पति की हत्या करने के बाद भी पारिवारिक पेंशन की हकदार है पत्नी- हाई कोर्ट
देश के न्यायालयों द्वारा इन दिनों कई अजीबोगरीब फैंसले दिए जा रहे हैं। इन फैसलों की जमकर चर्चा हो रही है। हाल ही है बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर बैंच में POCSO अधिनियम से जुड़े तीन चौंकाने वाले फैंसले दिए थे। इनमें से एक पर तो सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी थी। इसी बीच अब पंजाब-हरियाणा हाई कोर्ट ने अजीब फैसला दिया है। कोर्ट के अनुसार पति की हत्या करने के बाद भी पत्नी पारिवारिक पेंशन की हकदार होगी।
याचिकाकर्ता ने 2008 में की थी पति की हत्या
इंडिया टुडे के अनुसार अंबाला निवासी बलजीत कौर के पति तरसेम सिंह की साल 2008 में मौत हो गई थी। वह सरकारी कर्मचारी थे। साल 2009 में पुलिस ने बलजीत कौर के पति की हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया था। इसके बाद पुलिस ने कोर्ट में चार्जशीट पेश की और मामले में सुनवाई हुई। इसमें कोर्ट ने उसे दोषी मानते हुए साल 2011 में सजा सुना दी थी। उसके बाद हरियाणा सरकार ने उसकी पेंशन बंद कर दी थी।
बलजीत कौर ने पेंशन बहाल करने के लिए दायर की थी याचिका
मामले में पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए जाने से सजा सुनाए जाने तक बलजीत कौर को पारिवारिक पेंशन का लाभ मिल रहा था, लेकिन अदालत द्वारा उसे सजा सुनाए जाने के बाद में हरियाणा सरकार ने उसकी पेंशन रोक दी। हरियाणा सरकार ने यह कहते हुए पेंशन और अन्य वित्तीय लाभ रोक दिए थे कि पत्नी का आचरण सही नहीं है और वह दोषी करार दी जा चुकी है। इसके बाद बलजीत कौर ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी।
पति की हत्या के बाद भी पेंशन की हकदार है पत्नी- हाई कोर्ट
मामले में फैसला सुनाते हुए हाई कोर्ट ने हरियाणा सरकार के आदेश को खारिज कर दिया और संबंधित विभाग को दो महीने में बकाया भुगतान करते हुए याचिकाकर्ता की पेंशन को फिर से बहाल करने का आदेश दिया हैं। कोर्ट ने कहा कि यदि कर्मचारी को गंभीर अपराध में दंड मिलता है तो उसकी पेंशन रोकी जा सकती है, लेकिन पत्नी को किसी मामले में दोषी दिया जाता है तो भी वह फैमिली पेंशन और वित्तीय लाभ की हकदार है।
हाईकोर्ट ने मामले में की यह टिप्पणी
हाई कोर्ट ने कहा कि फैमिली पेंशन एक कल्याण योजना है जो सरकारी कर्मचारी की मौत की स्थिति में उसके परिवार को आर्थिक मदद मुहैया कराती है। यदि पत्नी आपराधिक केस में दोषी है या फिर उसने अपने पति की हत्या कर दी तो भी वह फैमिली पेंशन की हकदार है। इसी तरह यदि कोई विधवा महिला पुनर्विवाह करती है तो भी वह CCS (पेंशन) नियम, 1972 के पारिवारिक पेंशन हासिल करने की हकदार होती है।
बॉम्बे हाई कोर्ट ने जबरन छूने को नहीं माना था यौन हमला
बॉम्बे हाई कोर्ट की नागुपर पीठ ने गत दिनों एक मामले में कहा था कि "त्वचा से त्वचा के संपर्क" के बिना युवती के वक्षस्थल को छूना यौन हमले की श्रेणी में नहीं आता। हालांकि, गत बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने फैसले पर रोक लगा दी थी। इसके बाद नागपुर बैंच ने ही एक अन्य मामले में कहा था कि नाबालिग लड़की का हाथ पकड़ना और उसकी पैंट की जिप खोलना POCSO कानून में यौन उत्पीड़न के तहत नहीं आता।
"बिना किसी हाथापाई के रेप करना अकेले युवक के लिए संभव नहीं"
इसी तरह बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच ने एक अन्य मामले में यह कहते हुए रेप के आरोपी को बरी कर दिया था, 'जबरन रेप में बिना हाथापाई के युवती के कपड़े उतारना और रेप करना अकेले युवक के लिए संभव नहीं है।'