवार्य नहीं होगा और लोग चाहें तो ऐसा करने से इनकार भी कर सकते हैं। इसके अलावा इसमें पहले एक की तुलना में अब साल में चार बार- 1 जनवरी, 1 अप्रैल, 1 जुलाई और 1 अक्टूबर- नए वोटर्स के रजिस्ट्रेशन का प्रावधान भी किया गया है। 'पत्नी' को बदल कर 'जीवनसाथी' कर दिया गया है।
विधेयक पर दो मुख्य वजहों से सवाल उठाए जा रहे हैं जिनमें से पहला करोड़ों लोगों का वोटिंग अधिकार छिनना है। AIMIM प्रमुख और हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने इस पर कहा कि आधार कार्ड में आठ प्रतिशत और वोटर कार्ड में तीन प्रतिशत गलतियां पाई जाती हैं और इन्हें जोड़ने से लाखों लोग अपना वोटिंग अधिकार खो देंगे। कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने आधार की मदद से गैर-नागरिकों के वोटिंग अधिकार प्राप्त करने की आशंका जताई।
आधार और वोटर ID को जोड़ने के प्रयासों के कारण लाखों लोगों का वोटिंग अधिकार छिनने का डर पूरी तरह निराधार नहीं है और 2018 में इसकी बानगी देखने को मिली थी। दरअसल, 2015 में सुप्रीम कोर्ट के रोक लगाने से पहले चुनाव आयोग लगभग 30 करोड़ वोटर कार्ड को आधार से जोड़ चुका था। इसके कारण 2018 विधानसभा चुनावों में तेलंगाना में 27 लाख और आंध्र में लगभग 20 लाख वोटर्स को अपना नाम वोटर लिस्ट से गायब मिला।
आधार और वोटर कार्ड को जोड़ने पर दूसरा मुख्य डर निजता के उल्लंघन को लेकर है, खासकर तब जब देश में अभी कोई भी डाटा संरक्षण कानून नहीं है। पहले भी 2019 में आंध्र और तेलंगाना में 7.8 करोड़ लोगों का आधार डाटा लीक हो चुका है। वोटर कार्ड से लिंक होने के बाद अगर ये डाटा किसी के हाथ लगता है तो इसका दुरुपयोग वोटर प्रोफाइलिंग, टारगेट कैंपेनिंग और चुनाव को प्रभावित करने के लिए किया जा सकता है।
सरकार ने कहा है कि फर्जी और डुप्लीकेट वोटर्स की छंटनी के लिए आधार और वोटर कार्ड को जोड़ा जा रहा है। उसने कहा कि निजता के जायज उल्लंघन से संंबंधित कानून बनाने के सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के तहत ये विधेयक लाया गया है।