सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड को असंवैधानिक करार दिया, दानकर्ताओं के नाम उजागर करने का आदेश
क्या है खबर?
चुनावी बॉन्ड मामले में केंद्र सरकार को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका लगा। कोर्ट ने इस योजना को असंवैधानिक बताते हुए इस पर रोक लगा दी है।
कोर्ट ने कहा कि सरकार के पास पैसा कहां से आता है, ये जानने का अधिकार नागरिकों को है।
मुख्य न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली 5 जजों की संवैधानिक पीठ ने सर्वसम्मति से ये फैसला सुनाया। कुल 2 फैसले रहे, जिनका निष्कर्ष समान था, लेकिन रास्ते अलग थे।
फैसला
सूचना के अधिकार का उल्लंघन करती है चुनावी बॉन्ड योजना- CJI
CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने फैसले पढ़ते हुए कहा कि चुनावी बॉन्ड योजना सूचना के अधिकार और अनुच्छेद 19(1)(A) का उल्लंघन करती है।
उन्होंने कि राजनीतिक पार्टियों की फंडिंग के बारे में जानकारी होने से लोगों को अपना मताधिकार इस्तेमाल करने में स्पष्टता मिलती है।
कोर्ट ने कहा कि काले धन पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से सूचना के अधिकार का उल्लंघन उचित नहीं है और फंडिंग की जानकारी उजागर न करना उद्देश्य के विपरीत है।
SBI
SBI और चुनाव आयोग को 3 हफ्तों में देनी होगी दानदाताओं की जानकारी
कोर्ट ने भारतीय स्टेट बैंक (SBI) के चुनावी बॉन्ड जारी करने पर तुरंत रोक लगा दी है। कोर्ट ने SBI को आदेश दिया कि वो बॉन्ड के माध्यम से मिले दान का विवरण और योगदान प्राप्त करने वाले राजनीतिक पार्टियों की जानकारी 13 मार्च तक चुनाव आयोग को सौंपे।
आयोग को इस जानकारी को अपनी वेबसाइट पर प्रकाशित करना होगा। यानी किस कंपनी और व्यक्ति ने किस पार्टी को कितना दान दिया, इसकी जानकारी 13 मार्च तक सामने आ जाएगी।
बॉन्ड
पार्टियों को वापस करने होंगे इस्तेमाल नहीं किए गए बॉन्ड
कोर्ट ने पार्टियों को इस्तेमाल नहीं किए गए बॉन्ड वापस करने का भी आदेश दिया है।
कोर्ट ने कहा कि ऐसे चुनावी बॉन्ड जो 15 दिनों की वैधता अवधि के भीतर हैं और उन्हें राजनीतिक पार्टियों द्वारा अभी तक भुनाया नहीं गया है, उन्हें क्रेता को वापस करना होगा। इसके बाद SBI बॉन्ड खरीदने वाले को राशि वापस करेगा।
हालांकि, ये फैसला इस्तेमाल कर लिए गए बॉन्ड पर लागू नहीं होगा।
कंपनी
कोर्ट ने कंपनी अधिनियम में बदलाव भी असंवैधानिक बताए
कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड के लिए कंपनी अधिनियम में किए गए बदलावों को भी असंवैधानिक करार दिया।
कोर्ट ने कहा, "कंपनियों द्वारा राजनीति दान व्यावसायिक लेनदेन है। कंपनियों और व्यक्तियों के साथ एक जैसा व्यवहार करने का धारा 182 का संशोधन मनमाना है। संशोधन से पहले घाटे में चल रही कंपनियां योगदान नहीं दे पाती थीं।"
कोर्ट ने कहा कि कंपनियों द्वारा दिया जाने वाला चंदा 'लाभ के बदले लाभ' की संभावित भावना पर आधारित होता है।
सुनवाई
3 दिन तक चली थी सुनवाई
इस मामले पर पिछले साल 31 अक्टूबर को सुनवाई शुरू की थी। लगातार 3 दिन सुनवाई के बाद पीठ ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
इससे पहले कोर्ट ने कहा था कि चुनावी बॉन्ड प्रक्रिया चयनात्मक गुमनामी और चयनात्मक गोपनीयता प्रदान करती है, जो कि एक परेशानी है। कोर्ट ने कहा था कि अगर सभी राजनीतिक पार्टियों को समान अवसर नहीं मिलेंगे तो योजना को लेकर अस्पष्टता बनी रहेगी।
सरकार
सरकार ने क्या दलील दी थी?
सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि अगर दानदाता नगद चंदा देगा तो पता चल जाएगा कि उसने किसे कितना पैसा दिया। इससे दूसरी पार्टियां नाराज हो जाएंगी।
इस पर कोर्ट ने कहा था, "अगर ऐसा है तो फिर सत्ताधारी पार्टी विपक्षियों के चंदे की जानकारी क्यों लेता है? क्या भारतीय स्टेट बैंक (SBI) के पास दानदाता की जानकारी नहीं है? एजेंसियों के लिए भी गोपनीय नहीं है?"
याचिकाकर्ता
याचिकाकर्ताओं ने क्या सवाल उठाए थे?
याचिकाकर्ताओं ने कहा था कि चुनावी बांड से जुड़ी राजनीतिक फंडिंग पारदर्शिता को प्रभावित करती है और मतदाताओं के सूचना के अधिकार का उल्लंघन करती है।
याचिककर्ताओं के वकील प्रशांत भूषण ने कहा था, "सत्तारूढ़ पार्टी को कुल बॉन्ड का 60 प्रतिशत से ज्यादा मिला। अगर नागरिक को उम्मीदवारों, उनकी संपत्ति और आपराधिक इतिहास के बारे में जानने का अधिकार है तो यह भी पता होना चाहिए कि राजनीतिक पार्टियों को कौन फंडिंग कर रहा है?"
बॉन्ड
क्या होता है चुनावी बॉन्ड?
चुनावी बॉन्ड एक सादा कागज होता है, जिस पर नोटों की तरह उसकी कीमत छपी होती है। इसे कोई भी व्यक्ति या कंपनी खरीदकर अपनी मनपंसद राजनीतिक पार्टी को चंदे के तौर पर दे सकता है।
बॉन्ड खरीदने वाले की पहचान गुप्त रहती है। केंद्र सरकार ने 2017 के बजट में इसकी घोषणा की थी, जिसे लागू 2018 में किया गया। हर तिमाही में SBI 10 दिन के लिए चुनावी बॉन्ड जारी करता है।