कॉलेजियम सिस्टम क्या है और अभी इस पर क्यों चर्चा हो रही है?
क्या है खबर?
जजों की नियुक्ति के लिए चला आ रहा कॉलेजियम सिस्टम अब चर्चा में है।
सरकार कई मौकों पर इस सिस्टम पर सवाल उठा चुकी है। वहीं पूर्व मुख्य न्यायाधीश (CJI) यूयू ललित ने न्यायपालिका की स्वतंत्रता के लिए इसे जरूरी करार दिया था।
अब सरकार कह रही है कि देश में जजों की नियुक्ति के लिए नई व्यवस्था की जरूरत है।
आइये जानते हैं कि कॉलेजियम क्या है और यह अभी चर्चा में क्यों है।
जानकारी
क्या है कॉलेजियम सिस्टम?
कॉलेजियम सिस्टम के जरिये सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में जजों की नियुक्ति की जाती है।
यह सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश (CJI) और चार वरिष्ठतम जजों का एक समूह होता है। यही समूह सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति और हाई कोर्ट के मुख्य न्यायधीश और जजों के स्थानांतरण के फैसले लेता है। कॉलेजियम की तरफ से नाम भेजने के बाद सरकार की भूमिका शुरू होती है।
पिछले काफी समय से कॉलेजियम सिस्टम पर सवाल उठ रहे हैं।
शुरुआत
कैसे हुई थी कॉलेजियम सिस्टम की शुरुआत?
कॉलेजियम सिस्टम का न तो संविधान में कही जिक्र है और न ही इसकी शुरुआत संसद के किसी कानून से हुई थी। सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों के जरिये ही कॉलेजियम सिस्टम विकसित हुआ है।
दरअसल, शुरुआत में केंद्र सरकार परामर्श के लिए CJI को जजों के नाम भेजती थी। विचार के बाद ये नाम राष्ट्रपति को भेज दिए जाते थे और इसी प्रक्रिया से जजों की नियुक्ति होती आई थी।
इसके बाद 1981 में एक अहम फैसला आया।
फर्स्ट जजेज केस
1981 के फैसले में क्या कहा गया?
1981 में जजों की नियुक्ति को लेकर एक फैसला आया था, जिसे फर्स्ट जजेज केस कहा जाता है। इसमें CJI के परामर्श का अर्थ राय लेना बताया गया। इसमें यह भी कहा गया था कि अगर कोई ठोस कारण है तो CJI के सुझाव की प्रधानता को अस्वीकार भी किया जा सकता है।
इसके 12 साल बाद तक जजों की नियुक्ति में यही प्रक्रिया अपनाई जाती रही, लेकिन 1993 के फैसले ने इस प्रक्रिया को बदल दिया।
सेकंड जजेज केस
1993 के फैसले में क्या कहा गया?
1993 के सेकंड जजेज केस में सुप्रीम कोर्ट ने 1981 के फैसले को स्पष्ट करते हुए कहा कि CJI के परामर्श का मतलब सहमति है।
कोर्ट ने कहा कि यह CJI की व्यक्तिगत राय नहीं होगी बल्कि सुप्रीम कोर्ट के दो वरिष्ठतम जजों से बातचीत के बाद ली गई संस्थागत राय होगी। इसका मतलब यह हुआ कि सुप्रीम कोर्ट के जज जिस नाम का सिफारिश करेंगे, राष्ट्रपति उसी को जज नियुक्ति करेंगी।
यहीं से कॉलेजियम सिस्टम की शुरुआत हुई।
जानकारी
फिर हुआ कॉलेजियम का विस्तार
शुरुआत में कॉलेजियम में CJI और सुप्रीम कोर्ट के दो वरिष्ठतम जज होते थे। पांच साल बाद यानी 1998 में आए एक फैसले में इसका दायरा बढ़ाकर इसमें CJI के अलावा चार सबसे वरिष्ठतम जजों को शामिल किया गया।
सवाल
कॉलेजियम पर उठ रहे ये सवाल
कॉलेजियम पर लंबे समय से अपारदर्शी और जवाबदेह न होने के आरोप लग रहे हैं। कई लोग कॉलेजियम पर पक्षपात और भाई-भतीजावाद को बढ़ावा देने के भी आरोप लगा चुके हैं।
इनके अलावा हालिया समय में केंद्रीय कानून किरेन रिजिजू ने भी कॉलेजियम पर सवाल उठाते हुए इसमें सुधार की वकालत की थी। उनका कहना है कि दुनिया में कहीं और ऐसा नहीं होता, जहां जज ही जजों को नियुक्त करते हैं। यह काम सरकार का है।
NJAC
क्या इस व्यवस्था को बदलने का प्रयास हुआ?
2014 में केंद्र सरकार कॉलेजियम सिस्टम को नेशनल ज्यूडिशियल अपॉइंटमेंट कमीशन (NJAC) से बदलने के लिए विधेयक लाई थी। इसमें सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों समेत छह लोगों द्वारा नियुक्ति के नामों का चयन किया जाना था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे रद्द कर दी।
2015 में सुप्रीम कोर्ट ने इसे गैर-संवैधानिक करार देते हुए खारिज कर दिया और कहा था कि संविधान के मूल ढांचे में न्यायपालिका की सर्वोच्चता को बहाल रखा गया है।
सवाल
उपराष्ट्रपति धनखड़ ने उठाए NJAC को रद्द करने पर सवाल
इसी महीने उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने सुप्रीम कोर्ट के NJAC को रद्द करने पर सवाल उठाए थे।
उन्होंने कहा कि NJAC अधिनियम लोकसभा और राज्यसभा में सर्वसम्मति से पारित हुआ था और भारत के लोगों की इच्छा एक संवैधानिक प्रावधान में तब्दील हुई थी, लेकिन एक वैध मंच के जरिये सामने आई लोगों की इस शक्ति को पलट दिया गया था।
उन्होंने हैरानी जताते हुए कहा कि इसको लेकर संसद में कोई चर्चा भी नहीं हुई।