#NewsBytesExplainer: चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति से जुड़े विवादित विधेयक में क्या प्रावधान और क्या बदलाव हुए?
आज मंगलवार को मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों (नियुक्ति, सेवा की शर्तें और कार्यालय की अवधि) विधेयक, 2023 राज्यसभा से पारित हो गया। केंद्र सरकार ने संसद के मानसून सत्र में भी इस विधेयक को पेश किया था। तब विपक्ष ने इस पर आपत्ति जताई थी, जिसके बाद कुछ बदलावों के साथ इसे फिर से पेश किया गया। आइए इस विधेयक, इसके प्रावधानों और इसमें हुए बदलावों के बारे में जानते हैं।
अभी तक कैसे होती थी चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति?
चुनाव आयोग एक संवैधानिक निकाय है, जिसके बारे में संविधान के अनुच्छेद 324 में विस्तार से बताया गया है। इसके तहत चुनाव कराने की जिम्मेदारी चुनाव आयोग की होगी। अनुच्छेद 324 (2) में चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति का अधिकार राष्ट्रपति को दिया गया है। इस अनुच्छेद में नियुक्ति के लिए कानून बनाने को कहा गया था। हालांकि, ऐसा कोई कानून नहीं था और इसी कारण अभी तक केंद्र सरकार की सलाह पर राष्ट्रपति चुनाव आयुक्तों की नियुक्तियां करते थे।
सरकार क्यों लेकर आई विधेयक?
इसी साल मार्च में सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति सरकार के नियंत्रण से बाहर होनी चाहिए। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) और चुनाव आयुक्तों (EC) की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा एक समिति की सलाह पर की जाए, जिसमें प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता (या सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता) और भारत के मुख्य न्यायाधीश शामिल होंगे। इसके बाद ही सरकार यह विधेयक लेकर आई।
नए विधेयक में क्या है?
नए विधेयक के तहत राष्ट्रपति एक चयन समिति की सिफारिश पर CEC और EC की नियुक्ति करेंगे। इस समिति की अध्यक्षता प्रधानमंत्री करेंगे और इसमें विपक्ष के नेता (या सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता) और एक केंद्रीय मंत्री भी शामिल होंगे। केंद्रीय मंत्री का चयन प्रधानमंत्री करेंगे। इस तरह से समिति में सरकार का बहुमत होगा, यानि अभी भी नियुक्ति पर उसका नियंत्रण होगा। विधेयक के अनुसार, खोज समिति CEC और EC उम्मीदवारों के नाम चयन समिति को भेजेगी।
पुराने विधेयक की किन बातों पर आपत्ति थी और क्या बदलाव किए गए?
मानसूस सत्र में पेश किए गए पुराने विधेयक की 2 बातों पर सबसे ज्यादा आपत्ति थी। एक तो चुनाव आयुक्त चुनने की समिति में भारत के मुख्य न्यायाधीश का नाम नहीं था। दूसरा ये है कि इसमें चुनाव आयुक्तों का दर्जा और सैलरी आदि घटाकर कैबिनेट सचिव के बराबर कर दिया गया था। नए विधेयक में दूसरी आपत्ति को स्वीकार करते हुए चुनाव आयुक्तों को फिर से सुप्रीम कोर्ट न्यायाधीशों के बराबर दर्जा दे दिया गया है।
नए विधेयक में और क्या बदलाव किए गए?
पुराने विधेयक में चयन समिति को 5 नाम सुझाने के लिए एक खोज समिति का गठन किया गया था, जिसमें कैबिनेट सचिव और 2 वरिष्ठ अधिकारी शामिल थे। नए विधेयक में कैबिनेट सचिव की जगह केंद्रीय कानून मंत्री को खोज समिति में जगह दी गई है। इसके अलावा नए विधेयक में प्रस्तावित खंड 15A के तहत अपने आधिकारिक कर्तव्यों के निर्वहन में CEC और EC के खिलाफ कोई नागरिक या आपराधिक कार्यवाही शुरू नहीं की जा सकती है।
विधेयक में और क्या अहम बातें?
CEC और EC की नियुक्ति 6 साल या अधिकत 65 वर्ष की आयु तक के लिए होगी और उन्हें दोबारा नियुक्ति नहीं मिलेगी। अगर किसी EC को CEC नियुक्त किया गया तो उसका कुल मिलाकर कार्यकाल 6 साल से अधिक नहीं हो सकता। अगर समिति में कोई पद खाली होगा तो भी उसके द्वारा की गई नियुक्ति को अमान्य नहीं ठहराया जा सकेगा। आयुक्तों को केवल संविधान के अनुच्छेद 324 के खंड (5) के तहत ही हटाया जा सकता है।
चुनाव आयुक्तों को हटाने के लिए क्या प्रावधान?
अनुच्छेद 324 के खंड (5) के तहत चुनाव आयुक्तों को सुप्रीम कोर्ट के जज को हटाने की प्रक्रिया के तहत ही हटाया जा सकता है। विधेयक के अनुसार, चुनाव आयोग का काम सर्वसम्मति होगा, लेकिन मतभेद की स्थिति में बहुमत का दृष्टिकोण मान्य होगा।