#NewsBytesExplainer: मणिपुर हिंसा की जांच करने जा रही समिति में कौन-कौन है?
मणिपुर में पिछले एक महीने से जारी हिंसा की जांच के लिए केंद्र सरकार ने एक 3 सदस्यीय समिति गठित की है। गुवाहाटी हाई कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश अजय लांबा की अगुवाई वाली इस समिति में सेवानिवृत्त IAS अधिकारी हिमांशु शेखर दास और सेवानिवृत्त IPS अधिकारी आलोक प्रभाकर शामिल हैं। आइए जानते हैं कि जांच समिति में जिन लोगों को शामिल किया गया है, वो कौन हैं और ये समिति क्या करेगी।
पूर्व न्यायाधीश अजय लांबा
पूर्व न्यायाधीश अजय लांबा ने एक सरकारी वकील के तौर पर अपना करियर शुरू किया था। 2006 में उन्हें पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया। इसके बाद 2011 में न्यायाधीश लांबा का इलाहाबाद हाई कोर्ट ट्रांसफर किया गया और 2019 में उनकी गुवाहाटी हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के तौर पर नियुक्ति हुई। वह गुवाहाटी हाई कोर्ट से ही सितंबर, 2020 में सेवानिवृत्त हुए थे।
सेवानिवृत्त IAS अधिकारी हिमांशु शेखर दास
पूर्व IAS अधिकारी हिमांशु शेखर दास 1982 में भारतीय प्रशासनिक सेवा में शामिल हुए थे। उन्होंने 13 साल तक असम सरकार के वित्त सचिव के रूप में कार्य किया। वह राज्य सरकार द्वारा गठित एक पुलिस आयोग का भी हिस्सा थे, जिसने असम पुलिस की कार्यप्रणाली, गतिविधियों और तैनाती में सुधार के उपायों की सिफारिश की थी। इसके अलावा IPS दास असम में राज्य सूचना आयुक्त की जिम्मेदारी भी संभाल चुके हैं।
सेवानिवृत्त IPS आलोक प्रभाकर
पूर्व IPS अधिकारी आलोक प्रभाकर 1986 में पुलिस प्रशासनिक सेवा का हिस्सा बने थे। वह केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) के विशेष निदेशक भी रहे। उन्होंने आंतकवाद और उग्रवाद विरोधी कई अभियानों में काम किया है और वह कुछ समय मणिपुर में भी पोस्टिंग पर रहे। IPS प्रभाकर ने मार्च, 2020 में सेवानिवृत्त होने से पहले 3 दशक से अधिक समय तक CBI में काम किया। वह सेवानिवृत्ति होने के बाद एक जासूस के जीवन पर किताब भी लिख चुके हैं।
जांच समिति क्या काम करेगी?
गृह मंत्रालय की एक अधिसूचना में कहा गया है कि जांच समिति मणिपुर में लक्षित हिंसा और दंगों के कारणों की गहनता से जांच करेगी। इसके अलावा समिति मणिपुर हिंसा को रोकने में प्रशासनिक और पुलिस स्तर के अधिकारियों द्वारा कथित तौर पर बरती गई लापरवाही की भी पड़ताल करेगी। इस अधिसूचना के अनुसार, समिति मंत्रालय के समक्ष अपनी अंतरिम जांच रिपोर्ट भी प्रस्तुत कर सकती है। समिति को जांच के लिए 6 महीने का समय दिया है।
मणिपुर में कैसे हुई थी हिंसा की शुरुआत?
3 मई को कुकी आदिवासियों ने गैर-आदिवासी मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति (ST) का दर्जा दिये जाने के विरोध में ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन मणिपुर (ATSUM) के बैनर तले एकजुटता मार्च निकाला था। इसके बाद एक हफ्ते से ज्यादा समय तक मणिपुर में हिंसक झड़पें होती रहीं। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, हिंसा में 98 लोग जान गंवा चुके हैं और 310 लोग घायल हुए हैं। वर्तमान में यहां तकरीबन 37,450 बेघर लोग 272 राहत शिविरों में शरण लिए हुए हैं।
मणिपुर हिंसा के पीछे क्या है प्रमुख कारण?
मैतई समुदाय की मणिपुर की कुल आबादी में करीब 60 प्रतिशत हिस्सेदारी है। आदिवासियों को डर है कि अगर मैतेई समुदाय को ST वर्ग का दर्जा मिला तो वह आदिवासियों के लिए आरक्षित 10 प्रतिशत वन्य क्षेत्र के अलावा उनकी अन्य जमीन और संसाधनों पर कब्जा कर लेगा। कुकी आदिवासी समुदाय को आरक्षित वन भूमि से बेदखल करने को लेकर पहले भी हिंसक झड़पें हुई हैं, जिसके कारण राज्य में छोटे-बड़े आंदोलन होते रहे हैं।
न्यूजबाइट्स प्लस
पिछले हफ्ते केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने शांति बहाली के प्रयासों को लेकर मणिपुर को 4 दिवसीय दौरा किया था। इस दौरान उन्होंने नागरिक संगठनों से मुलाकात करते हुए राज्य में सामान्य स्थिति बहाल करने का अनुरोध किया था। इसके अलावा उन्होंने मणिपुर हिंसा में मारे गए लोगों के परिवारों को 10 लाख रुपये का मुआवजे देने का ऐलान भी किया। इसके साथ ही राज्य सरकार द्वारा मृतक के एक परिजन को नौकरी भी दी जाएगी।