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    भारत में अमीर और गरीब के लिए नहीं हो सकती है अलग-अलग कानून व्यवस्था- सुप्रीम कोर्ट
    मध्य प्रदेश की बसपा विधायक के पति को हत्या के मामले में जमानत दिए जाने पर सुप्रीम कोर्ट ने तीखी टिप्पणी।

    भारत में अमीर और गरीब के लिए नहीं हो सकती है अलग-अलग कानून व्यवस्था- सुप्रीम कोर्ट

    लेखन भारत शर्मा
    Jul 22, 2021
    05:10 pm

    क्या है खबर?

    सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश की बसपा विधायक रामबाई को गुरुवार को बड़ा झटका दिया है।

    सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश के देवेंद्र चौरसिया हत्याकांड मामले में हाईकोर्ट द्वारा विधायक के पति गोविंद सिंह को दी गई जमानत को रद्द कर दिया और हाई कोर्ट के फैसले की निंदा की।

    कोर्ट ने यह भी कहा कि भारत में अमीर और गरीबों के लिए दो अलग-अलग कानून व्यवस्थाएं नहीं हो सकती है। सभी को एक ही व्यवस्था रखा जाना चाहिए।

    प्रकरण

    दो साल पहले कांग्रेस नेता देवेंद्र चौरसिया की हुई थी हत्या

    बता दें कि बसपा से कांग्रेस में आए दमोह के कद्दावर नेता देवेंद्र चौरसिया की 15 मार्च, 2019 को उन्हीं के क्रशर प्लांट पर हत्या कर दी गई थी।

    इस मामले में चौरसिया के परिजनों ने बसपा विधायक रामबाई के पति गोविंद सिंह, देवर चंदू समेत कुछ अन्य लोगों को आरोपी बनाते हुए मामला दर्ज कराया था।

    हालांकि, इसके बाद पुलिस ने अन्य आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया, लेकिन मुख्य आरोपी गोविंद सिंह को दो साल तक नहीं पकड़ पाई।

    जानकारी

    विधायक के पति के खिलाफ वारंट जारी करने वाले न्यायाधीश को मिली धमकी

    इस मामले में फरवरी में दमोह के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश आरपी सोनकर ने गोविंद सिंह के खिलाफ वारंट जारी किया था। बाद में उन्होंने जिला न्यायाधीश को पत्र लिखकर जिले के पुलिस अधीक्षक और दूसरे पुलिस अधिकारियों पर धमकी का आरोप लगाया था।

    याचिका

    देवेंद्र सिंह के बेटे ने सुप्रीम कोर्ट में दायर की थी याचिका

    मामले में मृतक देवेंद्र सिंह के बेटे ने सोमेश चौरसिया ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दारय कर गोविंद सिंह की गिरफ्तारी की मांग की थी।

    इस पर 12 मार्च को सुनवाई करते हुए जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की पीठ ने पुलिस को फटकार लगाई थी और पूरी घटना को जंगलराज बताया था।

    कोर्ट ने राज्य के पुलिस महानिदेशक (DGP) को गोविंद सिंह को तुरंत गिरफ्तार करने का निर्देश दिए थे और दमोह SP को बर्खास्त करने की चेतावनी दी थी।

    गिरफ्तारी

    पुलिस ने 28 मार्च को किया था गोविंद सिंह को गिरफ्तार

    सुप्रीम कोर्ट की सख्ती के बाद 28 मार्च को आरोपी गोविंद सिंह को भिंड के बस स्टैंड से गिरफ्तार कर लिया था। उसके बाद उसने दमोह कोर्ट में जमानत की याचिका दायर की थी, लेकिन न्यायाधीश ने अपराध की गंभीरता को देखते हुए उसे खारिज कर दिया था।

    इसके बाद गोविंद ने हाई कोर्ट का रुख किया था। इस पर हाई कोर्ट ने उन्हें जमानत दे दी थी। इसके बाद सोमेश ने आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।

    रद्द

    सुप्रीम कोर्ट ने रद्द की जमानत

    मामले में सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को सुनवाई करते हुए गोविंद सिंह की जमानत को रद्द कर दिया।

    जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और एमआर शाह की पीठ ने हाई कोर्ट के फैसले की निंदा करते हुए कहा कि पुलिस ने राजनीतिक प्रभाव में आकर इस मामले में काम किया है। आखिर किस आधार पर हाईकोर्ट ने उसे जमानत दी? जबकि निचली अदालत ने इस पर रोक लगा दी थी।

    कोर्ट ने कहा कि न्यायपालिका पर राजनीतिक प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए।

    जानकारी

    सुप्रीम कोर्ट ने कही निचली अदालत के जज को डर होने की बात

    कोर्ट ने कहा कि दमोह ADJ ने सुप्रीम कोर्ट को मामले में खुद की सुरक्षा का डर बताया था। कोर्ट ने हाई कोर्ट को दो सप्ताह में मामले की जांच करने और जज को धमकी देने के संबंध में रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा है।

    टिप्पणी

    देश में अलग-अलग नहीं हो सकती कानून व्यवस्था- सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मामले में पुलिस ने आरोपी की ढाल की तरह काम किया है। किसी का राजनीतिक प्रभाव कितना भी हो, उसका असर न्यायपालिका पर नहीं पड़ना चाहिए।

    कोर्ट ने कहा कि देश में गरीबों और अमीरों के लिए अलग-अलग न्यायिक व्यवस्था नहीं हो सकती है। लोगों को औपनिवेशिक मानसिकता से बाहर आना होगा। वर्तमान में अन्याय के खिलाफ खड़े होने वाले न्यायाधीशों को ही निशाना बनाया जा रहा है।

    आधारशिला

    स्वतंत्र और निष्पक्ष न्यायपालिका लोकतंत्र की आधारशिला- सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एक स्वतंत्र और निष्पक्ष न्यायपालिका लोकतंत्र की आधारशिला है और इसे राजनीतिक दबावों और विचारों से मुक्त होना चाहिए। दोहरी कानून व्यवस्था का अस्तित्व कानून की वैधता को ही खत्म कर देगा।

    उन्होंने कहा कि यदि लोगों को न्यायपालिका में विश्वास कायम रखना है तो जिला न्यायपालिकाओं को मजबूत और स्वतंत्र बनाना होगा। वर्तमान में निचली अदालतों के न्यायाधीश असुरक्षा की भावना में काम कर रहे हैं।

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