बिलकिस बानो ने गैंगरेप के दोषियों की रिहाई को सुप्रीम कोर्ट में दी चुनौती
साल 2002 के गुजरात दंगों में गैंगरेप का शिकार हुई पीड़ित बिलकिस बानो ने मामले के 11 दोषियों की रिहाई को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। उन्होंने मई में दोषियों की रिहाई का फैसला गुजरात सरकार पर छोड़ने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दायर करते हुए दोषियों की रिहाई पर सवाल उठाया है। इस मामले को मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ के सामने रखा गया। वह अब इसकी योग्यता पर विचार करेंगे।
बिलकिस बानो ने याचिका में क्या दी है दलील?
बिलकिस बानो की ओर से दाखिल की गई पुनर्विचार याचिका में कहा गया है कि इस मामले में रिहाई की नीति महाराष्ट्र सरकार की लागू होनी चाहिए, न कि गुजरात सरकार की। उनका दावा है कि कानून के मुताबिक समुचित सरकार का मतलब इस मामले में महाराष्ट्र सरकार है न कि गुजरात सरकार से, क्योंकि महाराष्ट्र में ही यह मामला सुना गया और सजा भी वहीं सुनाई गई थी। ऐसे में गुजरात सरकार की नीति प्रभावी नहीं होती है।
क्या है बिलकिस बानो गैंगरेप केस?
गोधरा में कारसेवकों से भरी ट्रेन की बोगी में आग लगने के बाद हुए गुजरात दंगों के दौरान 3 मार्च, 2002 को दाहोद जिले के रंधिकपुर गांव में बिलकिस बानो के साथ गैंगरेप किया गया था। उस वक्त बिलकिस 21 साल की थीं और पांच महीने की गर्भवती थीं। दंगाइयों ने बिलकिस के परिवार के 14 सदस्यों की हत्या भी कर दी थी। मरने वालों में बिलकिस की तीन वर्षीय बेटी भी शामिल थी।
CBI कोर्ट ने दोषियों को सुनाई थी उम्रकैद की सजा
केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) की स्पेशल कोर्ट ने 21 जनवरी, 2008 को मामले में 11 दोषियों को उम्रकैद की सजा सुनाई थी, वहीं बाकियों को सबूतों के अभाव में छोड़ना पड़ा था। अब इन 11 दोषियों को भी जेल से रिहा कर दिया गया है।
स्वतंत्रता दिवस पर रिहा किए गए थे दोषी
गुजरात सरकार ने 1992 की माफी नीति के तहत 15 अगस्त को बिलकिस बानो गैंगरेप केस के सभी 11 दोषियों को रिहा किया था। सरकार का कहना है कि जेल में 14 साल पूरे होने और उम्र, जेल में बर्ताव और अपराध की प्रकृति जैसे कारकों के चलते दोषियों की सजा में छूट के आवेदन पर विचार किया गया था। उम्रकैद का मतलब न्यूनतम 14 साल की सजा होती है और इन दोषियों ने इतनी सजा काट ली है।
सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार को दिया था रिहाई पर फैसला करने का अधिकार
दरअसल, एक दोषी राधेश्याम ने लंबी सजा काटने के बाद माफी के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। इस पर मई में कोर्ट ने रिहाई पर फैसला करने का अधिकार गुजरात सरकार को दिया था। उसके बाद गुजरात सरकार ने मामले में एक समिति का गठन किया था, जिसने सर्वसम्मति से सभी 11 दोषियों को रिहा करने की सिफारिश की। इस समिति में दो भाजपा नेता भी शामिल थे। ऐसे में सभी आरोपियों को रिहा किया गया था।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले को दी जा चुकी है चुनौती
बिलकिस बानो गैंगरेप मामले में दोषियों को बरी करने के खिलाफ पहले से ही सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है। इससे पहले रिहाई के खिलाफ कई याचिकाएं दाखिल हो चुकी हैं। सभी याचिकाओं में दोषियों की रिहाई के गुजरात सरकार के आदेश को तत्काल रद्द कर दोषियों को जेल भेजने की मांग की गई है। इसी तरह विपक्षी दलों और आलोचकों ने भी दोषियों की रिहाई पर सवाल खड़े करते हुए उनके दोबारा गिरफ्तार करने की मांग की थी।
दोषियों की रिहाई को रद्द करने की मांग कर चुकी हैं बिलकिस
बिलकिस बानो पहले भी दोषियों की रिहाई का फैसला पलटने की मांग कर चुकी है। उन्होंने कहा था कि इस रिहाई ने न्याय में उनके विश्वास को हिला दिया है। बिलकिस का कहना था कि दोषियों की रिहाई के बाद उन्होंने इस 20 साल पुरानी घटना के सदमे को एक बार फिर से महसूस किया है। उन्होंन कहा था, "मैं केवल यह पूछ सकती हूं कि किसी औरत की न्याय की लड़ाई ऐसे कैसे खत्म हो सकती है?"