भारत में पाए गए कोरोना वायरस के डेल्टा वेरिएंट के खिलाफ कितनी प्रभावी है वैक्सीनें?
पहली बार भारत में पाया गया कोरोना वायरस का डेल्टा वेरिएंट (B.1.617.2) वैज्ञानिक समुदाय के बीच एक बड़ी चिंता का विषय बनकर उभरा है। यह अब तक का सबसे अधिक संक्रामक वेरिएंट है और इससे अधिक गंभीर बीमारी होने की संभावना भी जताई जा रही है। इसलिए इसके खिलाफ वैक्सीनों का काम करना बेहद अहम हो जाता है। आइए जानते हैं कि इस वेरिएंट के खिलाफ कौन सी वैक्सीनें कारगर हैं और कितनी कारगर हैं।
सबसे पहले जानें क्या है डेल्टा वेरिएंट
B.1.167.2 यानि डेल्टा वेरिएंट पहली बार अक्टूबर में पाए गए डबल म्यूटेंट B.1.617 वेरिएंट का ही एक स्वरूप है। पहली बार अक्टूबर में पाए गए इस डबल म्यूटेंट वेरिएंट में E484Q और L452R नामक दो अहम म्यूटेशन हुए हैं। ये दोनों वायरस की स्पाइक प्रोटीन में हुए हैं जिसकी मदद से वायरस शरीर की कोशिकाओं से जुड़कर अपनी संख्या बढ़ाता है। डेल्टा वेरिएंट पहली बार यूनाइडेट किंगडम (UK) में पाए गए अल्फा वेरिएंट से लगभग 50 प्रतिशत अधिक संक्रामक है।
किन-किन देशों में फैला डेल्टा वेरिएंट?
डेल्टा वेरिएंट ने भारत में सबसे अधिक तबाही मचाई है और यहां कोरोना वायरस महामारी की दूसरी और बेहद भीषण लहर के लिए यही जिम्मेदार था। इसके अलावा अन्य कई देशों में भी यह मिला है और UK में तो मुख्य वेरिएंट बन गया है।
वैक्सीन की प्रभावशीलता जांचने के लिए क्या स्टडी हुई?
डेल्टा वेरिएंट के तेज प्रसार से परेशान UK ने इस पर वैक्सीन की प्रभावशीलता जांचने के लिए एक स्टडी की है। पब्लिक हेल्थ इंग्लैंड द्वारा प्रकाशित इस स्टडी में कई अस्पतालों और संगठनों के शोधकर्ताओं ने 12 अप्रैल से 4 जून के बीच इमरजेंसी के जरिए भर्ती होने वाले कोरोना वायरस के सभी मरीजों का विश्लेषण किया। विश्लेषण में डेल्टा वेरिएंट के 14,019 मामले मिले जिनमें से 166 को अस्पताल में भर्ती करने की जरूरत पड़ी।
स्टडी में कितनी प्रभावी पाई गई वैक्सीनें?
इस स्टडी में फाइजर और एस्ट्राजेनेका वैक्सीनों की डेल्टा वेरिएंट पर प्रभावशीलता जांची गई। इंग्लैंड में इन्हीं वैक्सीनों का इस्तेमाल किया जा रहा है। नतीजों में सामने आया कि फाइजर वैक्सीन की एक खुराक डेल्टा वेरिएंट के कारण भर्ती होने के मामलों को रोकने में 94 प्रतिशत कामयाब रही, वहीं दोनों खुराकों के बाद ये आंकड़ा 96 प्रतिशत हो गया। एस्ट्राजेनेका वैक्सीन के लिए ये आंकड़ा पहली खुराक के बाद 71 प्रतिशत और दूसरी खुराक के बाद 92 प्रतिशत रहा।
हल्की बीमारी को रोकने में थोड़ी कम प्रभावी है एस्ट्राजेनेका वैक्सीन
हालांकि डेल्टा वेरिएंट के कारण हल्की बीमारी के मामलों को रोकने में एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन थोड़ी कम प्रभावी रही। एस्ट्राजेनेका ने कहा कि PHE के अनुसार, उनकी वैक्सीन डेल्टा वेरिएंट से हल्की बीमारी के मामलों को रोकने में 64 प्रतिशत ही कारगर रही।
भारत के लिए इस स्टडी के क्या मायने?
डेल्टा वेरिएंट से सबसे अधिक प्रभावित भारत में ज्यादातर एस्ट्राजेनेका वैक्सीन (कोविशील्ड) का उपयोग किया जा रहा है और अभी तक इस्तेमाल की गई 88 प्रतिशत खुराकें कोविशील्ड की रही हैं। इस स्टडी से साफ है कि कोविशील्ड डेल्टा वेरिएंट के कारण अस्पताल में भर्ती होने के मामलों को 92 प्रतिशत कम कर सकती है। इसका मतलब कोविशील्ड अस्पतालों पर बोझ कम करने में कामयाब रहेगी। अच्छी बात ये है कि वैक्सीन लगवा चुके किसी व्यक्ति की मौत नहीं हुई।
क्या अन्य वैक्सीनें भी हैं डेल्टा वेरिएंट के खिलाफ प्रभावी?
फाइजर और एस्ट्राजेनेका वैक्सीन की तरह अन्य किसी वैक्सीन के डेल्टा वेरिएंट पर प्रभाव की जांच नहीं हुई है, हालांकि लैब में भारत बायोटेक का इस पर परीक्षण हुआ था। इस परीक्षण में कोवैक्सिन डेल्टा वेरिएंट को निष्क्रिय करने में कामयाब रही थी। इसके अलावा अन्य कुछ स्टडी में कोवैक्सिन के डेल्टा वेरिएंट के खिलाफ पर्याप्त मात्रा में एंटीबॉडीज बनाने की बात सामने आई थी। अन्य किसी वैक्सीन का अभी इस वेरिएंट पर परीक्षण नहीं हुआ है।