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    क्या है सुपरटेक के टावरों का मामला, जिन्हें सुप्रीम कोर्ट ने दिया गिराने का आदेश?

    क्या है सुपरटेक के टावरों का मामला, जिन्हें सुप्रीम कोर्ट ने दिया गिराने का आदेश?
    लेखन भारत शर्मा
    Feb 07, 2022, 07:18 pm 1 मिनट में पढ़ें
    क्या है सुपरटेक के टावरों का मामला, जिन्हें सुप्रीम कोर्ट ने दिया गिराने का आदेश?
    क्या है नोएडा के सुपरटेक एमराल्ड कोर्ट में दो अवैध टावरों के निर्माण का पूरा मामला?

    उत्तर प्रदेश के नोएडा में सुपरटेक एमराल्ड कोर्ट के दो 40 मंजिला अवैध टावरों के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को नोएडा विकास प्राधिकरण को दो सप्ताह में टावरों को गिराने का काम शुरू करने के आदेश दिए हैं। इसके अलावा नोएडा के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (CEO) को 72 घंटे में टावरों को गिराने की अंतिम योजना बनाने को कहा है। आइए जानते हैं कि एमराल्ड कोर्ट में बनाए गए इन अवैध टावरों का पूरा मामला क्या है।

    कब किया गया था टावरों का निर्माण?

    सुपरटेक बिल्डर्स ने साल 2009 से 2012 के बीच नोएडा के सेक्टर-93 में एमराल्ड कोर्ट परिसर में 40 और 39 मंजिल के दो नए टावरों का निर्माण किया था। 950 फ्लैट वाले दोनों टावरों के निर्माण के समय वहां पहले से रह रहे लोगों की सहमति भी नहीं ली गई थी और इनका निर्माण पार्क के रास्ते पर किया गया था। दोनों टावरों के बीच की दूरी कम होने से लोगों को रोशनी और हवा की परेशानी हो रही थी।

    रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में दायर की थी याचिका

    इस निर्माण को लेकर सोसायटी के रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन (RWA) ने नोएडा प्राधिकरण से टावरों के निर्माण के बारे में जानकारी मांगी, तो उन्हें मना कर दिया गया। इसके बाद RWA ने मामले को लेकर इलाहाबाद हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी। याचिका में कहा गया था कि टावरों के बीच आवश्यक दूरी की अनदेखी हुई है। भवन निर्माण के नियमों का पालन नहीं करने से अग्नि सुरक्षा मानकों और हरित क्षेत्र का भी उल्लंघन हुआ है।

    सुपरटेक ने किया था निर्माण का बचाव

    RWA के याचिका दायर करने के बाद सुपरटेक ने दोनों टावरों का बचाव करते हुए इन्हें पूरी तरह से वैध बताया था। सुपरटेक का तर्क था कि टावरों को मंजूरी मिलने और निर्माण के शुरू होने के समय याचिकाकर्ता फर्म अस्तित्व में भी नहीं थी।

    इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 2014 में दिए थे टावरों को गिराने के आदेश

    मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने साल 2014 में हाउसिंग सोसायटी में नियमों के उल्लंघन पर दोनों टावरों को गिराने के आदेश दिए थे। इसके साथ ही प्राधिकरण के अधिकारियों के खिलाफ भी सख्त कार्रवाई के निर्देश जारी किए थे। इसके बाद सुपरटेक ने फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगाई थी और राष्ट्रीय भवन निर्माण निगम लिमिटेड (NBCC) को जांच करने के निर्देश दिए थे।

    NBCC ने अपनी रिपोर्ट में निर्माण को बताया था अवैध

    सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर NBCC ने मामले की जांच की तो उसमे सामने आया कि यह निर्माण नोएडा प्राधिकरण के साथ सांठगांठ कर किया गया है। नोएडा प्राधिकरण ने 2006 में सुपरटेक को 17.29 एकड़ जमीन आवंटित की थी। इसमें एमराल्ड कोर्ट हाउसिंग प्रोजेक्ट के तहत 15 टावरों का निर्माण किया गया था। प्रत्येक टॉवर में 11 मंजिल बनी थीं, लेकिन 2009 में नोएडा अथॉरिटी के पास सुपरटेक बिल्डर ने रिवाइज्ड प्लान जमा कराया।

    24 मंजिल की मंजूरी लेकर किया 40 मंजिल का निर्माण

    जांच में सामने आया था कि सुपरटेक बिल्डर्स ने रिवाइज्ड प्लान में एपेक्स व सियान नाम से दो टावरों के लिए नोएडा प्राधिकरण की मंजूरी ली थी, लेकिन उसके बाद बिल्डर ने 40 मंजिल के हिसाब से 857 फ्लैट बनाने शुरू कर दिए। इसमें चौंकाने वाली बात यह रही कि टावरों के निर्माण में अग्नि सुरक्षा मानकों और हरित क्षेत्र का उल्लंघन होने के बाद भी नोएडा प्राधिकरण ने इस पर ध्यान नहीं दिया। इससे लोगों का पैसा फंस गया।

    सुप्रीम कोर्ट ने बरकरार रखा इलाहबाद हाई कोर्ट का फैसला

    मामले में 31 अगस्त, 2021 को सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा था। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और एमआर शाह की पीठ ने कहा था कि सुपरटेक एमराल्ड कोर्ट के 915 फ्लैट वाले 40 मंजिला वाले दो टावरों का निर्माण नियमों का उल्लंघन कर किया गया था। यह निर्माण नोएडा प्राधिकरण के साथ सांठगांठ कर किया गया है। पीठ ने सुपरटेक को अपनी लागत पर तीन महीने में दोनों दावरों को गिराना का आदेश दिया था।

