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    सुप्रीम कोर्ट ने 10 प्रतिशत EWS आरक्षण को वैध करार दिया; किस जज ने क्या कहा?
    सुप्रीम कोर्ट ने EWS आरक्षण को वैध करार दिया

    सुप्रीम कोर्ट ने 10 प्रतिशत EWS आरक्षण को वैध करार दिया; किस जज ने क्या कहा?

    लेखन मुकुल तोमर
    Nov 07, 2022
    02:06 pm

    क्या है खबर?

    सुप्रीम कोर्ट ने आज बड़ा फैसला सुनाते हुए आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण को संवैधानिक तौर पर वैध करार दिया।

    पांच जजों की संवैधानिक बेंच ने 3:2 के बहुमत से फैसले सुनाते हुए कहा कि सरकारी नौकरियों और शिक्षा में EWS आरक्षण संविधान के बुनियादी ढांचे और समानता के सिद्धांत का उल्लंघन नहीं करता है।

    मुख्य न्यायाधीश (CJI) यूयू ललित और जस्टिस रविंद्र भट ने EWS आरक्षण को गैर-संवैधानिक करार दिया।

    मामला

    मोदी सरकार ने 2019 में दिया था EWS आरक्षण

    केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने 2019 में संविधान में 103वां संशोधन कर आर्थिक रूप से कमजोर सामान्य वर्ग के लोगों के लिए सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में एडमिशन में 10 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान किया था।

    इस आरक्षण के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में 40 याचिकाएं दाखिल की गई थीं। इनमें कहा गया था कि यह आरक्षण संविधान के बुनियादी ढांचे और समानता के सिद्धांत का उल्लंघन करता है और अधिकतम 50 प्रतिशत आरक्षण की सीलिंग पार करता है।

    जानकारी

    सितंबर में कोर्ट ने की थी सात दिन मैराथन सुनवाई

    पहले तीन जजों की सुप्रीम कोर्ट बेंच ने मामले की सुनवाई की थी, लेकिन फिर इसे पांच जजों की संवैधानिक बेंच को ट्रांसफर कर दिया गया। इस बेंच ने आज सितंबर में लगातार सात दिन सुनवाई की थी और अपना फैसला सुरक्षित रखा था।

    पहला फैसला

    जस्टिस दिनेश माहेश्वरी ने EWS आरक्षण को बताया सकारात्मक कार्रवाई

    आज फैसला सुनाते हुए जस्टिस दिनेश माहेश्वरी ने कहा कि आर्थिक आधार पर आरक्षण संविधान के बुनियादी ढांचे का उल्लंघन नहीं करता है और यह वंचित वर्ग का समावेश करने के लिए एक सकारात्मक कार्रवाई है।

    EWS आरक्षण के अधिकतम 50 प्रतिशत आरक्षण की सीमा पार करने के सवाल पर उन्होंने कहा कि 50 प्रतिशत आरक्षण की सीमा केवल सामाजिक रूप से पिछड़े वर्गों को आरक्षण के संबंध में है।

    दूसरा फैसला

    जस्टिस बेला त्रिवेदी ने कहा- जाति आधारित आरक्षण पर दोबारा विचार करने की जरूरत

    जस्टिस बेला एम त्रिवेदी ने जस्टिस माहेश्वरी के फैसले से सहमति जताते हुए अपने एक अलग फैसले में कहा कि SC/ST के अलावा अन्य समुदायों को आरक्षण देने को सकारात्मक कार्रवाई के तौर पर देखा जाना चाहिए और सरकार लोगों की जरूरतों को समझती है।

    उन्होंने कहा कि इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि SC/ST को बराबरी का मौका प्रदान करने के लिए आरक्षण लाया गया था, लेकिन 75 साल बाद आरक्षण पर दोबारा विचार करने की जरूरत है।

    तीसरा फैसला

    जस्टिस पारदीवाला ने आरक्षण को जारी रखने पर उठाए सवाल

    EWS आरक्षण को वैध करार देते हुए तीसरे जज जस्टिस जीबी पारदीवाला ने भी आरक्षण को अनिश्चित समय के लिए जारी रखने पर सवाल उठाए।

    उन्होंने कहा, "जो आगे बढ़ गए हैं, उन्हें पिछड़े वर्गों से हटा देना चाहिए ताकि जिन्हें जरूरत है, उनकी मदद की जा सके। पिछड़े वर्ग तय करने के तरीकों पर फिर से विचार करने की जरूरत है... आरक्षण अनिश्चित काल तक जारी नहीं रहना चाहिए। इससे ये एक निहित स्वार्थ बन जाता है।"

    चौथा आदेश

    जस्टिस भट ने पिछड़ी जातियों को बाहर रखने के लिए EWS आरक्षण को अवैध ठहराया

    जस्टिस रविंद्र भट ने अपने फैसले में SC/ST और OBC समुदायों को इससे बाहर रखने के लिए EWS आरक्षण को संवैधानिक रूप से अवैध करार दिया।

    उन्होंने कहा कि आर्थिक रूप से पिछड़ेपन के मामले में यह संशोधन अपराजित है, लेकिन SC/ST और OBC को इससे बाहर रखना संवैधानिक रूप से स्वीकृत नहीं है।

    उन्होंने कहा कि 38 प्रतिशत SC और 48 प्रतिशत ST गरीब होते हैं।

    CJI यूयू ललित ने उनके फैसले से सहमित जताई।

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