हिमाचल की कांग्रेस सरकार ने पहली कैबिनेट बैठक में ही बहाल की पुरानी पेंशन योजना
हिमाचल प्रदेश की नई-नवेली कांग्रेस सरकार ने आज पहली कैबिनेट बैठक में ही पुरानी पेंशन योजना (OPS) को बहाल कर दिया। पार्टी ने अपने घोषणापत्र में ऐसा करने का वादा किया था और यह उसका प्रमुख चुनावी वादा था। मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने कहा कि नई पेंशन योजना (NPS) के दायरे में आने वाले सभी सरकारी कर्मचारियों को अब OPS का लाभ मिलेगा। उन्होंने कहा कि कर्मचारियों के साथ चर्चा करके इसके नियम जारी किए जाएंगे।
वोटों के लिए नहीं, सामाजिक सुरक्षा और स्वाभिमान के लिए ऐसा कर रहे- मुख्यमंत्री
राज्य सचिवालय में भाषण देते हुए मुख्यमंत्री सुक्खू ने कहा कि मुद्दे पर गहराई से अध्ययन किया गया है और वित्त विभाग के अधिकारियों ने OPS को बहाल करने पर आपत्ति भी जताई थी, लेकिन मुद्दे को सुलझा लिया गया। उन्होंने कहा, "हम वोटों के लिए पुरानी पेंशन योजना को बहाल नहीं कर रहे हैं, बल्कि हिमाचल के विकास का इतिहास लिखने वाले कर्मचारियों को सामाजिक सुरक्षा देने और उनके स्वाभिमान की रक्षा करने के लिए ऐसा कर रहे हैं।"
क्या है पुरानी पेंशन योजना?
पुरानी पेंशन योजना में कर्मचारी को आखिरी निकाले गए वेतन के 50 प्रतिशत के बराबर पेंशन मिलती थी। इसकी पूरी राशि का भुगतान सरकार करती थी। इसमें हर छह महीने पर मिलने वाला महंगाई भत्ता (DA) भी लागू होता था। 2004 में तत्कालीन NDA सरकार ने सेना को छोड़ बाकी सभी विभागों के लिए इस योजना को खत्म कर दिया था। अभी NPS लागू है, जिसमें कर्मचारी को अपनी सैलरी का 10 प्रतिशत हिस्सा देना होता है।
हिमाचल में कांग्रेस की जीत में रहा था OPS का अहम योगदान
नवंबर में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने हिमाचल में उसकी सरकार बनने पर OPS को बहाल करने की गारंटी दी थी। उसकी जीत में इस वादे का अहम योगदान रहा था और यही कारण है कि पार्टी अन्य राज्यों में भी ऐसा वादा करने की योजना बना रही है। कांग्रेस राजस्थान, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और कर्नाटक आदि उन राज्यों में भी OPS को बहाल करने का वादा कर सकती है, जहां चुनाव होने वाले हैं।
क्या रहे थे हिमाचल चुनाव के नतीजे?
हिमाचल चुनाव में कांग्रेस को स्पष्ट बहुमत मिला था और उसने राज्य की 68 में से 40 सीटों पर जीत दर्ज की थी। पिछले पांच साल से सत्ता पर काबिज भाजपा को 25 सीटों से संतोष करना पड़ा। पहली बार चुनाव लड़ रही आम आदमी पार्टी (AAP) अपना खाता भी नहीं खोल पाई, वहीं तीन सीटों पर निर्दलीय उम्मीदवार जीते। कांग्रेस की जीत के साथ ही हिमाचल में हर पांच साल पर सरकार बदलने का चलन बरकरार रहा।