सरकार ने किसानों को दी राहत, गेहूं सहित रबी की 6 फसलों का MSP बढ़ाया
केंद्र सरकार ने दिवाली से पहले मंगलवार को देश के किसानों को बड़ी राहत दी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई आर्थिक मामलों की कैबिनेट कमेटी (CCEA) की बैठक में किसानों की आय को बढ़ावा देने के लिए गेहूं सहित रबी की छह फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) में बढ़ोतरी को मंजूरी दे दी है। केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने बैठक के बाद इसकी जानकारी दी है। इससे किसानों में खुशी की लहर है।
केंद्रीय बजट 2018-19 के अनुसार की है बढ़ोतरी- ठाकुर
केंद्रीय मंत्री ठाकुर ने बताया कि बैठक में गेहूं के अलावा रबी की फसलों में शामिल जौ, चना, मसूर, सूरजमुखी और सरसो का MSP बढ़ाने को मंजूरी दी गई है। उन्होंने कहा कि विपणन सीजन 2023-24 के लिए रबी फसलों के लिए MSP में बढ़ोतरी केंद्रीय बजट 2018-19 की घोषणा के अनुसार है। उसमें MSP को अखिल भारतीय भारित औसत उत्पादन लागत का 1.5 गुना पट्टे के स्तर पर तय किया है। इसका लक्ष्य किसानों को उचित पारिश्रमिक देना है।
किन फसलों के MSP में किया गया है इजाफा?
केंद्रीय मंत्री ठाकुर ने बताया कि 2022-23 फसल वर्ष (जुलाई-जून) और 2023-24 विपणन सत्र के लिए गेहूं का MSP 110 रुपये बढ़ाकर 2,125 रुपये प्रति क्विंटल किया गया है। इसी तरह जौ का MSP 100 रुपये बढ़ाकर 1,735 रुपये, सरसों का 400 रुपये बढ़ाकर 5,450 रुपये प्रति क्विंटल किया गया है। इसी प्रकार चने के MSP में 105 रुपये, मसूर में 500 रुपये और सूरजमुखी के MSP में 209 रुपये प्रति क्विंटल का इजाफा किया गया है।
क्या होता है MSP?
सरकार किसान की फसल के लिए एक न्यूनतम मूल्य निर्धारित करती है, जिसे MSP कहा जाता है। यह एक तरह से सरकार की तरफ से गारंटी होती है कि हर हाल में किसान को उसकी फसल के लिए तय दाम मिलेंगे। अगर मंडियों में किसान को MSP या उससे ज्यादा पैसे नहीं मिलते तो सरकार किसानों से उनकी फसल MSP पर खरीद लेती है। इससे बाजार में फसलों की कीमतों में होने वाले उतार-चढ़ाव का किसानों पर असर नहीं पड़ता।
कौन और कैसे तय करता है MSP?
देश में MSP तय करने का काम कृषि मंत्रालय के तहत काम करने वाला कृषि लागत एवं मूल्य आयोग का है। MSP तय करने की प्रकिया काफी जटिल और लंबी है। आयोग अलग-अलग इलाकों में फसल की प्रति हेक्टेयर लागत, सरकारी एजेंसियों की स्टोरेज क्षमता, वैश्विक बाजार में मांग और उपलब्धता आदि मानकों के आंकड़े इकट्ठा करता है। इसके बाद सभी हितधारकों और विशेषज्ञों से सुझाव लिए जाते हैं। अंत में आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति अंतिम फैसला लेती है।
कैसे हुई थी MSP की शुरुआत?
आजादी के बाद के किसान फसल की बंपर पैदावार होने पर अच्छे दाम न मिलने और लागत न निकल पाने को लेकर चिंतित थे और उन्होंने आंदोलन शुरू कर दिया। उसके बाद लाल बहादुर शास्त्री के प्रधानमंत्री रहते हुए 1 अगस्त, 1964 को एलके झा के नेतृत्व में एक समिति बनी, जिसका काम अनाजों की कीमतें तय करने का था। समिति की सिफारिशें लागू होने के बाद 1966-67 में पहली बार गेहूं के लिए MSP का ऐलान किया गया था।