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    लंपी वायरस: देश में अब तक 57,000 जानवरों की मौत, केंद्र ने वैक्सीनेशन बढ़ाने को कहा
    देश के 15 राज्यों के 175 जिलों में फैला लंपी वायरस का प्रकोप।

    लंपी वायरस: देश में अब तक 57,000 जानवरों की मौत, केंद्र ने वैक्सीनेशन बढ़ाने को कहा

    लेखन भारत शर्मा
    Sep 09, 2022
    04:50 pm

    क्या है खबर?

    देश में जानवरों में फैला लंपी वायरस का प्रकोप थमने का नाम नहीं ले रहा है। इस वायरस ने देश के 15 राज्यों के 175 जिलों में पैर पसार लिए हैं।

    इसके चलते अब तक 57,000 जानवरों की मौत हो चुकी है और 12 लाख से अधिक संक्रमित है।

    पशुपालन और डेयरी विभाग की ओर से जारी आंकड़ों में यह खुलासा हुआ है।

    इसके चलते केंद्र सरकार ने प्रभावित राज्यों को जानवरों में वैक्सीनेशन की रफ्तार बढ़ाने को कहा है।

    प्रभावित

    किन राज्यों में फैला लंपी वायरस का प्रकोप?

    केंद्रीय मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्री पुरुषोत्तम रूपाला ने कहा कि गुजरात, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, आंध्र प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड सहित 15 राज्यों के 175 जिलों में लंपी वायरस के मामले सामने आ चुके हैं।

    उन्होंने कहा कि स्थिति का आकलन करने और नियंत्रण कार्यों की निगरानी के लिए पांच राज्यों का दौरा भी किया है। मंत्रालय स्थिति पर नजर रखे हुए है। राज्यों को वैक्सीनेशन बढ़ाने को भी कहा है।

    मौत

    देशभर में हुई 57,000 जानवरों की मौत

    पशुपालन और डेयरी विभाग के सचिव जतिंद्र नाथ स्वैन ने कहा कि देश में लंपी वायरस की चपेट में आने से अब तक 57,000 जानवरों की मौत हो चुकी है और 12 लाख से अधिक को संक्रमित पाया जा चुका है।

    उन्होंने कहा कि राजस्थान में इस वायरस का सबसे अधिक प्रकोप है और वहां अब तक 37,000 जानवरों की मौत हो चुकी है। यहां जोधपुर, बाड़मेर, श्रीगंगानगर, बीकानेर, हनुमानगढ़ और चुरू जिलों की हालत सबसे अधिक खराब है।

    बयान

    पंजाब और हरियाणा में नियंत्रण में है स्थिति- मंत्री रूपाला

    मंत्री रूपाला ने कहा कि लंपी रोग के खिलाफ बकरियों के चेचक की वैक्सीन बहुत प्रभावी साबित हो रही है। ऐसे में प्रभावित राज्यों की सरकारों को वैक्सीनेशन बढ़ाने के लिए कहा गया है।

    उन्होंने कहा कि गुजरात में स्थिति में सुधार हुआ है, जबकि पंजाब और हरियाणा में बीमारी नियंत्रण में है। राजस्थान में अभी भी बीमारी का प्रकोप बना हुआ है और चिकित्सा अधिकारी उस पर नियंत्रण के लिए आवश्यक रणनीति बनाने में जुटे हुए हैं।

    जानकारी

    मृत जानवरों को प्रोटोकॉल से दफनाने की अपील

    मंत्री रूपाला ने देश भर के लोगों से लंपी की चपेट में आने से दम तोड़ने वाले जानवरों को प्रोटोकॉल के अनुसार ही दफनाने की अपील की है। उन्होंने कहा कि वैक्सीनेशन और प्रोटोकॉल के पालन से ही इस बीमारी से बचा जा सकता है।

    सफलता

    भारत ने लंपी वायरस के खिलाफ इजाद की वैक्सीन

    भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के दो संस्थानों ने हाल ही में लंपी वायरस के खिलाफ एक स्वदेशी वैक्सीन विकसित करने में सफलता हासिल की है।

    इससे पहले इस वायरस के खिलाफ कोई आधिकारिक वैक्सीन नहीं थी।

    हरियाण के हिसार में स्थित ICAR-नेशनल रिसर्च सेंटर ऑन इक्विन्स ने उत्तर प्रदेश के इज्जतनगर स्थित ICAR-भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (IVRI) के सहयोग से लाइव एटेन्यूएटेड LSD वैक्सीन 'लंपी-प्रोवाकाइंड' (Lumpi-ProVacInd) विकसित की है।

    पृष्ठभूमि

    क्या है लंपी वायरस?

    पशु चिकित्सा विशेषज्ञों के अनुसार, लंपी वायरस (LSD) जानवरों में होने वाला एक बेहद संक्रामक चर्म रोग है। यह पॉक्स वायरस से जानवरों में फैलती है।

    यह बीमारी मच्छर और मक्खी के जरिए एक से दूसरे पशुओं तक पहुंचती है। इसके अलावा यह खून चूसने वाले कीड़े, मक्खियों की कुछ प्रजातियों, दूषित भोजन और पानी के जरिए भी फैलता है।

    संक्रमण के बाद समय रहते इलाज नहीं होने पर जानवर तड़पकर दम भी तोड़ देते हैं।

    लक्षण

    क्या है लंपी वायरस के लक्षण?

    इस बीमारी में पशु के शरीर पर छोटी-छोटी गाठें बनती है जो बाद में बड़ी हो जाती हैं। जानवरों के शरीर पर जख्म दिखने लगते हैं और वह खाना कम कर देता है। उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता भी घटने लगती है।

    शुरूआत में पशु को दो से तीन दिन के लिए हल्का बुखार रहता है। जानवरों के मुंह, गले, श्वास नली तक इस बीमारी का असर दिखता है। मुंह से लार निकलने के साथ आंख-नाक से भी स्राव होता है।

    अन्य

    उपचार नहीं मिलने पर हो सकती है जानवरों की मौत

    विशेषज्ञों के अनुसार, इस बीमारी के कारण जानवरों के लिंफ नोड में सूजन, पैरों में सूजन, दूध उत्पादकता में कमी, गर्भपात, बांझपन की समस्या के साथ समय पर उपचार नहीं मिलने पर मौत भी हो जाती है।

    हालांकि, ज्यादातर संक्रमित जानवरों दो से तीन सप्ताह में ठीक हो जाते हैं, लेकिन दूध के उत्पादन में कई सप्ताह तक कमी बनी रहती है।

    इस बीमारी में मृत्यु दर 15 प्रतिशत है और संक्रमण दर 10-20 प्रतिशत रहती है।

    जानकारी

    1929 में सामने आया था इस बीमारी का पहला मामला

    विशेषज्ञों के अनुसार, इस बीमारी का पहला मामला आज से 94 साल पहले यानी 1929 में अफ्रीका में सामने आया था। उसके बाद यह अन्य देशों में पहुंच गई। वर्तमान वायरस अप्रैल 2022 में पाकिस्तान के रास्ते सबसे पहले राजस्थान और गुजरात पहुंचा था।

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