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    सुप्रीम कोर्ट ने नोटबंदी के फैसले को कानूनी तौर पर सही ठहराया
    सुप्रीम कोर्ट ने नोटबंदी के फैसले को कानूनी तौर पर सही ठहराया

    सुप्रीम कोर्ट ने नोटबंदी के फैसले को कानूनी तौर पर सही ठहराया

    लेखन मुकुल तोमर
    संपादन सकुल गर्ग
    Jan 02, 2023
    01:46 pm

    क्या है खबर?

    सुप्रीम कोर्ट ने आज अहम फैसला जारी करते हुए नोटबंदी के सरकार के फैसले को कानूनी तौर पर सही ठहराया।

    कोर्ट ने कहा कि सरकार ने भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के साथ विचार-विमर्श करके ये फैसला लिया था और इसे पलटा नहीं जा सकता।

    पांच जजों की बेंच ने नोटबंदी के खिलाफ दायर की गईं 58 याचिकाओं को खारिज करते हुए ये फैसला सुनाया। बेंच ने 4:1 के बहुमत से यह फैसला सुनाया।

    फैसला

    संवैधानिक बेंच ने 7 दिसंबर को सुरक्षित रखा था अपना फैसला

    सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एस अब्दुल नजीर, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस एएस बोपन्ना, जस्टिस वी रामासुब्रमण्यन और जस्टिस बीवी नागरत्ना की संवैधानिक बेंच ने नोटबंदी पर यह फैसला सुनाया।

    जस्टिस नजीर की अध्यक्षता वाली पांच जजों की इस संविधान बेंच ने पांच दिनों की सुनवाई के बाद नोटबंदी के फैसले को चुनौती देने वाली सभी 58 याचिकाओं पर 7 दिसंबर को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।

    फैसला

    सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में क्या कहा?

    जस्टिस नजीर, जस्टिस गवई, जस्टिस बोपन्ना और जस्टिस रामासुब्रमण्यन ने अपने फैसले में नोटबंदी के फैसले को सही ठहराया।

    उन्होंने कहा कि निर्णय लेने की प्रक्रिया को केवल इसलिए गलत नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि यह केंद्र सरकार का प्रस्ताव था।

    उन्होंने आगे कहा कि नोटबंदी का उद्देश्य कालाबाजारी और आतंकवाद के वित्तपोषण को समाप्त करना था, लेकिन यह प्रासंगिक नहीं है कि उद्देश्य हासिल हो पाया या नहीं।

    जानकारी

    कोर्ट ने अपने फैसले में और क्या कहा?

    सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा कि नोटबंदी किए जाने से पहले छह महीने की अंतिम अवधि के भीतर RBI और केंद्र सरकार के बीच परामर्श हुआ था।

    कोर्ट ने कहा कि RBI अधिनियम की धारा 26 (2) के तहत केंद्र सरकार को किसी भी मूल्यवर्ग के बैंक नोटों की किसी भी सीरीज को विमुद्रीकृत करने का अधिकार प्राप्त है और इस धारा के तहत करेंसी की पूरी सीरीज का विमुद्रीकरण किया जा सकता है।

    असहमति

    एक जज ने दिया नोटबंदी के खिलाफ फैसला

    जस्टिस बीवी नागरत्ना ने नोटबंदी के फैसले पर असहमति जताते हुए इसे गैर-कानूनी बताया। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ने तय प्रक्रिया के तहत नोटबंदी नहीं की थी और यह एक अधिक गंभीर मुद्दा है जिसने अर्थव्यवस्था और नागरिकों को काफी प्रभावित किया।

    उन्होंने आगे कहा कि केंद्र सरकार को नोटबंदी का फैसला अधिसूचना की जगह विधेयक के जरिए करना चाहिए था और ऐसे महत्वपूर्ण फैसले को पहले संसद के सामने रखा जाना चाहिए था।

    हलफनामा

    केंद्र ने किया था नोटबंदी का बचाव

    केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दायर हलफनामे में कहा था कि नोटबंदी का फैसला RBI के साथ सलाह-मशविरा और पर्याप्त तैयारी के बाद लिया गया था।

    तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने भी संसद में बताया था कि इस पर सरकार और RBI की बातचीत फरवरी, 2016 में शुरू हुई थी, हालांकि बातचीत और फैसले की प्रक्रिया पूरी तरह गोपनीय रखी गई थी।

    केंद्र ने कहा कि नोटबंदी करना एक सोचा-समझा फैसला था।

    दलील

    याचिकाकर्ताओं ने क्या दलील दी थी?

    याचिकाकर्ताओं की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता और पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने कहा था कि यह मुद्दा अकादमिक नहीं है और इसका फैसला सुप्रीम कोर्ट को करना चाहिए।

    उन्होंने कहा था कि नोटबंदी जैसे निर्णय के प्रभावों को वापस नहीं लिया जा सकता और कोर्ट को भविष्य के लिए कानून निर्धारित करना चाहिए ताकि भविष्य में सरकारें इस तरह के कदम न उठाएं।

    उन्होंने आगे कहा था कि नोटबंदी के लिए संसद में अलग अधिनियम की जरूरत है।

    फैसला

    8 नवंबर, 2016 को हुई थी नोटबंदी की घोषणा

    प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 8 नवंबर, 2016 की रात अचानक देश को संबोधित करते हुए कालेधन को बाहर निकालने के लिए नोटबंदी का ऐलान किया था।

    उस दौरान उन्होंने 1,000 और 500 रुपये के पुराने नोटों को चलन से बाहर कर दिया था।

    हालांकि, इस फैसले को देश की अर्थव्यवस्था के लिए बड़ा झटका माना गया और नोटबंदी अपने तय लक्ष्यों को हासिल करने में भी कामयाब नहीं हो सकी।

    इस फैसले को लेकर सरकार की आलोचना हुई थी।

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