#NewsBytesExplainer: मानसून की शुरुआत को कैसे प्रभावित कर सकता है एक चक्रवात?
चक्रवात 'बिपरजॉय' भीषण चक्रवाती तूफान में बदल गया है और इसके 15 जून तक गुजरात के सौराष्ट्र और कच्छ के तटों और पाकिस्तान के कराची तट से टकराने की संभावना जताई गई है। वहीं मानसून के सीजन से पहले अरब सागर के ऊपर हवाओं के कारण उत्पन्न हुए इस चक्रवात के कारण मानसून पर प्रभाव पड़ने की उम्मीद है। आइए जानते हैं कि एक चक्रवात मानसून की शुरुआत को कैसे प्रभावित कर सकता है।
किन कारणों पर प्रभावित रहता है मानसून?
मानसून की शुरुआत निश्चित रूप से तीन उष्णकटिबंधीय महासागरों- हिंद महासागर, अटलांटिक महासागर और प्रशांत महासागर से प्रभावित होती है। इसके अलावा मानसून आर्कटिक महासागर से बने एटमोस्फेरिक ब्रिज के साथ-साथ अंटार्कटिक महासागर (दक्षिणी महासागर) से एटमोस्फेरिक ब्रिज पर भी निर्भर करता है। गौरतलब है कि एक एटमोस्फेरिक ब्रिज वायुमंडल में कुछ दूरी पर स्थित दो दूर के क्षेत्रों को वायुमंडल में परस्पर क्रिया करने के लिए संदर्भित करता है।
चक्रवात की स्थिति के क्या मायने हैं?
उत्तर हिंद महासागर में उत्पन्न हुए चक्रवातों का मानसून की शुरुआत पर सकारात्मक और नकारात्मक दोनों प्रभाव पड़ता है। चक्रवातों के चारों ओर हवाओं का संचलन एंटी-क्लॉकवाइज दिशा में होता है और इसलिए चक्रवात का स्थान मानसून पर होने वाले प्रभाव के लिए बड़ा कारक है। उदाहरण के लिए यदि कोई चक्रवात बंगाल की खाड़ी में उत्तर की ओर स्थित है तो दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्व की ओर बहने वाली हवाएं मानसून की शुरुआत में सहायता कर सकती हैं।
हवाओं की दिशा का मानसून पर पड़ता है प्रभाव
अरब सागर के ऊपर बहने वालीं दक्षिण-पश्चिमी हवाएं भारतीय उपमहाद्वीप में बड़ी मात्रा में नमी लाती हैं। दूसरी ओर बंगाल की खाड़ी के ऊपर बहने वालीं दक्षिण-पश्चिमी हवाएं मानसून के लिए नकारात्मक साबित होती हैं। दरअसल, बंगाल की खाड़ी के दक्षिणी हिस्से के ऊपर मानसूनी हवाएं दक्षिण-पश्चिम और पश्चिम दिशा की तरफ से बहती हैं, लेकिन वे दक्षिण-पूर्व दिशा की तरफ से मुड़कर भारत की ओर उत्तर-पश्चिम की तरफ बहती हैं।
कैसे तेज हवाओं को पार करता है मानसून?
अगर आसान भाषा में समझना चाहें तो बंगाल की खाड़ी के ऊपर चलने वाली तेज दक्षिण-पश्चिमी हवाओं की कल्पना एक बहुत बड़ी सड़क के रूप में की जा सकती है। इसमें दक्षिणी प्रायद्वीपीय भारत और श्रीलंका के ऊपर, दक्षिण चीन सागर और उत्तर-पश्चिमी प्रशांत महासागर की तरफ से यातायात बढ़ रहा है। इस बीच मानसून एक कार की तरह है, जो अंडमान-निकोबार द्वीप समूह से भारत तक इस व्यस्त और चौड़ी सड़क को पार करने की कोशिश कर रही है।
ग्लोबल वार्मिंग भी करता है मानसून को प्रभावित
ग्लोबल वॉर्मिंग का मानसून की शुरुआत, वापसी और बारिश पर बड़ा प्रभाव पड़ता है। वहीं ग्लोबल वॉर्मिंग हिंद महासागर में उत्पन्न हुए चक्रवातों के साथ-साथ उत्तर पश्चिमी प्रशांत महासागर के ऊपर के तूफानों को भी प्रभावित करता है। गौरतलब है कि मार्च के महीने के बाद उत्पन्न हुए विषम चक्रवातों के कारण मानसून से पहले दोनों अरब सागर और बंगाल की खाड़ी का तापमान 1 डिग्री सेल्सियस से अधिक बढ़ गया है।
अभी क्या है मानसून की स्थिति?
भारतीय मौसम विभाग (IMD) ने बताया कि मानसून शनिवार को केरल से आगे बढ़कर कर्नाटक में छा गया है। अनुमान है कि अगले 48 घंटे के अंदर मानसून गोवा, महाराष्ट्र के तटीय हिस्से में आगे बढ़ सकता है। हालांकि, मानसून 15 जून के बाद ही रफ्तार पकड़ेगा। इससे पहले केरल के 8 जिलों में येलो अलर्ट जारी किया गया था। बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, ओडिशा और पूर्वी उत्तर प्रदेश में 2-3 दिन तक लू जैसे हालात रहेंगे।
न्यूजबाइट्स प्लस
भारत में मानसून खेती के साथ ही अर्थव्यवस्था के लिए भी बेहद अहम है। देश में होने वाली कुल वर्षा का करीब 70 प्रतिशत हिस्सा मानसून से ही आता है। देश में होने वाली कुल खेती में करीब 52 प्रतिशत किसान सिंचाई के लिए मानसून पर निर्भर रहते हैं। इससे देश में होने वाले कुल खाद्य उत्पादन का करीब 40 प्रतिशत हिस्सा पैदा होता है। यानी मानसून का सीधा असर महंगाई से लेकर सरकारी नीतियों पर भी पड़ता है।