#NewsBytesExplainer: महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण को लेकर पूरा विवाद क्या है?
महाराष्ट्र में कई दिनों से चल रहा मराठा आरक्षण आंदोलन अब उग्र होता जा रहा है। आज गुस्साई भीड़ ने बीड के माजलगांव में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) के विधायक प्रकाश सोलंके के घर पर आग लगा दी है। इससे पहले आरक्षण की मांग को लेकर महाराष्ट्र में कथित तौर पर कई प्रदर्शनकारी आत्महत्या कर चुके हैं। अभी भी कई शहरों में प्रदर्शन चल रहा है। आइए समझते हैं कि ये पूरा मामला क्या है।
कब शुरू हुआ था आंदोलन?
आरक्षण की मांग को लेकर ताजा आंदोलन 29 अगस्त को शुरू हुआ था। इस आंदोलन का नेतृत्व मनोज जारांगे पाटिल कर रहे हैं। 1 सितंबर को ये आंदोलन उग्र हुआ था, जिसके बाद जालना में पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर लाठीचार्ज किया था। बाद में जारांगे ने मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे से मुलाकात की थी और सरकार को 40 दिन की मोहलत दी थी। ये अवधि 24 अक्टूबर को खत्म हो गई और आंदोलनकारी फिर सड़क पर उतर आए हैं।
कौन हैं मराठा?
आमतौर पर मराठाओं में जमींदार और किसानों के अलावा दूसरे लोग भी शामिल हैं। महाराष्ट्र में मराठाओं की आबादी 33 प्रतिशत के करीब है। मराठाओं को महाराष्ट्र में प्रभावशाली समुदाय माना जाता है। महाराष्ट्र के गठन के बाद से अब तक प्रदेश के 20 मुख्यमंत्रियों में से 12 मराठा समुदाय से रहे हैं। वर्तमान मुख्यमंत्री शिंदे खुद मराठा समुदाय से हैं। विधानसभा की 288 सीटों में से 75 पर ये समुदाय निर्णायक भूमिका में हैं।
क्या है मराठाओं की मांग?
मराठा लोग उन्हें अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) में शामिल किए जाने की मांग कर रहे हैं। दरअसल, मराठवाड़ा क्षेत्र महाराष्ट्र का हिस्सा बनने से पहले तत्कालीन हैदराबाद रियासत का हिस्सा था। तब मराठों को कुनबी जाति का माना जाता था और ये OBC में आते थे। हालांकि, जब यह क्षेत्र महाराष्ट्र में शामिल हो गया तो मराठों से कुनबी का दर्जा छीन लिया गया। अब मराठा वापस कुनबी जाति के तहत OBC आरक्षण मांग रहे हैं।
आरक्षण को लेकर सरकार क्या कर रही है?
सरकार ने आरक्षण के कानूनी पहलुओं और प्रक्रियाओं के बारे में अध्ययन के लिए 5 सदस्यीय समिति का गठन किया है। समिति को इसी महीने अपनी रिपोर्ट सौंपनी है। सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा भी खटखटाया है। शिंदे मंत्रिमंडल ने फैसला लिया था कि जिनके पास निजाम के समय के दस्तावेज हैं, उन्हें कुनबी जाति का प्रमाण पत्र दिया जाएगा। हालांकि, आंदोलनकारियों ने केवल मराठवाड़ा के बजाय पूरे महाराष्ट्र के मराठों को प्रमाण पत्र देने की मांग की है।
सरकार के सामने क्या हैं मुश्किलें?
मराठा समुदाय को आरक्षण देने को लेकर सबसे बड़ी चुनौती आरक्षण सीमा की है। दरअसल, कानूनन देश में अधिकतम आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत से ज्यादा नहीं हो सकती। 2001 के राज्य आरक्षण अधिनियम के बाद महाराष्ट्र में कुल आरक्षण 50 प्रतिशत हो गया है। सरकार के सामने दूसरी बड़ी चुनौती OBC वोटबैंक की नाराजगी से है। अगर मराठाओं को OBC में शामिल किया गया तो पहले से OBC में शामिल जातियां भड़क सकती हैं।
2018 में सरकार ने दिया था मराठाओं को आरक्षण
2018 में देवेंद्र फडणवीस की सरकार ने नौकरी सहित कई क्षेत्रों में मराठा समुदाय को 16 प्रतिशत आरक्षण दिया था। बाद में बॉम्बे हाई कोर्ट ने इसे कम कर नौकरियों में 12 प्रतिशत और शिक्षा में 13 प्रतिशत कर दिया था। हालांकि, 2021 में सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने इसे पूरी तरह रद्द कर दिया था। कोर्ट ने इसे असंवैधानिक करार देते हुए समानता के अधिकार का उल्लंघन बताया था।
न्यूजबाइट्स प्लस
महाराष्ट्र में बीते 11 दिनों में आरक्षण की मांग को लेकर 13 लोग आत्महत्या कर चुके हैं। लातूर शहर में आरक्षण की मांग को लेकर 9 महिलाएं पानी की टंकी पर चढ़ गईं थीं। इस मुद्दे पर खूब राजनीति भी हो रही है। आरक्षण के समर्थन में हिंगोली के शिवसेना (शिंदे गुट) के सांसद हेमंत पाटिल ने भी इस्तीफा दे दिया है। 29 अक्टूबर को NCP (शरद पवार) गुट का एक प्रतिनिधिमंडल राज्यपाल रमेश बैस से भी मिला था।