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बॉम्बे हाई कोर्ट के "जबरन छूना यौन हमला नहीं" वाले फैसले पर सुप्रीम कोर्ट की रोक

बॉम्बे हाई कोर्ट के "जबरन छूना यौन हमला नहीं" वाले फैसले पर सुप्रीम कोर्ट की रोक

Jan 27, 2021
02:52 pm

क्या है खबर?

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को बॉम्बे हाई कोर्ट की ओर से हाल में दिए गए उस अजीबोगरीब फैसले पर रोक लगा दी है, जिसमें कहा गया था कि "त्वचा से त्वचा के संपर्क" के बिना युवती के वक्षस्थल को छूना यौन हमले की श्रेणी में नहीं लिया जा सकता है। मामले में दाखिल एक याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी और महाराष्ट्र सरकार को नोटिस जारी करते हुए दो सप्ताह में जवाब प्रस्तुत करने को कहा है।

प्रकरण

सत्र न्यायालय ने आरोपी को सुनाई थी तीन साल की सजा

नागपुर निवासी सतीश कुमार दिसंबर 2016 में नाबालिग लड़की को अपने घर ले गया था। उसके बाद उसने नाबालिग के वक्षस्थल पर हाथ लगाते हुए उसे निर्वस्त्र करने का प्रयास किया था। इसमें आरोपी के खिलाफ POCSO अधिनियम के तहत यौन हमले का मामला दर्ज कराया था। मामले में नागपुर के एक सत्र न्यायालय ने आरोपी को दोषी मानते हुए तीन साल के कारावास की सजा सुनाई थी। इस फैसले को आरोपी ने बॉम्बे हाई कोर्ट में चुनौती दी थी।

फैसला

"त्वचा से त्वचा के संपर्क" के बिना जबरन छूना यौन हमला नहीं- हाई कोर्ट

नागपुर पीठ की जस्टिस पुष्पा गनेडीवाला ने गत 19 जनवरी को फैसले में कहा, "यौन हमले का कृत्य माने जाने के लिए 'यौन मंशा से त्वचा से त्वचा का संपर्क होना' जरूरी है। महज कपड़ों के ऊपर से जबरन छूना यौन हमले की परिभाषा में नहीं आता है।" इसके साथ ही कोर्ट ने सत्र न्यायालय को भी अपने उस फैसले में संशोधन के आदेश दिए, जिसमें आरोपी को तीन साल की सजा सुनाई गई थी।

टिप्पणी

हाई कोर्ट ने मामले में की थी यह टिप्पणी

होई कोर्ट ने कहा था कि आरोपी सतीश ने नाबालिग को घर ले जाकर निर्वस्त्र किए बिना उसके वक्षस्थल को छूने की कोशिश की थी। ऐसे में अपराध को यौन हमले की श्रेणी में नहीं माना जा सकता है। कोर्ट के अनुसार आरोपी का यह कृत्य भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 354 (स्त्री की लज्जा भंग करने के आशय से हमला या आपराधिक बल का प्रयोग) के तहत आता है और उसी के अनुसार कार्रवाई होनी चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट

याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने लगाई फैसले पर रोक

बॉम्बे हाई कोर्ट के इस फैसले की आलोचना करते हुए यूथ बार एसोसिएशन आफ इंडिया इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे दी। इसके अलावा अन्य सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भी इस पर आपत्ति जताई थी। याचिका पर सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश एसए बोबड़े की अध्यक्षता वाली पीठ ने फैसले पर रोक लगा दी तथा आरोपी और सरकार को नोटिस देकर दो सप्ताह में जवाब मांगा है। कोर्ट ने आरोपी को मामले में बरी के आदेश पर भी रोक लगाई है।

दलील

खतरनाक मिसाल बन सकता है हाई कोर्ट का फैसला- वेणुगोपाल

अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि बॉम्बे हाई कोर्ट का यह अजीबोगरीब फैसला देश में खतरनाक मिसाल बन सकता है। इसके फैसले का मतलब है यह होगा कि कपड़ों को ऊपर से किसी भी अंग को छूने पर POCSO अधिनियम के धारा-8 के तहत कोई कार्रवाई नहीं होगी। इससे लोगों में ऐसे अपराधों की प्रवृत्ति बढ़ेगी। उन्होंने कहा कि शीर्ष अदालत को इस फैसले पर गौर करते हुए संज्ञान लेना चाहिए।