अविवाहित बेटी माता-पिता से कर सकती है शादी के खर्च की मांग- छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट
क्या है खबर?
छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट में एक महिला के अपने माता-पिता से शादी का खर्च दिलवाने के संबंध में दायर की गई याचिका पर सुनवाई हुई।
इसमें कोर्ट ने महिला के हक के फैसला सुनाते हुए कहा कि एक अविवाहित बेटी हिंदू दत्तक और भरण-पोषण अधिनियम, 1956 के प्रावधानों के तहत अपने माता-पिता से शादी के खर्च का दावा कर सकती है।
इसके साथ ही कोर्ट ने दुर्ग पारिवारिक न्यायालय के याचिका को खारिज करने के फैसले को भी अवैध ठहराया है।
प्रकरण
क्या है पूरा मामला?
दुर्ग जिला निवासी और भिलाई स्टील प्लांट में कार्यरत रहे भानुराम की बेटी राजेश्वरी (35) ने साल 2016 में हाई कोर्ट में एक याचिका दायर कर माता-पिता से शादी का खर्च दिलाने की मांग की थी।
उस दौरान हाई कोर्ट ने याचिका को खारिज कर पारिवारिक न्यायालय में जाने को कहा था। उसके बाद राजेश्वरी ने दुर्ग पारिवारिक न्यायालय में याचिका दायर करते हुए माता-पिता को शादी के लिए 20 लाख रुपये देने का आदेश देने की मांग की थी।
खारिज
पारिवारिक न्यायालय ने खारिज कर दी थी याचिका
राजेश्वरी की याचिका पर सुनवाई करते हुए पारिवारिक न्यायालय ने 20 फरवरी, 2016 को उसे खारिज कर दिया था।
पारिवारिक न्यायालय ने तर्क दिया था कि हिंदू दत्तक और भरण-पोषण अधिनियम, 1956 में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है एक बेटी अपनी शादी के खर्च के लिए माता-पिता पर दावा कर सके।
इसके बाद राजेश्वरी ने शादी के खर्च की मांग और पारिवारिक न्यायालय के आदेश को चुनौती देने के लिए हाई कोर्ट की बिलासपुर खंडपीठ का रुख किया था।
तर्क
हाई कोर्ट में दायर याचिका में यह दिया था तर्क
अधिवक्ता एके तिवारी के जरिए दायर की गई याचिका में राजेश्वरी ने कहा था कि एक अविवाहित बेटी हिंदू दत्तक और भरण-पोषण अधिनियम, 1956 के प्रावधानों के तहत अपने माता-पिता से अपनी शादी के लिए राशि की मांग कर सकती है, लेकिन इसके बाद भी पारिवारिक न्यायालय ने इसे खारिज कर दिया।
उसने कहा था कि उसके पिता को सेवानिवृत्ति के दौरान कुल 55 लाख रुपये मिले थे। ऐसे में वह 20 लाख की हकदार है।
सुनवाई
हाई कोर्ट ने राजेश्वरी के हक में सुनाया फैसला
जस्टिस गौतम भादुड़ी और जस्टिस संजय एस अग्रवाल की पीठ ने 21 मार्च को राजेस्वरी की याचिका को यह कहते हुए सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया कि एक अविवाहित बेटी हिंदू दत्तक और भरण-पोषण अधिनियम, 1956 के प्रावधानों के तहत अपने माता-पिता से अपनी शादी की राशि का दावा कर सकती है।
इसके अलावा पीठ ने पारिवारिक न्यायालय के आदेश को भी खारिज कर दिया है। अब राजेस्वरी शादी के खर्च की हकदार होगी।