राजनीतिक लड़ाई में पिसते मीसाबंदी पेंशन के लाभार्थी, जानिए क्या है पूरा मामला
देश में 1975 में लगे आपातकाल के दौरान जन विरोधी कानून मीसा (मेंटेनेंस ऑफ इंटरनल सिक्योरिटी एक्ट) का विरोध करते हुए कठोर प्रताड़ना झेलने वाले देश के हजारों मीसाबंदी अब राजनीतिक लड़ाई में पिस रहे हैं। संबंधित राज्यों में सत्ता परिवर्तन होने के साथ ही उनकी जेब पर कैंची चलना शुरू हो गई है। इन राज्यों में राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ शामिल है, जहां 2018 में सत्ता परिवर्तन हुआ था। अब उसका असर सीधा मीसाबंदियों पर पड़ रहा है।
सरकारों ने डाला मीसाबंदियों की पेंशन पर डाका
दरअसल, राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भाजपा सरकार के शासनकाल में मीसाबंदियों की सहायता के लिए पेंशन योजना चालू की थी। इस पेंशन से मीसाबंदियों और उनके परिवार का पेट पल रहा था, लेकिन 2018 में हुए विधानसभा चुनावों में तीनों राज्यों में सत्ता परिवर्तन होने के साथ कांग्रेस की सरकार बन गई। इसके बाद भाजपा के साथ राजनीतिक द्वेष के चलते सरकारों ने अपने-अपने राज्यों के मीसाबंदियों की पेंशन पर रोक लगा दी।
किस सरकार ने कब उठाया कदम?
विधानसभा चनावों में सत्ता परिवर्तन होने के बाद सबसे पहले मध्य प्रदेश की कमलनाथ सरकार ने 29 दिसंबर, 2018 को फिजिकल वेरिफिकेशन के नाम पर मीसाबंदियों की पेंशन पर रोक लगा दी थी। इसके बाद 14 अक्टूबर, 2019 को राजस्थान की गहलोत सरकार ने आदेश जारी कर इसे पूरी तरह से बंद कर दिया। इसी तरह 24 जनवरी, 2020 को छत्तीसगढ़ की भूपेश बघेल सरकार ने अध्यादेश जारी कर राज्य के मीसाबंदियों की जेब पर कैंची चला दी।
किस राज्य में कितनी मिलती थी पेंशन?
मध्य प्रदेश में साल 2008 में शिवराज सरकार में शुरू हुई मीसाबंदी पेंशन योजना में 4,000 मीसाबंदियों को 25,000 रुपये प्रतिमाह पेंशन दी जाती थी। राजस्थान में साल 2014 में पेंशन योजना शुरू की गई थी और करीब 1,200 मीसाबंदियों को 20,000 रुपये प्रतिमाह पेंशन, यात्रा भत्ता और नि:शुल्क चिकित्सा सुविधा दी जाती थी। इसी तरह छत्तीसगढ़ में साल 2008 में रमनसिंह सरकार ने पेंशन योजना शुरू की थी। इसमें 500 लाभार्थियों को 25,000 रुपये प्रतिमाह पेंशन दी जाती थी।
हाईकोर्ट के नोटिस के बाद फिर शुरू, लेकिन घटी लाभार्थियों की संख्या
मध्य प्रदेश सरकार के निर्णय के खिलाफ मीसाबंदियों ने हाईकोर्ट में याचिका लगाई थी, कोर्ट ने सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था। बाद में सरकार ने पेंशन तो शुरू कर दी, लेकिन सत्यापन के नाम पर 40% लाभार्थियों के नाम हटा दिए।
मीसाबंदियों को मिला था लोकतंत्र सेनानियों का दर्जा
आपातकाल के दौरान काले कानून का विरोध जताने वाले मीसाबंदियों को संबंधित राज्य सरकारों की ओर से न केवल पेंशन योजना का लाभ दिया गया था, बल्कि उनके त्याग और बलिदान को देखते हुए उन्हें लोकतंत्र सेनानियों का दर्जा भी दिया गया था, लेकिन राज्यों में सत्ता परिवर्तन होने के साथ ही उनके पेंशन बंद होने के अलावा उनका यह दर्जा भी छिन गया। इससे सालों से पेंशन योजना का लाभ ले रहे लोकतंत्र सेनानियों को गहरा आघात पहुंचा है।
पेंशन बंद करने के पीछे सरकारों ने दिया यह तर्क
पेंशन बंद करने के पीछे तीनों राज्यों सरकारों ने तर्क दिया है कि पेंशन भाजपा और RSS से जुड़े लोगों को खुश करने के लिए चलाई थी। इससे सरकार पर वित्तीय भार बढ़ रहा था। ऐसे में इसे बंद कर इस राशि का उपयोग राज्य के विकास में किया जाएगा। राजस्थान सरकार ने तो यह तक कह दिया कि सरकार मीसाबंदियों को लोकतंत्र सेनानी नहीं मानती है, क्योंकि सेनानी वो होते हैं जिन्होंने देश की आजादी में योगदान दिया हो।
तीनों राज्यों में हुआ सरकार के फैसले का विरोध
तीनों राज्यों में पेंशन बंद किए जाने का कड़ा विरोध हो रहा है। कई पेंशन लाभार्थियों ने अपने हक के लिए न्यायालय की शरण ली है। उनका कहना है कि सरकार की पेंशन के भरोसे उनका जीवन कट रहा था, पेंशन बंद होने से जीवन में परेशानी बढ़ जाएगी। छत्तीसगढ़ में नेता प्रतिपक्ष धर्मलाल कौशिक ने सरकार के कदम को जनविरोधी और लोकतंत्र की हत्या वाला करार दिया है। उन्होंने आरोप लगाया राजनीतिक द्वेष के तहत निर्णय लिया गया है।
यहां मिल रही है पेंशन
राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के अलावा उत्तर प्रदेश, बिहार और महाराष्ट्र में भी मीसाबंदियों को पेंशन दी जाती है। महाराष्ट्र में इसकी शुरुआत जून 2018 से की गई थी। हालांकि, उत्तर प्रदेश में भी साल 2016 में इसे बंद करने का प्रयास किया गया था, लेकिन इलाहबाद हाईकोर्ट के आदेश के बाद उसे फिर से चालू कर दिया गया था। इससे राज्य के मीसाबंदियों को काफी राहत मिली थी।
क्या था मीसा कानून?
इंदिरा गांधी सरकार ने साल 1971 में मीसा नाम से एक कानून बनाया था। इससे सरकार को बेहिसाब ताकत मिल गई थी। पुलिस या सरकारी एजेंसियां किसी को कभी भी गिरफ्तार कर सकती थी और बिना वारंट के किसी के भी घर की तलाशी ले सकती थी। उस दौरान फोन टैपिंग भी वैध हो गई थी। आपातकाल (1975-1977) के बीच इसमें कई बदलाव किए गए और कानून का जबरदस्त दुरुपयोग किया गया था। इसका लोगों ने खुलकर विरोध किया था।
इन्हें कहा जाता है मीसाबंदी
मीसा कानून का आपातकाल के दौरान बड़ा दुरुपयोग किया गया था। सरकार विरोधी लोगों को बिना किसी जुर्म के महीनों तक जेल में रखा गया था। जेल में बंद रहने वालों में अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवानी, शरद यादव और लालू प्रसाद जैसे नेता थे। साल 1977 में जनता पार्टी के सत्ता में आते ही इस कानून को रद्द कर दिया गया था। आपातकाल के दौरान इस कानून के तहत जेल में बंद रहे लोगों को मीसाबंदी कहा गया था।