दिव्यांग बेटे को ले जाने के लिए मजबूर पिता ने चुराई साइकिल, चिट्ठी छोड़कर मांगी माफी
कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए देश में लागू किए गए लॉकडाउन ने प्रवासी मजदूरों पर सबसे ज्यादा असर डाला है। नौकरी जाने के बाद रोजी-रोटी के संकट को देखकर ये मजदूर जैसे-तैसे अपने घर पहुंचना चाह रहे हैं। इसी चाहत ने एक दिव्यांग बच्चे के पिता को उसे घर ले जाने के लिए साइकिल चोरी करने पर मजबूर कर दिया। साइकिल चुराने के बाद मजबूर पिता ने चिट्ठी के जरिए मालिक से माफी भी मांगी है।
दिव्यांग बेटे को घर ले जाने के लिए चुराई साइकिल
चिट्ठी में लिखे पते के अनुसार बरेली निवासी इकबाल खान राजस्थान के भरतपुर में मजदूरी करता था, लेकिन लॉकडाउन में नौकरी जाने के कारण वह परिवार सहित वापस बरेली जाने को मजबूर हो गया। उसका एक दिव्यांग बेटा भी है। ऐसे में उसे पैदल ले जाना मुश्किल था। इसके चलते उसने मजबूरी में रारह के निकट सहनावली गांव से साहबसिंह की साइकिल चुरा ली। इसके जरिए वह अपने दिव्यांग बेटे को लेकर बेरली के लिए रवाना हो गया।
साइकिल चुराते समय माफी मांगने के लिए छोड़ी भावनात्मक चिट्ठी
साइकिल चुराते समय शायद इकबाल का ईमान गवाही नहीं दे रहा था। उसने साइकिल उठाते हुए उसके मालिक के नाम एक चिट्ठी लिखी और माफी मांगी। उसने चिट्ठी में लिखा, 'मैं आपकी साइकिल लेकर जा रहा हूं। हो सके तो मुझे माफ कर देना जी। क्योंकि मेरे पास कोई साधन नहीं है और मेरा एक बेटा है उसके लिए मुझे ऐसा करना पड़ा क्योंकि वो विकलांग है, चल नहीं सकता। हमें बरेली तक जाना है। आपका कसूरवार'
चिट्ठी पढ़कर मालिक की आंखों में आ गए आंसू
इंडिया टुडे के अनुसार, साइकिल मालिक साहिब सिंह ने बताया कि उसने रात को साइकिल बहुत ढूंढा, लेकिन नहीं मिली। अगली सुबह बरामदे में झाड़ू लगाते हुए समय कागज का एक छोटा सा टुकड़ा मिला। इसमें एक मजबूर पिता की मजबूरी के रूप में लिखे शब्दों को पढ़कर उसकी आंखों में आंसू आ गए। उसने बताया कि वह पहले अपनी साइकिल चोरी होने को लेकर बहुत गुस्से में था, लेकिन चिट्ठी पढ़ने के बाद गुस्सा संतोष में बदल गया है।
इकबाल के प्रति नहीं है कोई द्वेष- साहिब
साहिब सिंह ने बताया कि उसके मन में कोई द्वेष नहीं है बल्कि यह साइकिल सही मायने में किसी के दर्द को कम करने के काम आ रही है। उसका मन बहुत ही खुश हो रहा है। इकबाल ने मजबूरी में यह काम किया है।
लोगों ने प्रवासी मजदूरों की बिगड़ी स्थिति के लिए सरकार को ठराया जिम्मेदार
इस घटना के बाद लोगों ने प्रवासी मजदूरों की इस स्थिति के लिए सरकार को जिम्मेदार ठहराया है। समाजसेवी राजीव गुप्ता का कहना है कि यह घटना मजदूरों की बेबसी और सरकारों की विफलता को दर्शाती है। लॉकडाउन लगाने से पहले सरकार को उनके लिए परिवहन की व्यवस्था करनी चाहिए थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। कई मजदूरों कई दिनों से भूखे हैं, न उनको खान मिल रहा है और न ही वो अपने परिवार को खिला पा रहे हैं।
पैदल जाने को मजबूर हो रहे हैं प्रवासी मजदूर
कहने को तो सरकार की ओर से प्रवासी मजदूरों को उनके घर तक पहुंचाने के लिए स्पेशल ट्रेनों का संचालन किया जा रहा है, लेकिन इनमें सभी मजदूरों का नंबर नहीं आ रहा है। ऐसे में प्रवासी मजदूर भूखे-प्यासे ही पैदल, साइकिल और अन्य वाहननों से जाने को मजबूर हैं। इस दौरान हो रही दुर्घटनाओं में प्रतिदिन प्रवासी मजदूरों की जान जा रही है। इसके बाद भी उनकी सुरक्षा के लिए कोई पुख्ता बंदोबस्त नहीं किया जा रहे हैं।