मनमोहन सिंह 2004 में कैसे बने थे 'एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर?'
पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का निधन हो गया है। वे 2004 में प्रधानमंत्री बने थे। तब चुनावों से पहले ये माना जा रहा था कि अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृवत्व वाली मौजूदा राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) 'शाइनिंग इंडिया' के रथ पर सवार होकर सत्ता में वापसी करेगा, लेकिन संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA) को जीत मिली और एक चौंकाने वाले फैसले में मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बने। आइए उनके 'एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर' बनने की कहानी जानते हैं।
सबसे पहले 2004 के चुनावी नतीजे जानिए
1999 के लोकसभा चुनावों में NDA को जीत मिली थी। ये 1984 के बाद पहली बार था, जब किसी पार्टी या गठबंधन को पूर्ण बहुमत मिला था और वाजपेयी प्रधानमंत्री बने। 2004 के लोकसभा चुनावों से पहले 4 राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में भाजपा की जीत और राजनीतिक विश्लेषकों के अनुमानों से उत्साहित वाजपेयी ने समय से पहले ही लोकसभा चुनावों का ऐलान कर दिया। हालांकि, उन्हें हार का सामना करना पड़ा और UPA को सत्ता मिली।
सोनिया गांधी ने आगे किया मनमोहन का नाम
UPA की जीत के बाद ये तय माना जा रहा था कि सोनिया गांधी ही अगली प्रधानमंत्री बनेंगी। हालांकि, चौंकाने वाले फैसले में सोनिया ने अपनी 'अंतरात्मा की आवाज' का हवाला देते हुए प्रधानमंत्री के लिए मनमोहन सिंह का नाम आगे कर दिया। 22 मई, 2004 को सफेद कुर्ता-पजामा और नीली पगड़ी पहने 71 वर्षीय सिंह 14वें प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली। राष्ट्रपति भवन में आयोजित शपथ ग्रहण समारोह में वाजपेयी भी शामिल हुए।
सोनिया खुद क्यों नहीं बनीं प्रधानमंत्री?
दरअसल, सक्रिय राजनीति में आने के बाद से ही सोनिया का इटली से संबंध विवादित मुद्दा रहा है। 2004 में चुनावी नतीजों के बाद इस मुद्दे ने फिर तूल पकड़ा और सुषमा स्वराज और उमा भारती जैसे भाजपा नेताओं ने खूब हंगामा किया। सुषमा स्वराज ने तो ये तक कह दिया कि अगर सोनिया प्रधानमंत्री बनीं तो वे अपना सिर मुंडवा लेंगी। सोनिया के पद ठुकराने के पीछे इसे सबसे बड़ी वजह माना जाता है।
राहुल गांधी नहीं चाहते थे कि सोनिया प्रधानमंत्री बने
पूर्व विदेश मंत्री और कांग्रेस नेता नटवर सिंह ने अपनी आत्मकथा 'वन लाइफ इज नॉट इनफ' में चुनावी नतीजों के बाद सोनिया के निवास पर गांधी परिवार के बीच हुई एक चर्चा का जिक्र किया है। उन्होंने लिखा कि राहुल गांधी नहीं चाहते थे कि सोनिया प्रधानमंत्री बने। राहुल ने इसके पीछे अपने पिता राजीव गांधी और दादी इंदिरा गांधी की हत्या का हवाला देते हुए सुरक्षा को लेकर चिंता जताई थी।
बतौर प्रधानमंत्री कैसा रहा सिंह का कार्यकाल?
'एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर' होने के बावजूद, सिंह के 10 सालों के कार्यकाल में सूचना का अधिकार (RTI), महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MNREGA) और शिक्षा का अधिकार (RTE) जैसी परिवर्तनकारी कार्यक्रम शुरू हुए। 2008 में भारत-अमेरिका परमाणु समझौते को लेकर वामपंथी दलों ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया और उनकी सरकार को विश्वास मत का सामना करना पड़ा। प्रधानमंत्री रहने के बावजूद डॉक्टर सिंह कभी भी लोकसभा चुनाव नहीं जीत पाए।