"त्वचा से त्वचा के संपर्क" के बिना जबरन छूना यौन हमला नहीं- बॉम्बे हाई कोर्ट
क्या है खबर?
बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर पीठ ने नाबालिग लड़की से यौन शोषण के एक मामले में बेहद चौंकाने वाला फैसला दिया है।
कोर्ट के अनुसार "त्वचा से त्वचा के संपर्क" के बिना युवती के वक्षस्थल को छूना यौन हमले की श्रेणी में नहीं लिया जा सकता।
आरोपी को यौन हमले का दोषी ठहराए जाने के लिए त्वचा से त्वचा के संपर्क का होना आवश्यक है। ऐसे में आरोपी के खिलाफ यौन हमले का दोषी नहीं ठहराया जा सकता है।
प्रकरण
आरोपी ने साल 2016 में किया नाबालिग से छेड़छाड़ का प्रयास
NDTV के अनुसार आरोपी नागपुर निवासी सतीश कुमार दिसंबर 2016 में नाबालिग लड़की को खाने का कुछ सामान देने के बहाने अपने घर ले गया था। उसके बाद आरोपी ने नाबालिग के वक्षस्थल पर हाथ लगाते हुए उसे निर्वस्त्र करने का प्रयास किया था।
वह जैसे-तैसे वहां से भाग निकली और परिजनों को घटना की जानकारी दी। इसके बाद परिजनों ने आरोपी के खिलाफ POCSO अधिनियम के तहत यौन हमले का मामला दर्ज कराया था।
जानकारी
सत्र न्यायालय ने आरोपी को सुनाई थी तीन साल की सजा
मामले में नागपुर के एक सत्र न्यायालय ने आरोपी को POCSO अधिनियम के तहत यौन हमले का दोषी मानते हुए तीन साल के कारावास की सजा सुनाई थी। इसके बाद आरोपी ने बॉम्बे हाई कोर्ट में याचिका दायर करते हुए फैसले को चुनौती दी थी।
फैसला
"त्वचा से त्वचा के संपर्क" के बिना जबरन छूना यौन हमला नहीं- हाई कोर्ट
नागपुर पीठ की जस्टिस पुष्पा गनेडीवाला ने गत 19 जनवरी को मामले में दिए अपने फैसले में कहा, "यौन हमले का कृत्य माने जाने के लिए 'यौन मंशा से त्वचा से त्वचा का संपर्क होना' जरूरी है। महज कपड़ों के ऊपर से जबरन छूना भर यौन हमले की परिभाषा में नहीं आता है।"
इसके साथ ही कोर्ट ने सत्र न्यायालय को भी अपने उस फैसले में संशोधन के आदेश दिए, जिसमें आरोपी को तीन साल की सजा सुनाई गई थी।
टिप्पणी
हाई कोर्ट ने की यह टिप्पणी
होई कोर्ट ने कहा कि आरोपी सतीश ने नाबालिग को घर ले जाकर निर्वस्त्र किए बिना उसके वक्षस्थल को छूने की कोशिश की थी। ऐसे में अपराध को यौन हमले की श्रेणी में नहीं माना जा सकता है।
कोर्ट के अनुसार आरोपी का यह कृत्य भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 354 ( स्त्री की लज्जा भंग करने के आशय से उस पर हमला या आपराधिक बल का प्रयोग) के तहत आता है और उसी के अनुसार कार्रवाई होनी चाहिए।
अंतर
POCSO अधिनियम और धारा 354 में यह है अंतर
बता दें कि धारा 354 के तहत जहां न्यूनतम सजा एक वर्ष के कारावास की होती है, वहीं POCSO अधिनियम के तहत यौन हमले की न्यूनतम सजा तीन वर्ष कारावास है।
सत्र न्यायालय ने आरोपी को POCSO और धारा 354 के तहत दोषी मानते हुए तीन साल की सजा सुनाई थी।
बहरहाल, उच्च न्यायालय ने उसे POCSO अधिनियम के तहत यौन हमले के अपराध से बरी कर दिया और धारा 354 के तहत उसकी सजा बरकरार रखी है।
साक्ष्य
POCSO अधिनियम के तहत जरूरी है मजबूत साक्ष्य- हाई कोर्ट
हाई कोर्ट ने कहा कि POCSO अधिनियम के तहत अपराध के लिए सजा की कठोर प्रकृति को ध्यान में रखते हुए मजबूत साक्ष्य और गंभीर आरोप होना जरूरी हैं।
कोर्ट ने कहा 12 वर्षीय बच्ची के वक्ष छूने के मामले में विशिष्ट ब्यौरा जैसे, क्या उसका टॉप हटाया गया या क्या आरोपी ने टॉप के अंदर डालकर वक्षस्थल को छुआ, के अभाव में यह सब यौन हमले की परिभाषा में नहीं आता है। इसके लिए मजबूत साक्ष्य नहीं है।
परिभाषा
POCSO अधिनियम के तहत यह है यौन हमले की परिभाषा
जस्टिस गनेडीवाला ने अपने फैसले में कहा कि POCSO अधिनियम के तहत 'यौन मंशा के साथ बच्ची/बच्चे के निजी अंगों, वक्ष को छूता है या बच्ची/बच्चे से अपना या किसी व्यक्ति के निजी अंग को छुआता है या यौन मंशा के साथ कोई अन्य कृत्य करता है जिसमें संभोग किए बगैर यौन मंशा से शारीरिक संपर्क शामिल हो' यौन हमले की श्रेणी में आता है।
इसी तरह कोर्ट ने कहा कि यौन हमले में शारीरिक संपर्क प्रत्यक्ष होना चाहिए।