    सुप्रीम कोर्ट ने दिए थे फ्लैट मालिकों को पैसा लौटने के आदेश

    सुप्रीम कोर्ट ने टावरों को गिराने से हाने वाले नुकसान को देखते हुए सुपरटेक को सभी फ्लैट मालिकों को 12 प्रतिशत ब्याज के साथ लिया गया भुगवान वापस लौटाने और RWA को दो करोड़ रुपये बतौर हर्जाना देने का भी आदेश दिया था।

    सुप्रीम कोर्ट ने नोएडा प्राधिकरण को लगाई थी फटकार

    सुनवाई के दौरान बिल्डर का पक्ष लेने पर सुप्रीम कोर्ट ने नोएडा प्राधिकरण को भी जमकर फटकार लगाई थी। कोर्ट ने कहा था कि अधिकारी बिल्डर की भाषा बोल रहे हैं और उनके अंग-अंग से भ्रष्टाचार टपकता दिख रहा है। इन टावरों का निर्माण अधिकारी और बिल्डर की मिलिभगत से ही हुआ है। उस दौरान कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को मामले की जांच के लिए टीम गठित करने और दोषी अधिकरियों के खिलाफ कार्रवाई के निर्देश दिए थे।

    सुपरटेक ने सितंबर में दाखिल की थी पुनर्विचार याचिका

    सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद सुपरटेक ने 27 सितंबर, 2021 को पुनर्विचार याचिका दायर कर ही टावर को गिराने की मंजूरी देने की मांग की थी। उन्होंने कहा था कि इससे न केवल करोड़ों रुपये बचेंगे, बल्कि नियमों के मुताबिक निर्माण भी होगा।

    सुप्रीम कोर्ट ने सुपरटेक मालिकों को दी थी जेल भेजने की चेतावनी

    सुप्रीम कोर्ट ने गत 17 जनवरी को मामले में सुनवाई करते हुए अपने आदेश के अनुसार फ्लैट मालिकों को निर्धारित समय पर में 12 प्रतिशत ब्याज की दर से पैसे वापस नहीं लौटने पर सुपरटेक मालिकों को जमकर फटकार लगाई थी। कोर्ट ने कहा था कि सुपरटेक बिल्डर्स शीर्ष अदालत के फैसले की अवमानना कर रहे हैं। ऐसे में कोर्ट अब उन्हें जेल भेजने की तैयारी में है। उस दौरान सुपरटेक ने जल्द ही भुगतान करने का वादा किया था।

    सुप्रीम कोर्ट ने दिया दो सप्ताह में कार्रवाई शुरू करने का आदेश

    पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अब नोएडा प्राधिकरण को दो सप्ताह में दोनों टावरों को गिराने का काम शुरू करने के आदेश दिए हैं। कोर्ट ने नोएडा के CEO को टावरों को गिराने की अंतिम योजना बनाने के लिए 72 घंटे में संबंधित अधिकारियों के साथ बैठक करने करने के आदेश दिए हैं। इसी तरह सुपरटेक को एक सप्ताह में टावर गिराने वाली एजेंसी एडिफिस के साथ अनुबंध पर हस्ताक्षर करने के भी निर्देश दिए हैं।

    252 फ्लैट मालिकों को बकाया है पैसा

    सुपरटेक ने दोनों टावरों में कुल 633 फ्लैट बुक किए थे। इनमें से 248 ने पैसा वापस ले लिया था, जबकि 133 दूसरे प्रोजेक्ट्स में शिफ्ट हो गए। वर्तमान में 252 फ्लैट मालिकों का पैसा बकाया है सुपरटेक को उन्हें भुगतान करना है।

    SIT की जांच में सामने आई कई अधिकारियों की मिलिभगत

    इस मामले में उत्तर प्रदेश सरकार ने नोएडा प्राधिकरण के अधिकारियों की मिलिभगत की जांच के विशेष जांच दल (SIT) का गठन किया था। SIT की जांच में 26 अधिकारियों की मिलिभगत सामने आई है। औद्योगिक विकास मंत्री सतीश महाना को सौंपी गई जांच रिपोर्ट में बताया गया है कि दोषी मिले 26 अधिकारियों में से दो की मौत हो चुकी है और चार अधिकारी कार्यरत हैं। इसी तरह 20 अधिकारी सेवानिवृत्त हो चुके हैं।

    उत्तर प्रदेश सरकार ने शुरू की दोषी अधिकरियों के खिलाफ कार्रवाई

    SIT की रिपोर्ट के बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई भी शुरू कर दी है। इसके तहत वर्तमान में कार्यरत चार अधिकारियों को निलंबित करते हुए उनके खिलाफ विभागीय कार्रवाई भी शुरू कर दी गई है। इसी तरह सेवानिवृत्त हो चुके अन्य अधिकारियों के खिलाफ भी नियमानुसार कार्रवाई के आदेश जारी हो चुके हैं। इसी तरह मिलिभग में संलिप्त मिले सुपरटेक के चार निदेशकों और दो आर्किटेक्ट के खिलाफ मामला दर्ज कराया गया है।

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