धारा 377, समलैंगिकता और चुनावी बॉन्ड; इन ऐतिहासिक फैसलों के लिए याद किए जाएंगे जस्टिस चंद्रचूड़
भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ 10 नवंबर को सेवानिवृत्त हो रहे हैं। आज यानी 8 नवंबर को उनका आखिरी कार्यदिवस है। उन्होंने 9 नवंबर, 2022 को CJI का पद संभाला था। वे कई ऐतिहासिक फैसले देने वाली पीठों का या तो हिस्सा रहे हैं या अगुवाई कर चुके हैं। इन पीठों ने राम मंदिर, समलैंगिकता और चुनावी बॉन्ड जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर फैसला सुनाया है। आइए जस्टिस चंद्रचूड़ के अहम फैसलों के बारे में जानते हैं।
चुनावी बॉन्ड योजना को किया था रद्द
इसी साल फरवरी में जस्टिस चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली 5 जजों की संवैधानिक पीठ ने राजनीतिक फंडिंग के लिए केंद्र सरकार द्वारा लाई गई चुनावी बॉन्ड योजना को रद्द कर दिया था। पीठ ने योजना को असंवैधानिक बताते हुए कहा था कि सरकार के पास पैसा कहां से आता है, ये जानने का अधिकार नागरिकों को है। इसके साथ ही कोर्ट ने भारतीय स्टेट बैंक (SBI) और चुनाव आयोग को दानदाताओं के नाम भी सार्वजनिक करने को कहा था।
राम मंदिर पर ऐतिहासिक फैसला
नवंबर, 2019 में सर्वसम्मत फैसले में सुप्रीम कोर्ट के 5 न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने अयोध्या में राम मंदिर की पूरी विवादित भूमि को हिंदू पक्ष को सौंप दिया था। मुस्लिम पक्ष को मस्जिद बनाने के लिए अयोध्या में ही 5 एकड़ जमीन आवंटित करने का फैसला भी सुनाया गया था। चंद्रचूड़ फैसला सुनाने वाली पीठ का हिस्सा थे। इसी फैसले के बाद अयोध्या में राम मंदिर बनाने का मार्ग प्रशस्त हुआ।
निजता के अधिकार को बताया था मौलिक अधिकार
अगस्त, 2017 में सुप्रीम कोर्ट की 9 सदस्यीय पीठ ने निजता के अधिकार को अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का एक हिस्सा बताया था। पीठ ने निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार बताया। यही फैसला बाद में समलैंगिक यौन संबंध और व्यभिचार को अपराध माने जाने को खत्म करने का एक आधार भी बना। ये मामला जस्टिस केएस पुट्टस्वामी बनाम भारत संघ से जुड़ा हुआ था।
अधिकारों को लेकर दिल्ली सरकार के पक्ष में सुनाया फैसला
दिल्ली की निर्वाचित सरकार और केंद्र सरकार के बीच अधिकारों की लड़ाई में सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार के पक्ष में अहम फैसला सुनाया था। तब जस्टिस चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ ने कहा था कि केंद्र सरकार दिल्ली की चुनी हुई सरकार को कार्यकारी शक्तियों से वंचित नहीं कर सकती। कोर्ट ने प्रशासनिक सेवाओं पर दिल्ली सरकार को नियंत्रण दिया, जबकि केंद्र की भूमिका केवल सार्वजनिक व्यवस्था, पुलिस और भूमि तक सीमित कर दी।
समलैंगिकता को अपराध के दायरे से बाहर किया
सितंबर 2018 में 5 जजों की संविधान पीठ ने समलैंगिकता को अपराध मानने वाली धारा 377 को आंशिक तौर पर रद्द कर दिया था। पीठ ने कहा कि वयस्कों के बीच सहमति से बने किसी भी तरह के संबंध को अपराध नहीं ठहराया जा सकता, क्योंकि यह समानता, जीवन और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। पीठ में जस्टिस चंद्रचूड़ के साथ तत्कालीन CJI दीपक मिश्रा, जस्टिस एफ नरीमन, एएम खानविलकर और इंदु मल्होत्रा शामिल थे।
व्यभिचार को अपराध बताने वाली धारा 497 रद्द की
27 सितंबर, 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 497 के उस प्रावधान को असंवैधानिक करार दिया था, जिसमें व्यभिचार को अपराध बताया गया था। कोर्ट ने कहा था कि महिला और पुरुष के अधिकार समान हैं, लेकिन धारा 497 उनमें भेदभाव करती है। कोर्ट ने ये भी कहा था कि पति पत्नी का मालिक नहीं है। जस्टिस चंद्रचूड़ भी फैसला सुनाने वाली पीठ में शामिल थे।
आखिरी हफ्ते में भी जस्टिस चंद्रचूड़ ने सुनाए अहम फैसले
जस्टिस चंद्रचूड़ ने अपने कार्यकाल के आखिरी हफ्ते में भी कुछ अहम फैसले सुनाए। जस्टिस चंद्रचूड़ ने बुल्डोजर कार्रवाई के खिलाफ फैसले में कहा कि इस तरह लोगों के घरों को कैसे तोड़ना शुरू कर सकते हैं? उन्होंने उत्तर प्रदेश सरकार को पीड़ित को 25 लाख का मुआवजा देने को कहा। इसके अलावा हल्के मोटर वाहन (LMV) श्रेणी का ड्राइविंग लाइसेंस रखने वाले व्यक्तियों को भी 7,500 किलोग्राम से कम वजन वाले वाहनों को चलाने की अनुमति दी।