गीता प्रेस: हिंदू ग्रंथों की सबसे बड़ी प्रकाशक, जिसने 100 साल में छापीं करोड़ों धार्मिक किताबें
क्या है खबर?
केंद्र सरकार ने गोरखपुर की गीता प्रेस को 2021 का गांधी शांति पुरस्कार देने का ऐलान किया है।
यह पुरस्कार गीता प्रेस को अहिंसक और अन्य गांधीवादी तरीकों के माध्यम से सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक परिवर्तन में योगदान के लिए प्रदान किया जाएगा। हालांकि, गीता प्रेस ने इसके साथ मिलने वाली 1 करोड़ रुपये की पुरस्कार राशि को लेने से मना कर दिया है।
आइए 100 वर्षों से अधिक पुरानी संस्था गीता प्रेस के बारे में विस्तार से जानते हैं।
संस्था
1923 में हुई थी गीता प्रेस की स्थापना
उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में स्थित गीता प्रेस दुनिया में हिंदू धार्मिक ग्रंथों की सबसे बड़ी प्रकाशक है।
जय दयाल गोयनका, घनश्याम दास जालान और हनुमान प्रसाद पोद्दार ने गीता प्रेस की स्थापना 1923 में की थी। इसकी स्थापना का मुख्य उद्देश्य सनातन धर्म के सिद्धांतों को बढ़ावा देना था।
गीता प्रेस के संस्थापकों में से एक हनुमान प्रसाद पोद्दार उर्फ भाईजी गीता प्रेस की 'कल्याण' नामक पत्रिका के पहले संपादक भी थे।
प्रकाशन
गीता प्रेस में छपते हैं अनेक धार्मिक ग्रंथ
गीता प्रेस श्रीमद्भगवद्गीता, रामचरितमानस, रामायण, पुराण और उपनिषद जैसे अनेक हिंदू धार्मिक ग्रंथों को छापती है। यह बच्चों में धर्म की समझ बढ़ाने के लिए बालोपयोगी किताबें भी प्रकाशित करती है।
गीता प्रेस हर महीने 'कल्याण' नाम की पत्रिका भी निकालती है, जिसमें भक्ति, ज्ञान, योग, धर्म, वैराग्य और अध्यात्म जैसे विषयों को शामिल किया जाता है। इसके साथ ही हर साल किसी एक विषय पर एक विशेष पुस्तक का प्रकाशन भी किया जाता है।
प्रकाशन
41.7 करोड़ से अधिक धार्मिक किताबें छाप चुकी है गीता प्रेस
गीता प्रेस की आधिकारिक वेबसाइट के मुताबिक, यह अब तक 41.7 करोड़ से अधिक किताबें छाप चुकी है। यह किताबें हिंदी के अलावा 14 भाषाओं में उपलब्ध हैं, जिनमें मराठी, गुजराती, उड़िया, संस्कृत, तेलुगु, कन्नड़, नेपाली, अंग्रेजी, बांग्ला, तमिल, असमिया और मलयालम शामिल हैं।
गीता प्रेस ने अब तक श्रीमद्भगवद्गीता की 16.21 करोड़ से अधिक प्रतियां छापी हैं। इसने कवि तुलसीदास की रचनाओं की 11.73 करोड़ प्रतियों के साथ-साथ पुराणों और उपनिषदों की 2.68 करोड़ प्रतियां भी छापी हैं।
जानकारी
गीता प्रेस में रोजाना होती है प्रार्थना
गीता प्रेस में दिन की शुरुआत सुबह की प्रार्थना से होती है। एक व्यक्ति हर कर्मचारी को भगवान का नाम याद दिलाने के लिए दिनभर घूमता रहता है। गीता प्रेस के मुताबिक, संस्था लोगों के जीवन की बेहतरी और भलाई के लिए कार्य करती है।
प्रेस
गीता प्रेस का प्रबंधन संभालता है ट्रस्ट बोर्ड
गीता प्रेस गोविंद भवन कार्यालय की एक इकाई है। इसे सोसाइटी पंजीकरण अधिनियम, 1860 के तहत पंजीकृत किया गया था, जिसे अब पश्चिम बंगाल सोसाइटी अधिनियम, 1960 के रूप में जाना जाता है।
गीता प्रेस का प्रबंधन एक ट्रस्ट बोर्ड संभालता है। यह किसी व्यक्ति या संस्था से चंदा नहीं मांगती है और ना ही विज्ञापन देती है। इसका सारा खर्च उन संगठनों द्वारा वहन किया जाता है, जो सस्ती कीमतों पर प्रिंटिंग के सामान की आपूर्ति करते हैं।
हड़ताल
गीता प्रेस के कर्मचारियों ने 2014 में की थी हड़ताल
गीता प्रेस के कर्मचारियों ने दिसंबर, 2014 में वेतन को लेकर हड़ताल कर दी थी, जिसके बाद 3 कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया गया था।
हालांकि, बाद में गीता प्रेस के ट्रस्ट और कर्मचारी संगठन के बीच हुई बैठक में मामला सुलझ गया था और तीनों कर्मचारियों को वापस काम पर रख लिया गया था।
यह पहला मौका था जब गीता प्रेस करीब 3 हफ्ते तक बंद रही थी।
विवाद
गीता प्रेस और महात्मा गांधी के बीच क्या वैचारिक मतभेद थे?
गीता प्रेस के संस्थापक पोद्दार और महात्मा गांधी के बीच कई मुद्दों को लेकर वैचारिक मतभेद सामने आए थे। गीता प्रेस का मानना था कि दलितों को मंदिरों में प्रवेश नहीं मिलना चाहिए, जबकि गांधी इसके लिए अभियान चला रहे थे।
गीता प्रेस पर हिंदू महासभा का समर्थन करने के आरोप भी लगते रहे हैं।
दावा किया जाता रहा है कि महात्मा गांधी की हत्या के बाद गिरफ्तार किए गए हजारों लोगों में पोद्दार भी शामिल थे।
तारीफ
प्रधानमंत्री और गृह मंत्री ने दी गीता प्रेस को बधाई
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने गीता प्रेस को गांधी शांति पुरस्कार मिलने पर बधाई दी है। प्रधानमंत्री मोदी ने ट्वीट किया, 'गीता प्रेस ने लोगों के बीच सामाजिक और सांस्कृतिक परिवर्तन को आगे बढ़ाने की दिशा में पिछले 100 वर्षों में सराहनीय कार्य किया है।'
शाह ने लिखा, 'भारत की गौरवशाली प्राचीन सनातन संस्कृति और आधार ग्रंथों को अगर आज सुलभता से पढ़ा जा सकता है तो इसमें गीता प्रेस का अतुलनीय योगदान है।'
पुरस्कार
क्या है गांधी शांति पुरस्कार?
गांधी शांति पुरस्कार एक वार्षिक पुरस्कार है, जिसकी शुरुआत भारत सरकार ने 1995 में महात्मा गांधी की 125वीं जयंती के अवसर पर गांधी के आदर्शों को सम्मान देने के लिए की थी।
केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय के अनुसार, यह पुरस्कार किसी भी राष्ट्रीयता, नस्ल, भाषा, जाति, पंथ या लिंग के व्यक्ति या संस्था को उसके योगदान के लिए दिया जा सकता है।
इस पुरस्कार में 1 करोड़ रुपये की राशि, प्रशस्ति पत्र, पट्टिका और उत्कृष्ट पारंपरिक हस्तकला/हथकरघा वस्तु शामिल होती है।