पूर्वोत्तर राज्यों में स्थानीय समुदाय कैसे कर रहे हैं कोरोना महामारी से जंग लड़ने में मदद?
देश में कोरोना वायरस के संक्रमण के प्रमुख हॉटस्पॉट दिल्ली और मुंबई अब संक्रमण के प्रसार को नियंत्रित करने की ओर बढ़ रहे हैं, वहीं देश पूर्वोत्तर राज्यों में संक्रमण तेजी से बढ़ने लगा है। हालांकि, नागालैंड और अन्य पड़ोसी राज्यों में स्थानीय समुदायों इस महामारी से मुकाबला करने के लिए आगे आ गए हैं। यहां लोग क्वारंटाइन सेंटर चला रहे हैं, खुद की टास्क फोर्स बना रहे हैं और खुद ही मानक संचालन प्रक्रियाओं को तैयार कर रहे हैं।
कोहिमा में संचालित किए क्वारंटाइन सेंटर
नागालैंड की राजधानी कोहिमा में स्थानीय समुदाय के लोगों ने शहर के 19 वार्डों में से 10 में खुद के क्वारंटाइन सेंटर संचालित किए हैं। कोहिमा म्युनिसिपल काउंसिल के अध्यक्ष कोवी मेयसे ने द प्रिंट को बताया कि इस तरह की सुविधाओं को समुदायों द्वारा सरकार की थोड़ी बहुत मदद से संचालित किया जा रहा है। उन्होंने कहा, "यह समुदाय है, जिसने इन सुविधाओं के लिए आवश्यक साधनों की व्यवस्था की है, चाहे वह नकदी हो या अन्य सामान।"
क्वारंटाइन सेंटर में तब्दील हुआ अपर चांदमारी कॉलोनी स्थित सरकारी स्कूल
अपर चांदमारी कॉलोनी के घर कोहिमा में संचालित 10 क्वारंटाइन सुविधाओं में से एक है। यह सुविधा एक सरकारी स्कूल में शुरू की गई है। जून से अब तक यहां राज्य में वापस लौटने वाले 13 लोगों को रखा गया है और वर्तमान में पांच लोग यहां क्वारंटाइन हैं। वार्ड अध्यक्ष केथोलिली केदित्सु ने 13 सदस्यीय कोरोना टास्क फोर्स का गठन किया है। टास्क फोर्स को आने वालों का रजिस्ट्रेशन और सेंटर के प्रबंधन का कार्य सौंपा गया है।
कॉलोनी के युवाओं, बुजुर्गों ने क्वारंटाइन लोगों के लिए बनाया भोजन
केदित्सु ने बताया, "सरकारी क्वारंटाइन सेंटरों से आने वाले सभी लोग हमारे युवाओं और कोरोना एक्शन कमेटी को मिलते हैं। इसके बाद उन्हें यहां रखा जाता है। कॉलोनी के युवा और बुजुर्ग यहां आने वाले सभी लोगों के लिए खाना बनाते हैं।"
"वॉलेंटियर्स काली बनियान पहनते हैं और वॉकी टॉकी रखते हैं"
टास्क फोर्स के वॉलेंटियर्स सशस्त्र बलों की तर्ज पर काले रंग की बनियान पहनते हैं और एक-दूसरे से समन्वय के लिए अपने साथ वॉकी-टॉकी रखते हैं। टास्क फोर्स के सचिव तेजासेजो मोर ने स्पष्ट किया, "हम किसी भी तरह के विशेष नियमों का पालन नहीं करते हैं, क्योंकि यह एक समुदाय आधारित सुविधा है। इसलिए यहां हर कोई रसोई में खाना बनाने या उसकी इच्छा के अनुसार अन्य कार्य करने के लिए पूरी तरह स्वतंत्र है।"
सामुदायिक समूह कोरोना से लड़ने में मदद करते हैं, लेकिन बना रहता है विवाद
कोहिमा के मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ वेजोखोलू थेयो ने कहा, "जैसे-जैसे दिन बीत रहे हैं, (समुदायों) को पता चल गया है कि कोरोना वायरस क्या है और वो कॉलोनी के लोगों में जागरूकता ला रहे हैं। वह बहुत मदद कर रहे हैं।" दूसरी तरफ उनकी नीतियों और सामुदायिक समूहों के बीच नियमों को लेकर विवाद है। दीमापुर के मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ तैसुनेप पोंगेनर ने भी कहा कि इन समुदायों ने उनके कार्य में बाधा उत्पन्न की है।
सामुदायिक टास्क फोर्स कैंसर मरीजों को लेने के लिए नहीं है तैयार- पोंगेनर
असम के साथ सीमा साझा करने वाले दीमापुर में नागालैंड का एकमात्र हवाई अड्डा और रेलवे स्टेशन है। डॉ पोंगेनर ने कहा कि समुदाय उन लोगों को पकड़ने में मदद करता है जो सीमा के माध्यम से प्रवेश करते हैं और जिन पर अधिकारियों की नजर नहीं होती है। हालांकि, समुदाय होम क्वारंटाइन के लिए कैंसर रोगियों सहित विशेष श्रेणी के मरीजों लेने के लिए तैयार नहीं है। इसलिए उन्हें संस्थागत क्वारंटाइन सेंटर में रखा जाना चाहिए।
स्थानीय लोग पूरे पूर्वोत्तर में आवागमन करते हैं
मणिपुर और मिजोरम में स्थानीय परंपराएं सोशल डिस्टैंसिंग के नियम का पालन कराने में मदद कर रही है। जैसे किसी भी दुकान से कोई सामान खरीदने पर पैसा बॉक्स या जार में डालना। मेघालय में भी कम्यूनिटी कोविड प्रबंधन दल बनाए गए हैं। इनमें सरकार के प्रतिनिधि भी शामिल किए गए हैं। शिलांग के 6,000 गांवों सहित मेघालय के तीन शहरी क्षेत्रों में 7,000 से अधिक समितियों का गठन किया गया है।
होम क्वारंटाइन वालों की निगरानी करते हैं कम्युनिटी ग्रुप- संयुक्त सचिव
मेघायल में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग के संयुक्त सचिव राम कुमार ने कहा, "वो होम क्वारंटाइन लोगों की निगरानी करते हैं। वो सामुदायिक क्वारंटाइन सेंटरों में लोगों की देखभाल करते हैं। इनके जरिए वह संक्रमण को अधिक फैलने से रोक सकते हैं।"