#NewsBytesExplainer: सुप्रीम कोर्ट ने बिलकिस बानो के दोषियों की रिहाई क्यों रद्द की और आगे क्या?
बिलकिस बानो का गैंगरेप करने वाले सभी 11 दोषी एक बार फिर जेल जाएंगे। सुप्रीम कोर्ट ने दोषियों की रिहाई को रद्द कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि गुजरात सरकार को दोषियों को रिहा करने का अधिकार नहीं था और उन दोनों के बीच मिलीभगत थी। आइए जानते हैं कि ये पूरा मामला क्या है, सुप्रीम कोर्ट ने दोषियों की रिहाई क्यों रद्द की और दोषियों के पास अब आगे क्या रास्ता है।
क्या है मामला?
गुजरात दंगों के दौरान 3 मार्च 2002 को दंगाइयों ने दाहोद में बिलकिस बानो के परिवार पर हमला कर उनकी 3 वर्षीय बेटी समेत 7 लोगों की हत्या कर दी। इस दौरान उन्होंने 21 वर्षीय बिलकिस का गैंगरेप भी किया। तब वह 5 माह की गर्भवती थीं। 2004 में गैंगरेप के 11 आरोपी गिरफ्तार हुए और उन्हें उम्रकैद की सजा सुनाई गई। गुजरात सरकार ने जेल में उनके बर्ताव को देखते हुए 15 अगस्त, 2022 को उन्हें रिहा कर दिया।
कौन हैं वो दोषी, जिन्हें रिहा किया गया था?
इस मामले में राधेश्याम शाही, जसवंत चतुरभाई नाई, केशुभाई वदानिया, बकाभाई वदानिया, राजीवभाई सोनी, रमेशभाई चौहान, शैलेशभाई भट्ट, बिपिन चंद्र जोशी, गोविंदभाई नाई, मितेश भट्ट और प्रदीप मोढिया दोषी हैं और गुजरात सरकार ने इन सभी को रिहा कर दिया था।
सुप्रीम कोर्ट ने क्यों रद्द की रिहाई?
न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां की सुप्रीम कोर्ट बेंच ने कहा कि जिस राज्य (महाराष्ट्र) में दोषियों के खिलाफ सुनवाई और उन्हें सजा हुई, उसी राज्य की सरकार दोषियों को रिहा करने का आदेश जारी कर सकती है और जिस राज्य (गुजरात) में अपराध हुआ, वो रिहाई का आदेश जारी नहीं कर सकता। इसका मतलब गुजरात सरकार को रिहाई का आदेश जारी करने का अधिकार नहीं था और इसलिए रिहाई को रद्द किया गया।
गुजरात को रिहाई का अधिकार देने वाले सुप्रीम कोर्ट के पुराने आदेश का क्या हुआ?
मामले में एक पेच ये था कि सुप्रीम कोर्ट ने एक दोषी की याचिका पर सुनवाई करते हुए 13 मई, 2022 को गुजरात सरकार को रिहाई पर विचार करने का आदेश दिया था। ऐसे में कहा जा सकता है कि गुजरात सरकार ने कोर्ट के निर्देश पर रिहाई का आदेश दिया। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ये आदेश श्रीहरण मामले में संवैधानिक बेंच के आदेश का उल्लंघन करता है और दोषी राधेश्याम ने कोर्ट के साथ धोखाधड़ी की थी।
दोषी ने सुप्रीम कोर्ट के साथ क्या धोखाधड़ी की?
दरअसल, गुजरात हाई कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार को रिहाई पर सुनवाई के लिए उपयुक्त ठहराते हुए दोषी राधेश्याम को महाराष्ट्र में आवेदन करने को कहा था। राधेश्याम ने हाई कोर्ट के आदेश पर अमल करते हुए महाराष्ट्र में आवेदन भी किया, लेकिन जब महाराष्ट्र पुलिस प्रमुख ने रिहाई का विरोध किया तो उसने प्रक्रिया के बीच में ही सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर दी और ये सारी बातें सुप्रीम कोर्ट से छिपाईं। कोर्ट ने इसे धोखाधड़ी बताया है।
गुजरात सरकार पर दोषियों के साथ मिलीभगत का आरोप क्यों लगा?
कोर्ट ने अपने फैसले में गुजरात सरकार की भूमिका पर भी सवाल उठाए हैं। दरअसल, गुजरात सरकार ने पहले खुद ही सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि महाराष्ट्र सरकार ही रिहाई पर विचार कर सकती है, लेकिन फिर खुद ही रिहाई का आदेश जारी कर दिया। कोर्ट ने कहा कि गुजरात सरकार को उसे रिहाई पर विचार की अनुमति देने वाले 2022 के आदेश को चुनौती देनी चाहिए थी और उसका ऐसा न करना दोषियों के साथ मिलीभगत दर्शाता है।
अब आगे क्या और दोषियों के पास क्या विकल्प?
सुप्रीम कोर्ट ने दोषियों को 2 हफ्ते के अंदर जेल में आत्मसमर्पण करने का आदेश दिया है। फिलहाल उनके पास 2 विकल्प हैं। पहला, वे ताजा फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल कर सकते हैं। ऐसे उन्हें 30 दिन के अंदर ही करना होगा और जरूरी नहीं कि कोर्ट उनकी पुनर्विचार याचिका को स्वीकार करे। दूसरा विकल्प है कि वे महाराष्ट्र सरकार के पास रिहाई के लिए आवेदन करें। हालांकि, इसके लिए उन्हें जेल वापस जाना होगा।
न्यूजबाइट्स प्लस
यदि किसी व्यक्ति को उम्रकैद की सजा होती है तो संबंधित राज्य सरकार को दंड प्रक्रिया संहिता (CrPc) की धारा 432 और 433 के तहत अधिकार होता है कि वह कैदी के व्यवहार अनुरूप उसकी सजा को माफ कर दे। इस कानून के तहत 14 साल या इससे ज्यादा की सजा काट चुके कैदियों को रिहा किया जा सकता है। संविधान के अनुच्छेद 72 में राष्ट्रपति को, जबकि अनुच्छेद 161 में राज्यपाल को सजा माफी करने का अधिकार होता है।