बिलकिस बानो गैंगरेप मामला: सुप्रीम कोर्ट ने दोषियों की रिहाई रद्द की, आत्मसमर्पण करने का आदेश
क्या है खबर?
सुप्रीम कोर्ट ने 2002 गुजरात दंगों के दौरान बिलकिस बानो के साथ गैंगरेप और उसके परिवार की हत्या करने वाले 11 दोषियों की रिहाई का रद्द कर दिया है।
जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस उज्ज्वल भुइयां की बेंच ने कहा कि गुजरात सरकार को रिहाई का आदेश जारी करने का अधिकार नहीं था। कोर्ट ने मामले में गुजरात सरकार पर भी तल्ख टिप्पणी की।
उसने दोषियों को 2 हफ्ते के अंदर जेल में आत्मसमर्पण करने का आदेश दिया है।
मामला
क्या है मामला?
गुजरात दंगों के दौरान 3 मार्च, 2002 को दाहोद जिले के रंधिकपुर गांव में 11 दोषियों ने बिलकिस का गैंगरेप किया था।
उस वक्त बिलकिस 21 साल की थीं और 5 महीने की गर्भवती थीं। दंगाइयों ने बिलकिस की 3 वर्षीय बेटी समेत उनके परिवार के 7 सदस्यों की हत्या भी कर दी थी।
दोषियों को उम्रकैद की सजा हुई थी, लेकिन गुजरात सरकार ने जेल में उनके बर्ताव को देखते हुए 15 अगस्त, 2022 को उन्हें रिहा कर दिया।
आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने इस आधार पर रद्द किया रिहाई का आदेश
बिलकिस ने इस रिहाई को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।
आज इस पर फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जिस राज्य (महाराष्ट्र) में दोषियों के खिलाफ सुनवाई और उन्हें सजा हुई, उस राज्य की सरकार ही दोषियों को रिहा करने का आदेश जारी कर सकती है और जिस राज्य (गुजरात) में अपराध हुआ, वो रिहाई का आदेश जारी नहीं कर सकती।
इसी कारण कोर्ट ने गुजरात सरकार के रिहाई के आदेश को रद्द कर दिया।
पुराना आदेश
दोषी ने कोर्ट के साथ की धोखाधड़ी- सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने 13 मई, 2022 के सुप्रीम कोर्ट के उस पुराने आदेश को भी रद्द कर दिया, जिसमें कहा गया था कि रिहाई के आवेदन पर सुनवाई के लिए गुजरात सरकार उपयुक्त सरकार है।
जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि ये आदेश श्रीहरण मामले में संवैधानिक बेंच के आदेश का उल्लंघन करता है, साथ ही दोषी राधेश्याम भगवानदास ने कोर्ट में गलत तथ्य पेश कर और कोर्ट के साथ धोखाधड़ी कर ये आदेश पारित करवाया था।
धोखाधड़ी
दोषी ने कैसे की सुप्रीम कोर्ट से धोखाधड़ी?
जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि गुजरात हाई कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार को रिहाई पर सुनवाई के लिए उपयुक्त ठहराते हुए दोषी को महाराष्ट्र में आवेदन करने को कहा था।
उन्होंने कहा कि दोषी ने हाई कोर्ट के आदेश पर अमल करते हुए महाराष्ट्र में आवेदन भी किया, लेकिन जब महाराष्ट्र पुलिस प्रमुख ने रिहाई का विरोध किया तो दोषी ने प्रक्रिया के बीच में ही सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर दी और ये सारी बातें कोर्ट से छिपाईं।
आदेश
गुजरात सरकार की दोषियों के साथ मिलीभगत थी- कोर्ट
मामले में गुजरात सरकार की भूमिका पर भी सवाल उठाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि गुजरात सरकार द्वारा रिहाई का आदेश जारी करना 'सत्ता हड़पना' था और उसने महाराष्ट्र सरकार का अधिकार हड़पा।
जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि ये दिलचस्प है कि पहले गुजरात सरकार ने ही सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि महाराष्ट्र सरकार ही रिहाई पर विचार कर सकती है।
उन्होंने कहा कि ये दर्शाता है कि गुजरात सरकार की दोषियों के साथ मिलीभगत थी।
आत्मसमर्पण
कोर्ट ने कहा- दोषियों ने कानून के राज का उल्लंघन कर स्वतंत्रता का अधिकार खो दिया
दोषियों को आत्मसमर्पण करने का आदेश देते हुए जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता जरूरी है, लेकिन संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत किसी भी व्यक्ति को कानून के तहत ही स्वतंत्रता मिल सकती है।
उन्होंने कहा कि कानून के राज का उल्लंघन करना स्वतंत्रता के अधिकार को खोना है, अगर दोषी अपनी सजा से बच सके तो इससे समाज में शांति-सद्भाव महज कल्पना रह जाएगी और दोषियों को बाहर रहने देना अवैध आदेश को बनाए रखना होगा।