#NewsBytesExplainer: सरकार चुनाव अधिकारियों की नियुक्ति प्रक्रिया में क्या बदलाव कर रही, इस पर विवाद क्यों?
चुनाव आयोग के अधिकारियों की नियुक्ति की प्रक्रिया तय करने वाला केंद्र सरकार का नया विधेयक विवादों में है। 'मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त विधेयक, 2023' नामक इस विधेयक के जरिए सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश को पलटते हुए मुख्य न्यायाधीश (CJI) को चुनाव अधिकारियों की नियुक्ति करने वाले पैनल से बाहर कर दिया गया है। विपक्ष इस पर सवाल उठा रहा है। आइए आपको इस विवाद और चुनाव आयुक्त चुनने की प्रक्रिया के बारे में बताते हैं।
केंद्र के विधेयक में क्या है?
विधेयक के अनुसार, प्रधानमंत्री, लोकसभा में नेता विपक्ष और प्रधानमंत्री द्वारा मनोनीत एक केंद्रीय मंत्री की 3 सदस्यीय चयन समिति की सिफारिश पर राष्ट्रपति मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति करेंगे। कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता वाली 3 सदस्यीय खोज समिति प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली इस चयन समिति को 5 नाम सुझाएगी, जिसके बाद चयन समिति इनमें से एक नाम चुनकर उसकी नियुक्ति की सिफारिश राष्ट्रपति के पास भेजेगी।
नेता विपक्ष न हो तो क्या होगा?
विधेयक में कहा गया है कि लोकसभा में नेता विपक्ष न होने की स्थिति में सदन की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी का नेता चयन समिति में शामिल होगा। अभी यह पद कांग्रेस के अधीर रंजन चौधरी के पास है।
कौन बन सकेगा चुनाव आयुक्त और क्या सुविधाएं मिलेंगी?
नए विधेयक के अनुसार, चुनाव आयुक्त के पद पर केवल उस व्यक्ति की नियुक्ति हो सकेगी, जो केंद्रीय सचिव के समकक्ष किसी पद पर अपनी सेवाएं दे चुका हो या दे रहा हो। चुनाव आयुक्त का वेतन, भत्ता और अन्य सेवा शर्तें भी केंद्रीय सचिव जैसी ही होंगी। चुनाव आयोग अधिनियम, 1991 के अनुसार, अभी तक चुनाव आयुक्त का वेतन और उनकी सेवाएं सुप्रीम कोर्ट के एक जज के समान होती थीं।
इससे पहले चुनाव अधिकारी नियुक्त करने की क्या प्रक्रिया थी?
2 मार्च, 2023 से पहले तक प्रधानमंत्री और कैबिनेट की सिफारिश पर चुनाव अधिकारियों की नियुक्ति होती थी। कानून मंत्री इन पदों पर नियुक्ति के लिए कुछ नाम सुझाते थे, जिनमें से एक नाम चुनकर प्रधानमंत्री नियुक्ति के लिए राष्ट्रपति के पास भेजते थे। चाहें पुरानी सरकारें हों या भाजपा की मौजूदा सरकार, सभी अपनी पसंद के नामों को ही राष्ट्रपति के पास भेजते थे। हालांकि, 2 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा फैसला सुनाया, जिसने व्यवस्था को बदल दिया।
क्या था सुप्रीम कोर्ट का फैसला?
2 मार्च को सुप्रीम कोर्ट की 5 सदस्यीय बेंच ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा था कि अब से प्रधानमंत्री, लोकसभा में नेता विपक्ष और CJI की समिति चुनाव अधिकारियों की नियुक्ति पर सिफारिश करेगी। कोर्ट ने कहा था कि चुनाव की पवित्रता बनाए रखने के लिए चुनाव आयोग किसी भी प्रकार के राजनीतिक दबाव से पूरी तरह मुक्त होना चाहिए और इसके लिए जरूरी है कि चुनाव अधिकारियों की नियुक्ति की प्रक्रिया निष्पक्ष हो।
चुनाव अधिकारियों की नियुक्ति पर संविधान क्या कहता है?
संविधान के अनुच्छेद 324 में चुनाव आयोग और इसके अधिकारियों की नियुक्ति पर बात की गई है। इस अनुच्छेद के खंड 2 यानि अनुच्छेद 324(2) में कहा गया था कि संसद द्वारा इस संबंध में बनाए गए कानून के प्रावधानों के तहत राष्ट्रपति मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति करेंगे। हालांकि, अभी तक ऐसा कोई कानून नहीं बनाया गया था, जिसके कारण इस संवैधानिक रिक्ति को भरने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया था।
केंद्र के विधेयक पर विवाद क्यों?
संविधान के अनुच्छेद 324(2) में जिस कानून का जिक्र किया गया है, केंद्र का विधेयक उसकी जगह लेगा। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट का फैसला बेअसर हो जाएगा और CJI चुनाव अधिकारियों की चयन प्रक्रिया से बाहर हो जाएंगे। CJI को बाहर करने के कारण इसका विरोध हो रहा है। इसके अलावा विपक्ष का कहना है कि चयन समिति में बहुमत के कारण सरकार जिसे चाहे उसे नियुक्त कर सकेगी और ऐसा करके वह चुनाव आयोग पर कब्जा करना चाहती है।
अन्य देशों में कैसे नियुक्त होते हैं चुनाव अधिकारी?
अन्य देशों की बात करें तो अमेरिका में राष्ट्रपति और संसद के उच्च सनद सीनेट की मंजूरी के बाद चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति होती है। कनाडा में संसद का निचला सदन 10 साल के लिए मुख्य चुनाव अधिकारी नियुक्त करता है और यह अधिकारी सीधे राष्ट्रपति के अंतर्गत काम करता है। यूनाइटेड किंगडम (UK) में स्पीकर द्वारा बनाई गई संसदीय समिति सिफारिश करती है और फिर संसद के निचले सदन की मंजूरी के बाद राजा उनकी नियुक्ति करते हैं।