तेलंगाना में मौजूद हैं ये पांच ऑफबीट पर्यटन स्थल, जरूर जाएं घूमने
भारत के आंध्र प्रदेश से अलग हुआ तेलंगाना राज्य दक्षिणी भाग में स्थित है, जिसने अपने समृद्ध इतिहास और विरासत को खूबसूरती से संरक्षित किया हुआ है। यह प्राचीन मंदिरों, आकर्षक संग्रहालयों और शानदार मस्जिदों के माध्यम से अपने गौरवशाली अतीत को दर्शाता है। तेलंगाना पर्यटन की दृष्टि से काफी संपन्न है और आज हम आपको इसके ऑफबीट पर्यटन स्थलों के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां जाकर आप अपनी छुट्टियों के दिन सूकुन से बिता सकते हैं।
पाखल वन्यजीव अभयारण्य
तेलंगाना के वारंगल जिले में पाखल वन्यजीव अभयारण्य में देखने लायक कई चीजे हैं। तरह-तरह के पेड़-पौधे से भरे इस वन में कई जानवर और पाखल नाम की एक कृत्रिम झील है, जिसका निर्माण 1213 ई. में काकतीय राजा गणपति देव द्वारा कृष्णा नदी के लिए एक सहायक नदी पर सिंचाई के उद्देश्य से किया गया था। पाखल झील पर्यटकों के घूमने और आराम करने के लिए एक लोकप्रिय स्थान बन गया है।
कुंतला वॉटर फॉल्स
कुंतला वॉटर फॉल्स कदम नदी पर स्थित है, जो 50 मीटर की ऊंचाई से गिरने वाला तेलंगाना का सबसे ऊंचा वॉटर फॉल है। गोंडी और तेलुगु में कुंता का अर्थ है तालाब, जबकि कुंतालु का अर्थ है कई तालाब। यह वॉटर फॉल कई तालाबों से मिलकर बना है। यह वॉटर फॉल और इसके आसपास का नजारा बहुत ही खूबसूरत है, इसलिए जीवन एक बार इस जगह पर जाना तो बनता है।
भोंगीर किला
भोंगीर किला अपनी आकर्षक विशेषताओं के लिए जाना जाता है, जैसे जाल के दरवाजे, तालाब, एक गुप्त कक्ष और अस्तबल आदि। इस किले को त्रिभुवनमल्ला विक्रमादित्य चतुर्थ ने 1076 ई. में बनवाया था। यह किला लगभग 500 फीट की ऊंचाई पर एक अद्वितीय अखंड चट्टान के ऊपर खड़ा है और 50 एकड़ तक फैला हुआ है। किंवदंतियों के अनुसार, कभी भोंगीर किले और गोलकुंडा किले के बीच एक गलियारा था।
वारंगल का किला
तेलंगाना के ऑफबीट पर्यटन स्थलों में शामिल वारंगल का किला एक आकर्षित और ऐतिहासिक स्थान है। 13 वीं सदी में बने इस किले की मजबूती बेमिसाल है, क्योंकि इस किले पर कई बार हमले हुए लेकिन अपनी मजबूती के कारण यह किला आज भी अपना आस्तित्व बनाएं हुए है। पर्यटकों के लिए यह किला हर दिन सुबह 9 बजे से लेकर शाम 8 बजे तक खुला रहता है। इतिहास के प्रति रुचि रखने वालों को तो यहां जरूर जाना चाहिए।
दुलिकत्ता
दुलिकत्ता एक गांव है, जो बौद्ध महास्तूप के लिए प्रसिद्ध है। इसे ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी के अंत में स्थापित किया गया था। इस प्राचीन स्तूप के अवशेष अभी भी कई स्थानों पर दिखाई देते हैं। जैसे सातवाहन राजवंश के छिद्रित सिक्के, मोती, हाथी के दांतों से बनी कंघी, चूड़ियां और चांदी के गहने आदि कई अन्य चीजें महास्तूप के आस-पास की खुदाई में मिली हैं।