आडवाणी खेमे के जेटली जो मोदी को दिल्ली लेकर आए, ऐसा रहा उनका सफर
क्या है खबर?
पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली 66 साल की उम्र में दुनिया को छोड़कर चले गए।
भारतीय जनता पार्टी के सबसे बड़े नेताओं में शामिल रहे जेटली, नरेंद्र मोदी के करीबी रहे थे।
कहा जाता है कि नरेंद्र मोदी को दिल्ली बुलाने में जेटली का बड़ा हाथ था। गुजरात दंगों के बाद अरुण जेटली ने उनका केस लड़ा था।
यह प्रधानमंत्री से करीबी ही थी कि जेटली को 2014 में चुनाव हारने के बाद भी बड़े मंत्रालय सौंपे गए।
राजनीति
नरेंद्र मोदी के लिए संकटमोचक की भूमिका निभा चुके जेटली
जेटली और नरेंद्र मोदी की दोस्ती दशकों पुरानी है। गुजरात के मुख्यमंत्री बनने से पहले भी जब नरेंद्र मोदी दिल्ली आते थे, वो अकसर जेटली के घर पर जाते थे।
जेटली ने अनेक मौकों पर नरेंद्र मोदी का समर्थन किया है। आडवाणी कैंप के समझे जाने वाले जेटली ने 2013 में प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के लिए नरेंद्र मोदी के नाम का समर्थन किया था।
कई मौकों पर उन्होंने मोदी सरकार के संकटमोचक की भूमिका निभाई है।
शुरुआत
कॉलेज के दिनों से शुरू की राजनीति
अरुण जेटली का जन्म 28 दिसंबर, 1952 को दिल्ली के नारायणा विहार में हुआ था।
उनके पिता किशन जेटली जाने-माने वकील थे। जेटली की स्कूली शिक्षा दिल्ली के सेंट जेवियर स्कूल में हुई।
ग्रेजुएशन के लिए उन्होंने मशहूर कॉलेज श्रीराम कॉलेज ऑफ कॉमर्स में दाखिला लिया। इसके बाद यहीं से उन्होंने कानून की पढ़ाई की।
अपने छात्र जीवन के दौरान ही राजनीति में सक्रिय हो गए थे। साल 1974 में वह दिल्ली यूनिवर्सिटी स्टूडेंट यूनियन (DUSU) के अध्यक्ष चुने गए।
राजनीति
1991 में भाजपा से जुड़े थे जेटली
वकालत की प्रैक्टिस करने वाले जेटली 1991 में भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुए।
तेजतर्रार वक्ता के रूप में पहचान बना चुके जेटली को 1999 आम चुनाव से पहले पार्टी ने प्रवक्ता बनाया।
जब भाजपा की सरकार बनी तो उन्हें तत्कालीन प्रधानमनंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने सूचना और प्रसारण मंत्रालय का कार्यभार सौंपा।
इसके बाद उन्हें विनिवेश का स्वतंत्र राज्यमंत्री का पदभार दिया गया। भाजपा में इतना लोकप्रिय होने के बाद भी वो कभी लोकसभा चुनाव नहीं जीत सके।
करियर
आडवाणी के चुनाव एजेंट थे जेटली
कहा जाता है कि अटल बिहारी वाजपेयी के समय की भाजपा में जेटली वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी के करीबी रहे।
1991 के लोकसभा चुनावों में आडवाणी नई दिल्ली लोकसभा सीट से चुनाव लड़ रहे थे। उनके सामने राजेश खन्ना थे।
इस चुनाव में जेटली, आडवाणी के चुनाव एजेंट थे। लालकृष्ण आडवाणी यह चुनाव जीते थे।
जेटली ने बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले और जैन हवाला केस में आडवाणी की तरफ से केस लड़ा।
जानकारी
जेटली को बेहद पसंद थे जलेबी और छोले भटूरे
जेटली खाने के बेहद शौकीन थे। उन्हें जलेबी, कचौड़ी, रबड़ी फलूदा और छोले भटूरे बेहद पसंद थे। वो अकसर दिल्ली के रोशनआरा क्लब में खाने के लिए जाते थे। हालांकि, मधुमेह होने के बाद उन्होंने अपने खाने पर बेहद नियंत्रण कर लिया था।
शौक
महंगी घड़ियों और पेन का शौक
अरुण जेटली महंगी घड़ियों और कलमों के बेहद शौकीन रहे। बीबीसी के मुताबिक, उन्होंने उस समय पैटेक फिलिप घड़ी खरीदी थी, जब अधिकतर लोग इसे खरीदने के बारे में सोचते भी नहीं थे।
साथ ही उन्हें महंगे पेन का शौक था। उन्हें Montblanc के पेन काफी पसंद थे।
अगर उन्हें भारत में ये पेन नहीं मिलते थे तो वो विदेशों से अपने दोस्तों के जरिए यह पेन मंगवाते थे। उनके पास इन पेन का कलेक्शन भी है।
जानकारी
मंत्री बनने के बाद खुद की जेब से दिया था गेस्ट हाउस का किराया
अटल सरकार में मंत्री बनने के बाद जेटली अपने दोस्तों के साथ नैनीताल गए थे। इस दौरान वह राजभवन के गेस्ट हाउस में रुके थे। तब उन्होंने अपने और अपने साथ गए सभी लोगों के कमरों का किराया अपनी जेब से चुकाया था।
सेहत
9 अगस्त से अस्पताल में भर्ती थे जेटली
मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में कई मंत्रालयों का प्रभार संभालने वाले जेटली को 9 अगस्त को सांस लेने में हो रही तकलीफ के बाद अस्पताल में भर्ती कराया गया था।
उनके भर्ती होने के बाद से AIIMS की तरफ से एक बार भी उनका मेडिकल बुलेटिन जारी नहीं किया गया।
अस्पताल में भर्ती रहने के दौरान राष्ट्रपति, उपराष्ट्रमति और कई मंत्री उनका हाल जानने के लिए पहुंचे थे।
डॉक्टरों की एक टीम उनकी निगरानी कर रही थी।
सेहत
खराब सेहत के कारण नहीं लड़ा था लोकसभा चुनाव
लंबे समय से बीमार चल रहे जेटली को मई में भी AIIMS में भर्ती कराया गया था।
पिछले साल वित्त मंत्री रहते हुए उनका किडनी ट्रांसप्लांट हुआ था। उनके इलाज के दौरान पीयूष गोयल को वित्त मंत्रालय का प्रभार सौंपा गया था।
पेशे से वकील जेटली को डायबिटीज की भी बीमारी थी, जिसके चलते उन्हें 2014 में ऑपरेशन करवाना पड़ा था।
अपनी सेहत के कारण उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी को पत्र लिखकर 2019 लोकसभा चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया था।