प्रवासी मजदूरों के पलायन संकट से सही तरीके से नहीं निपट पाई सरकारें- नीति आयोग CEO
क्या है खबर?
देश में बढ़ते कोरोन वायरस के प्रसार को रोकने के लिए देशभर में लागू किए गए लॉकडाउन ने प्रवासी मजदूरों को सबसे ज्यादा प्रभावित किया है।
सरकारों के प्रयासों के बाद भी उन्हें अपेक्षित राहत नहीं पहुंचाई जा सकी है। अब इस मामले में नीति आयोग के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (CEO) अमिताभ कांत ने बड़ा बयान दिया है।
उन्होंने कहा कि लॉकडाउन में उपजे प्रवासी मजदूरों के पलायन संकट से केंद्र और राज्य सरकारें बेहतर तरीके से नहीं निपट पाई।
शुरुआत
लॉकडाउन ने प्रवासी मजदूरों को किया पलायन के लिए मजबूर
बता दें कि देश में कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने के लिए केंद्र सरकार ने 25 मार्च से देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा की थी।
इसके कारण सभी उद्योग और निर्माण कार्य बंद हो गए। इसी तरह सभी बाजारों सूने हो गए।
इसका सबसे बड़ा खामियाजा रोजगार के लिए बड़े शहरों में रह रहे मजदूरों को उठाना पड़ा।
नौकरी के चले जाने और खाने-पीने की व्यवस्था नहीं होने पर उन्हें अपने घरों की और लौटने के लिए मजबूर होना पड़ा।
यात्रा
प्रवासी मजदूरों का अपने स्तर पर यात्रा करना पड़ा भारी
लॉकडाउन के सार्वजनिक परिवहन सुविधाओं के भी बंद होने से मजदूरों ने घर पहुंचने के लिए हजारों किलोमीटर की पैदल यात्रा करना शुरू कर दिया।
कुछ तो रेल पटरियों के सहारे चल रहे थे तो कुछ ट्रकों में अवैध रूप से सवार होकर निकल लिए।
इसके बाद देशभर में हुए विभिन्न हादसों में दर्जनों मजदूरों की मौत हो गई।
सरकार की ओर से श्रमिक स्पेशल ट्रेन चलाने के बाद भी जानकारी के अभाव में सैकड़ों मजदूर पैदल यात्रा करते रहे।
बयान
प्रवासी मजदूरों के लिए और भी बेहतर काम किया जा सकता था- CEO
CEO कांत ने NDTV से कहा कि लॉकडाउन के दौरान केंद्र व राज्य सरकारें प्रवासी मजदूरों का ध्यान रखने के लिए बहुत कुछ बेहतर कर सकती थीं। सरकार लॉकडाउन से कोरोना को फैलने से रोकने में तो काफी हद तक कामयाब हो गई, लेकिन प्रवासी मजदूरों के संकट को खराब तरीके से नियंत्रित किया गया।
उनके अनुसार प्रवासी मजदूरों के लिए स्थानीय स्तर, जिला स्तर और राज्य स्तर तक और भी बहुत ज्यादा बेहतर कर किया जा सकता था।
भूमिका
भारत जैसे बड़ी आबादी वाले देश में सीमित होती है केंद्र की भूमिका- कांत
पिछले दो महीनों में सरकार की सबसे बड़ी विफलता के बारे में पूछे जाने पर कांत ने कहा कि प्रवासी मजदूर संकट सबसे बड़ी चुनौती बन गया है, लेकिन, भारत जैसी बड़ी आबादी वाले देश में केंद्र की भूमिका सीमित होती है।
उन्होंने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में देश में ऐसे कानून बनाए गए हैं, जिनसे अर्थव्यवस्था में अनौपचारिक श्रमिकों की भारी मात्रा में वृद्धि हुई है। ऐसे में इस संकट से योजनाबद्ध तरीके से निपटा जा सकता था।
जिम्मेदारी
प्रवासी मजदूरों के संकट को संभालना राज्य सरकारों की जिम्मेदारी थी- कांत
कांत ने कहा कि राज्य सरकारों ने सही तरह से निर्णय नहीं किया। कुछ राज्य अपने मजदूरों को वापस लाने के लिए तैयार हुए तो कुछ संक्रमण के डर उन्हें नहीं लाना चाहते थे।
ऐसे में यह एक बड़ी चुनौती बन गया था। राज्य सरकारों की जिम्मेदारी थी कि वो ये सुनिश्चित करतीं कि हर मजदूर का बेहतर तरीके से ध्यान रखा जाए, लेकिन ऐसा नहीं हुआ और इसका खामियाजा प्रवासी मजदूरों को उठाना पड़ा है।
बयान
"प्रवासी मजदूरों के लिए केंद्र ने बहुत कुछ किया"
कांत ने कहा कि प्रवासी मजदूरों के लिए केंद्र ने बहुत कुछ किया है। 92,000 सिविल सोसाइटी और गैर-सरकारी संगठनों को बुलाया गया।इन सभी ने प्रवासी मजदूरों को भोजन-पानी उपलब्ध कराया है। सिविल सोसाइटी ने व्यक्तिगत रूप से काम किया है।
चुनौती
मृत्यु दर को कम रखना है बड़ी चुनौती
कांत ने कहा कि वह कोरोनो मामलों की संख्या के बारे में उतना चिंतित नहीं थे जितना कि पहले से अन्य बीमारियों से ग्रसित मरीजों की देखभाल करने के बारे में थे।
उन्होंने कहा कि सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि अन्य देशों की तुलना में देश की मृत्यु दर, जो बहुत कम है, वही बनी रहे।
हॉटस्पॉट्स के बारे में उन्होंने कहा कि एक गहन नियंत्रण रणनीति की आवश्यकता है। इसी से महामारी से निपटा जा सकता है।