#NewsBytesExplainer: क्या राजस्थान में इस बार भी 5 साल पर बदलेगी सत्ता, क्या कहते हैं आंकड़े?
राजस्थान विधानसभा चुनाव के लिए 199 सीटों पर मतदान हो चुका है और अब सभी की निगाहें 3 दिसंबर को आने वाले नतीजों पर टिकी हैं। चुनाव आयोग के मुताबिक, इस बार 74.96 प्रतिशत मतदान हुआ जो पिछले चुनाव से 0.9 प्रतिशत अधिक है। राज्य के पिछले 20 साल के चुनावी इतिहास को देखें तो मतदान प्रतिशत कम होने पर कांग्रेस को और मतदान प्रतिशत बढ़ने पर भाजपा को जीत मिली है। आइए इसे आंकड़ों से समझते हैं।
कहां कितने प्रतिशत हुआ मतदान?
राजस्थान में 199 सीटों पर हुए चुनाव में सबसे अधिक 82.32 प्रतिशत मतदान जैसलमेर में हुआ है। इसके बाद प्रतापगढ़ में 82.07 प्रतिशत, बांसवाड़ा में 81.36 प्रतिशत और हनुमानगढ़ में 81.30 प्रतिशत मतदान हुआ। राज्य में सबसे कम मतदान 65.12 प्रतिशत के साथ पाली में दर्ज किया गया है। बता दें कि राजस्थान में 1 विधानसभा सीट पर चुनाव नहीं हो पाया था क्योंकि करणपुर सीट से कांग्रेस उम्मीदवार गुरमीत सिंह कूनर का निधन हो गया था।
पिछले चुनाव में इन इलाकों में मत प्रतिशत कितना था?
2018 के चुनावों में राज्य के मत प्रतिशत को देखें तो इस साल इन इलाकों का मत प्रतिशत कम है। आंकड़ों के अनुसार, जैसलमेर में 85.28 प्रतिशत लोगों ने वोट किया था। इसके बाद हनुमानगढ़ में 83.32 प्रतिशत और बांसवाड़ा में 83.01 प्रतिशत मतदान हुआ था। पिछले साल भी सबसे कम मतदान पाली में हुआ था जो महज 65.35 प्रतिशत था। इसके बाद सवाई माधोपुर में 68.05 प्रतिशत और सिरोही में 68.74 प्रतिशत मतदान हुआ था।
मतदान प्रतिशत बढ़ने से भाजपा को हुआ है फायदा
पिछले 20 साल के आंकड़ों को देखें तो 1998 में 63.39 प्रतिशत मतदान पर कांग्रेस जीती और पहली बार अशोक गहलोत मुख्यमंत्री बने थे। 2003 में मतदान 3.79 प्रतिशत बढ़कर 67.18 प्रतिशत होने पर भाजपा जीती और वसुंधरा राजे पहली बार मुख्यमंत्री बनीं। 2008 में मतदान 0.93 प्रतिशत घटकर 66.25 प्रतिशत होने पर फिर कांग्रेस सरकार बनी। 2013 में मतदान 8.79 प्रतिशत बढ़कर 75.04 प्रतिशत होने पर भाजपा और 2018 में 0.98 प्रतिशत घटकर 74.06 प्रतिशत होने पर कांग्रेस जीती।
क्या इस बार चुनावी रिवाज टूटेगा?
3 दिसंबर के चुनाव परिणाम से ही स्पष्ट होगा कि इस बार सरकार बदलेगी या कांग्रेस सत्ता में बरकरार रहेगी। इस मामले पर लाइव मिंट से बातचीत में राजनीतिक विश्लेषक अजाज आलम ने कांग्रेस की जीत की संभावना जताई, लेकिन राजनीतिक रणनीतिकार अमिताभ तिवारी इसके विपरीत हैं। कुछ राजनीतिक विश्लेषको का मानना है कि गरीबों के लिए विभिन्न योजनाओं की घोषणा करने के बावजूद कांग्रेस पिछड़ सकती है क्योंकि वह 'संरचनात्मक रूप से कमजोर' है।
क्यों हर 5 साल पर बदलती है सरकार?
राजस्थान अपनी सत्ता विरोधी लहर के लिए जाना जाता है और हर 5 साल बाद यहां सरकार बदलती है। सत्ता विरोधी लहर के कई कारण हैं, जिनमें भ्रष्टाचार, किसानों की नाराजगी और बेरोजगारी के मुद्दे प्रमुख रहे हैं। 2018 में कांग्रेस ने इन्हीं मुद्दों को हथियार बनाकर सत्ता में वापसी की थी। हालांकि, राज्य में अभी भी 18,40,044 पंजीकृत बेरोजगार हैं और पेपर लीक के मामलों ने युवाओं में कांग्रेस के प्रति नाराजगी को और बढ़ाया है।
राज्य में सत्ता विरोधी लहर का क्या कारण है?
यहां सत्ता-विरोधी लहर का मतलब वर्तमान राजनीतिक पदाधिकारी का विरोध या अस्वीकृति है। राजनीतिक विश्लेषको का मानना है कि इसका एक बड़ा कारण राजस्थान में उद्योगों की कमी है। शीर्ष नेता इसका कारण विधायकों का "गैर-प्रदर्शन" मानते हैं, लेकिन वास्तव में यह भ्रष्टाचार है। वास्तव में लैंड लॉक्ड राज्यों और उन राज्यों में जहां औद्योगिक उत्पादन ज्यादा नहीं है, जैसे कि राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश, इसलिए लोग स्थानीय स्तर पर भ्रष्टाचार से प्रभावित हैं।
न्यूजबाइट्स प्लस (जानकारी)
इस बार भी राजस्थान में मुख्य मुकाबला कांग्रेस और भाजपा के बीच ही है। कांग्रेस से यहां वर्तमान मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, सचिन पायलट, पार्टी अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा, विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी और शांति धारीवाल जैसे कई दिग्गज उम्मीदवार मैदान में हैं। भाजपा ने पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे, राज्यसभा सांसद किरोड़ी लाल मीणा, नेता प्रतिपक्ष राजेन्द्र सिंह राठौड़ और सतीश पुनिया समेत कई बड़े नामों को उतारा है। दोनों ही पार्टियों ने मुख्यमंत्री चेहरे का नाम घोषित नहीं किया है।