कांग्रेस ने चुनाव नियमों में संशोधन के खिलाफ खटखटाया सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा
कांग्रेस ने केंद्र सरकार की ओर से गत रविवार (22 दिसंबर) को किए चुनाव नियमों में संशोधन के खिलाफ मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। कांग्रेस ने कोर्ट में दायर की याचिका में चुनाव संचालन नियम, 1961 संशोधनों को चुनौती देते हुए कहा है कि इससे चुनावी प्रक्रिया की निष्पक्षता तेजी से खत्म हो जाएगी। पार्टी नेता जयराम रमेश ने सोशल मीडिया के जरिए सुप्रीम कोर्ट का रुख करने की जानकारी दी है।
कांग्रेस नेता ने पोस्ट में क्या कहा?
कांग्रेस नेता जयराम ने एक्स पर लिखा, 'चुनाव नियम, 1961 के हाल के संशोधनों को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई है। चुनाव आयोग एक संवैधानिक निकाय है। इस पर स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने का दायित्व है। मगर एकतरफा और बिना सार्वजनिक परामर्श के कानून में इस तरह बेशर्मी से संशोधन करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। इससे निष्पक्ष चुनाव प्रक्रिया पर कई सवाल खड़े हो जाएंगे।'
तेजी से खत्म हो रही चुनावी प्रक्रिया की अखंडता- जयराम
जयराम ने आगे लिखा, 'यह विशेष रूप से तब सच है जब संशोधन आवश्यक जानकारी तक जनता की पहुंच को समाप्त कर देता है, जो चुनावी प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी और जवाबदेह बनाती है। वर्तमान में देश में चुनावी प्रक्रिया की अखंडता तेजी से खत्म हो रही है। उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट इसे बहाल करने में मदद करेगा।' बता दें कि कांग्रेस पार्टी इस संशोधन के खिलाफ है और उसके नेता लगातार इसके खिलाफ आवाज बुलंद कर रहे हैं।
केंद्र सरकार ने क्या किया है संशोधन?
कानून मंत्रालय ने चुनाव संचालन नियम, 1961 के नियम 93(2)(ए) में संशोधन किया है, ताकि सार्वजनिक निरीक्षण के लिए कागजातों या दस्तावेजों के प्रकार को प्रतिबंधित किया जा सके। अब चुनाव से संबंधित सभी दस्तावेज जनता के लिए उपलब्ध नहीं होंगे। नियमों में बदलाव से पहले सभी तरह के इलेक्ट्रॉनिक और कागजी दस्तावेज आम लोगों के लिए उपलब्ध रहते थे। हालांकि, नामांकन फॉर्म, चुनाव एजेंटों की नियुक्ति, परिणाम और चुनाव खाता विवरण जैसे दस्तावेज पहले की तरह उपलब्ध रहेंगे।
खड़ने भी उठा चुके हैं बदलाव पर सवाल
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे भी इस बदलाव पर सवाल उठा चुके हैं। उन्होंने कहा था कि चुनाव संचालन नियमों में संशोधन भारत के चुनाव आयोग की संस्थागत अखंडता को नष्ट करने की व्यवस्थित साजिश है। भाजपा ने पहले भारत के मुख्य न्यायाधीश को चयन समिति से हटा दिया था, जो चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति करती है और अब उसने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी चुनावी जानकारी को आम आदमी तक पहुंचने से रोकने का सहारा लिया है।