#NewsBytesExplainer: चुनावी बॉन्ड मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा, जानें सुनवाई में क्या-क्या हुआ
क्या है खबर?
चुनावी बॉन्ड को लेकर दायर हुई अलग-अलग याचिकाओं पर सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया है। इस मामले पर 3 दिन चली सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं और केंद्र सरकार ने अलग-अलग तर्क दिए।
बता दें कि मुख्य न्यायाधीश (CJI) जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में 5 जजों की संवैधानिक पीठ इस मामले की सुनवाई कर रही थी।
आइए समझते हैं कि सुनवाई में अब तक क्या-क्या हुआ।
पहला दिन
पहले दिन की सुनवाई में क्या हुआ?
पहले दिन की सुनवाई में याचिककर्ताओं के वकील प्रशांत भूषण ने कहा, "सत्तारूढ़ पार्टी को कुल बॉन्ड का 60 प्रतिशत से ज्यादा मिला। अगर नागरिक को उम्मीदवारों, उनकी संपत्ति और आपराधिक इतिहास के बारे में जानने का अधिकार है तो यह भी पता होना चाहिए कि राजनीतिक पार्टियों को कौन फंडिंग कर रहा है?"
इस पर CJI ने कहा कि हो सकता है दान देने वाला व्यक्ति खुद ही अपनी पहचान छिपाना चाहता हो, क्योंकि वो कारोबारी है।
पारदर्शिता
तुषार मेहता बोले- बॉन्ड से पारदर्शिता आई
दूसरे दिन की सुनवाई में केंद्र सरकार की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, "अगर दानदाता नगद चंदा देगा तो पता चल जाएगा कि उसने किसे कितना पैसा दिया। इससे दूसरी पार्टियां नाराज हो जाएंगी।"
इस पर पीठ ने कहा कि अगर ऐसा है तो फिर सत्ताधारी दल विपक्षियों के चंदे की जानकारी क्यों लेता है?
CJI ने कहा, "क्या भारतीय स्टेट बैंक (SBI) के पास दानदाता की जानकारी नहीं है? एजेंसियों के लिए भी गोपनीय नहीं है?"
CJI
CJI बोले- चुनावी बॉन्ड में गोपनीयता चयनात्मक है
CJI ने मेहता से पूछा, "जिसने बॉन्ड खरीदा, वही दानदाता है ये कैसे पता चलेगा? हो सकता है खरीदार दानदाता न हो। खरीदार की बैलेंस शीट में बॉन्ड की रकम दिखाई देगी, लेकिन असली दानदाता की बैलेंस शीट में नहीं। ये भी नहीं पता चलेगा कि कौन सा बॉन्ड खरीदा। इसके साथ दिक्कत है कि ये केवल चयनात्मक गोपनीयता प्रदान करता है।"
इसके बाद मेहता ने कहा, "दानदाता का नाम गोपनीय रखना उसे उत्पीड़न/प्रतिशोध से बचाने के लिए जरूरी है।"
सवाल
CJI ने पूछा- सत्ताधारी पार्टी को क्यों मिलता है ज्यादा चंदा?
सुनवाई के दौरान CJI ने पूछा, "क्या वजह है सत्ता में आने वाली या आ चुकी पार्टियों को ज्यादा चंदा मिलता है?"
इस पर मेहता ने कहा, "मेरा निजी तौर पर मानना है कि कई बार तो चंदादाताओं को उस पार्टी की सरकार में कारोबार के अनुकूल स्थितियां लगती हैं। इससे कारोबार बढ़ने की उम्मीद रहती है। चंदा देने वाला हमेशा पार्टी की मौजूदा हैसियत को ध्यान में रख कर चंदा देता है।"
चंदा
कोर्ट ने मांगी पार्टियों को मिली चंदे की जानकारी
तीसरे दिन की सुनवाई में कोर्ट ने चुनाव आयोग से सभी पार्टियों को 30 सितंबर तक बॉन्ड के जरिए मिले पैसे की जानकारी मांगी है।
CJI ने पूछा, "बॉन्ड की क्या जरूरत है, सरकार वैसे भी जानती है कि चंदा कौन दे रहा है।"
इस पर मेहता ने कहा, "किसने कितना पैसा दिया, सरकार नहीं जानना चाहती। चंदा देने वाला ही अपनी पहचान छिपाना चाहता है। अगर मैं कांग्रेस को चंदा दूं तो नहीं चाहूंगा कि भाजपा को पता चले।"
बॉन्ड
क्या होता है चुनावी बॉन्ड?
चुनावी बॉन्ड एक सादा कागज होता है, जिस पर नोटों की तरह उसकी कीमत छपी होती है। इसे कोई भी व्यक्ति या कंपनी खरीदकर अपनी मनपंसद राजनीतिक पार्टी को चंदे के तौर पर दे सकता है।
बॉन्ड खरीदने वाले की पहचान गुप्त रहती है।
केंद्र सरकार ने 2017 के बजट में इसकी घोषणा की थी, जिसे लागू 2018 में किया गया। SBI हर तिमाही में 10 दिन के लिए चुनावी बॉन्ड जारी करता है।
भाजपा
बॉन्ड के जरिए भाजपा को मिला आधे से ज्यादा चंदा
एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) के मुताबिक, मार्च, 2018 से जुलाई, 2023 के बीच पार्टियों को चुनावी बॉन्ड के रूप में 13,000 करोड़ रुपये का दान मिला।
2018 और 2022 के बीच SBI द्वारा 9,208 करोड़ रुपये के चुनावी बॉन्ड बेचे गए थे। इनकी 58 प्रतिशत राशि भाजपा को मिली।
वित्त वर्ष 2017-18 और 2021-22 के बीच पार्टियों को बॉन्ड से मिलने वाले चंदे में 743 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है।