#NewsBytesExplainer: क्या है असम का ULFA, जिसके साथ सरकार करने जा रही शांति समझौता?
केंद्र सरकार जल्द ही यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (ULFA) के वार्ता समर्थक गुट के साथ ऐतिहासिक शांति समझौते पर हस्ताक्षर कर सकती है। पूर्वोत्तर राज्य में स्थायी शांति लाने के उद्देश्य से ULFA और केंद्र और असम सरकार के बीच 29 दिसंबर को एक त्रिपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर होने की संभावना है। पिछले 1 साल से सरकार इस समझौते पर काम कर रही थी। आइए जानते हैं क्या है ULFA और कैसे शुरू हुई थी शांति वार्ता।
क्या है ULFA और क्यों हुआ था इसका गठन?
ULFA भारत के पूर्वोत्तर राज्य असम में सक्रिय एक प्रमुख आतंकवादी और उग्रवादी संगठन है। इसका गठन 7 अप्रैल, 1979 में परेश बरुआ ने अपने साथी अरबिंद राजखोवा, गोलाप बरुआ उर्फ अनुप चेतिया, समीरन गोगोई उर्फ प्रदीप गोगोई और भद्रेश्वर गोहैन के साथ मिलकर किया था। इस संगठन के गठन का उद्देश्य सशस्त्र संघर्ष के माध्यम से असम को एक "स्वायत्त और संप्रभु राज्य" बनाना था। यह संगठन विध्वंसक गतिविधियों में शामिल रहा है ।
1990 में इस संगठन पर लगा प्रतिबंध, हजारों ने किया आत्मसमर्पण
केंद्र सरकार ने 1990 में इसपर प्रतिबंध लगाकर इसके खिलाफ सैन्य अभियान शुरू कर दिया। 31 दिसंबर, 1991 को ULFA के डिप्टी कमांडर-इन-चीफ हीरक ज्योति महंत की मृत्यु के बाद ULFA के लगभग 9,000 सदस्यों ने आत्मसमर्पण किया था। इसके बाद 2008 में इनके लीडर अरबिंद राजखोवा को बांग्लादेश में गिरफ्तार कर लिया गया और भारत को सौंप दिया गया। राजखोवा ने शांति समझौते की बात की तो ये संगठन दो भागो में बंट गया।
कई खूनी खेल को अंजाम दिया है ULFA ने
वामपन्थी विचारधारा को मानने वाले ULFA ने कई बड़ी घटनाओं को अंजाम दिया। 1990 में ULFA ने चाय व्यापारी सुरेंद्र पॉल की हत्या की थी जिससे बागान के प्रबंधक और कई चाय व्यापारी डरकर राज्य छोड़कर भाग गए। इन्होनें 1 जुलाई, 1991 को रूसी इंजीनियर का अपहरण किया था अन्य लोगों के साथ उसकी हत्या कर दी। 30 अक्टूबर, 2008 असम में एक साथ हुए 13 धमाकों में करीब 77 लोगों की मौत और 300 लोग घायल हुए थे।
कब शुरू हुई थी शांति वार्ता?
अप्रैल 2010 में असम के संमिलिता जातीय अभिवर्तन (SJA) ने संगठन और केंद्र सरकार के बीच शांति वार्ता की शुरुआत की और केंद्र के समक्ष ULFA की मांगों का प्रस्ताव रखा। SJA असम की ऐसी ही सभी संस्थाओं का संगठन है। ULFA का राजखोवा गुट 2011 में सरकार के साथ शांति वार्ता में शामिल हुआ था। इससे परेश बरुआ खुश नहीं था और उसने इससे दूर रहने का फैसला किया। इसके बाद उसने ULFA (स्वतंत्र) का गठन किया।
ULFA गुट और सरकार के बीच पिछले हफ्ते हुई शांति वार्ता
वर्तमान में शांती वार्ता के लिए राजखोवा समूह के अनूप चेतिया और शशधर चौधरी जैसे 2 शीर्ष नेता पिछले हफ्ते दिल्ली में थे। इन नेताओं ने शांति समझौते को अंतिम रूप देने के लिए सरकारी वार्ताकारों के साथ बातचीत की। हालांकि, परेश के नेतृत्व वाला गुट अभी भी इस समझौते के विरोध में है। सरकार की तरफ से इंटेलिजेंस ब्यूरो (IB) के निदेशक तपन डेका और पूर्वोत्तर मामलों पर सरकार के सलाहकार एके मिश्रा शामिल थे।
ULFA के नेताओं ने दिल्ली के समक्ष क्या मांगें रखी?
दिल्ली के समक्ष ULFA नेताओं ने कई मांगे रखी हैं। इनमें संवैधानिक एवं राजनीतिक व्यवस्थाएं, स्थानीय स्वदेशी आबादी के लिए पहचान की सुरक्षा, वित्तीय एवं आर्थिक पैकेज, खानों/खनिजों पर रॉयल्टी का निपटान, सतत आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए स्वतंत्र उपयोग के अधिकारों की स्थापना करना और अवैध प्रवासन के मुद्दे को संबोधित करना शामिल है। इसके अलावा इसमें सख्त सीमा नियंत्रण, नदी गश्त और सीमाओं को सुरक्षित करने के लिए एक देशी बल का गठन जैसे उपाय हैं।
अंतिम समझौते की रूपरेखा क्या हो सकती है?
सरकारी सूत्रों के अनुसार, अंतिम समझौते में वित्तीय पैकेज, अवैध अप्रवासियों के संबंध में नागरिकता सूची की जांच, नए भूमि आरक्षण उपाय और असम के स्वदेशी समुदायों के अधिकार शामिल हो सकते हैं। इस समझौते में असम में स्वदेशी समुदायों के लिए राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक सुरक्षा के प्रावधान भी होंगे। ULFA के साथ शांति समझौता पूर्वोत्तर में लंबे समय से चले आ रहे उग्रवाद मुद्दे का समाधान केंद्र सरकार के लिए एक बड़ी सफलता हो सकती है।