#NewsBytesExplainer: अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के अल्पसंख्यक दर्जे को लेकर क्या है पूरा विवाद?
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) के अल्पसंख्यक दर्जे को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने अहम फैसला दिया है। कोर्ट ने कहा कि AMU संविधान के अनुच्छेद 30 के तहत अल्पसंख्यक दर्जे की हकदार है। इसी के साथ कोर्ट ने 1967 में दिए गए अपने ही फैसले को पलट दिया है। अब 3 जजों की नई पीठ AMU को अल्पसंख्यक दर्जे देने या न देने का फैसला करेगी। आइए जानते हैं पूरा मामला क्या है।
सबसे पहले जानिए AMU का इतिहास
24 मई, 1875 को सर सैयद अहमद खान ने मुस्लिमों को आधुनिक शिक्षा देने के इरादे से एक मदरसा बनाया, जिसे मदरसतुलउलूम कहा जाता था। उस समय निजी विश्वविद्यालयों की अनुमति नहीं थी, इसलिए इसे स्कूल के रूप में शुरू किया गया। यही आगे चलकर मुस्लिम एंग्लो ओरिएंटल कॉलेज में बदल गया। 1920 में ब्रिटिश सरकार ने AMU अधिनियम लाकर इसे केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा दिया। AMU नाम से नई समिति बनाई गई, जिसे सभी संपत्ति और अधिकार सौंपे गए।
कैसे हुई विवाद की शुरुआत?
आजादी के बाद AMU अधिनियम को भारतीय संविधान के अनुरूप बनाने के लिए कुछ बदलाव किए गए। 1951 में AMU अधिनियम की धारा 23(1) में बदलाव किए गए। इससे गैर-मुस्लिमों को भी विश्वविद्यालय के सर्वोच्च शासी निकाय का सदस्य बनने की अनुमति मिल गई। इसके अलावा मुस्लिम छात्रों को अनिवार्य धार्मिक शिक्षा खत्म कर दी गई। इसके बाद 1965 में भी संशोधन के जरिए विश्वविद्यालय की सर्वोच्च शक्तियों को घटाकर बाकी विश्वविद्यालयों की तरह ही एक निकाय बनाया गया।
1967 में सुप्रीम कोर्ट ने क्या फैसला सुनाया था?
AMU अधिनियम में संशोधनों को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई। 1967 में कोर्ट की 5 जजों की पीठ ने AMU का अल्पसंख्यक दर्जा खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि जो संस्थान कानून के मुताबिक स्थापित किया गया है, वह अल्पसंख्यक संस्थान होने का दावा नहीं कर सकता। कोर्ट ने कहा कि AMU न तो मुस्लिम समुदाय द्वारा स्थापित किया गया और न ही इसका संचालन मुस्लिम समुदाय कर रहा था, बल्कि केंद्रीय अधिनियम के जरिए अस्तित्व में आया।
1981 में सरकार ने दिया अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का काफी विरोध हुआ। 1981 में सरकार ने AMU अधिनियम में बदलाव कर कहा कि "AMU मुसलमानों की शैक्षिक और सांस्कृतिक उन्नति को बढ़ावा देने के लिए मुसलमानों द्वारा स्थापित किया गया था।" इससे AMU को अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा मिल गया। हालांकि, 2005 में विश्वविद्यालय ने पोस्टग्रेजुएट चिकित्सा पाठ्यक्रमों में मुस्लिम छात्रों के लिए 50 प्रतिशत सीटें आरक्षित कीं तो इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इस नीति और 1981 के संशोधन को खारिज कर दिया।
हाई कोर्ट के फैसले को दी गई चुनौती
इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई। 2019 में यह मामला 7 जजों की पीठ को सौंपा गया। पीठ का काम यह तय करना था कि क्या 1967 में दिया गया फैसला दोबारा समीक्षा करने योग्य है या नहीं? इस बीच केंद्र सरकार ने AMU अधिनियम में 1981 में हुए संशोधनों को मानने से इनकार कर दिया। सरकार ने कहा कि इसे अल्पसंख्यकों की ओर से नहीं बनवाया गया था।
अब कोर्ट ने क्या फैसला सुनाया है?
सुप्रीम कोर्ट के 7 जजों की संविधान पीठ ने 4:3 के बहुमत से 1967 के अपने ही उस फैसले को रद्द कर दिया है, जिसमें कहा गया था कि AMU को अल्पसंख्यक संस्थान नहीं माना जा सकता, क्योंकि इसे केंद्रीय कानून के द्वारा स्थापित किया गया था। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि AMU को अल्पसंख्यक दर्जा दिए जाने पर फैसला 3 जजों की सामान्य पीठ ही करेगी।