अनुच्छेद 370: सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अहम बिंदु, जो सरकार के पक्ष में रहे
आज सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को रद्द करने के केंद्र सरकार के फैसले को बरकरार रखा। सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने 3 अलग-अलग फैसले सुनाए। भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ ने 3 जजों का फैसला सुनाया, वहीं न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना ने अलग-अलग, लेकिन सहमत फैसले सुनाए। आइए सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के सबसे अहम बिंदुओं के बारे में जानते हैं।
सबसे पहले जानें क्या है मामला
5 अगस्त, 2019 को राष्ट्रपति आदेश के जरिए जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को रद्द कर दिया गया था। इसके साथ ही जम्मू-कश्मीर को 2 केंद्र शासित प्रदेशों में बांट दिया गया था। इन्हीं फैसले की संवैधानिक वैधता को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। याचिकाकर्ताओं का तर्क था कि केवल संविधान सभा के पास ही अनुच्छेद 370 में बदलाव करने की शक्ति थी और इसके भंग होने के बाद ये एक स्थायी प्रावधान बन गया।
क्या था अनुच्छेद 370?
अनुच्छेद 370 भारतीय संविधान का एक अस्थायी प्रावधान था, जिसे 1949 में लाया गया था। इसके तहत जम्मू-कश्मीर को स्वायत्तता और विशेष अधिकार प्रदान किए गए थे। राज्य का अपना झंडा, संविधान और नागरिकता होती थी। इसके साथ ही बाहरी लोग यहां जमीन नहीं खरीद सकते थे। अनुच्छेद 370 से ही अनुच्छेद 35A भी उपजा था, जिसमें राज्य के स्थायी निवासियों को परिभाषित करके उन्हें विशेषाधिकार प्रदान दिए गए थे। ये भी अनुच्छेद 370 के साथ रद्द हो गया था।
जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जे का मुद्दा
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जम्मू-कश्मीर के पास कोई विशेष दर्जा नहीं था और भारत में विलय के समय उनसे अपनी संप्रभुता का समर्पण कर दिया था। कोर्ट ने कहा, "महाराजा हरि सिंह ने एक उद्घोषणा जारी कर कहा था कि जम्मू-कश्मीर की संप्रभुता बरकरार रहेगी, लेकिन उनके उत्तराधिकारी करण सिंह ने एक और उद्घोषणा जारी कह कहा कि भारतीय संविधान राज्य के अन्य सभी कानूनों पर सर्वोपरि होगा।" उसने कहा कि इससे जम्मू-कश्मीर अन्य रियासतों की तरह हो गया।
विशेष दर्जे पर कोर्ट ने और क्या कहा?
न्यायमूर्ति कौल ने कहा कि अपना संविधान होने का ये मतलब नहीं कि राज्य के पास विशेष दर्जा है। उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 370 का उद्देश्य राज्य का भारत के साथ एकीकरण करना था। CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि जम्मू-कश्मीर भारत का एक अभिन्न अंग है। उन्होंने इसके लिए भारतीय संविधान के अनुच्छेद 1 और 370 के साथ-साथ जम्मू-कश्मीर के संविधान के अनुच्छेद 3 का भी जिक्र किया, जिसमें राज्य को भारत का अभिन्न अंग बताया गया था।
अनुच्छेद 370 के संविधान का अस्थायी या स्थायी प्रावधान होने का मुद्दा
CJI ने कहा कि अनुच्छेद 370 एक अस्थायी प्रावधान था, जिसे राज्य विधानसभा के गठन के लिए अंतरिम तौर पर लागू किया गया था और 1947 में राज्य में युद्ध के हालात के मद्देनजर विशेष परिस्थितियों में इसे अपनाया गया था।
अनुच्छेद 370 को रद्द करने के राष्ट्रपति के आदेशों का मुद्दा
सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 370 को निरस्त करने वाले अगस्त, 2019 के राष्ट्रपति के दोनों आदेशों को भी बरकरार रखा। इनमें से एक में 'जम्मू-कश्मीर संविधान सभा' को 'जम्मू-कश्मीर विधानसभा' से बदला गया था। चूंकि राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू था जिसमें संसद के पास विधानसभा की शक्तियां होती हैं, ऐसे में संघ 'जम्मू-कश्मीर विधानसभा' की भूमिका अपनाकर अनुच्छेद 370 को रद्द करने की सिफारिश की थी, जिस पर अमल करते हुए राष्ट्रपति ने इसे रद्द कर दिया।
कोर्ट ने राष्ट्रपति के आदेशों को क्यों बरकरार रखा?
कोर्ट के सामने सवाल था कि क्या राष्ट्रपति शासन के दौरान संघ (राष्ट्रपति या संसद) राज्य विधानसभा बनकर अनुच्छेद 370 हटाने की सिफारिश कर सकते हैं। इसके लिए कोर्ट ने 1994 के ऐतिहासिक 'एसआर बोम्मई बनाम भारत संघ' मामले का हवाला देते हुए कहा कि राज्यपाल शासन (जम्मू-कश्मीर के मामले में राष्ट्रपति शासन) के दौरान राज्यपाल (या राष्ट्रपति) राज्य विधानसभा की कोई भी भूमिका निभा सकते हैं। इसी कारण कोर्ट ने राष्ट्रपति के आदेशों को सही ठहराया।