#NewsBytesExclusive: शरीर के तीनों दोष कोरोना से कैसे प्रभावित होते हैं?
आयुर्वेद चिकित्सा की सबसे प्राचीन उपचार प्रणालियों में से एक है, जिसके अनुसार व्यक्ति के शरीर में तीन दोष (वात, पित्त और कफ) होते हैं, जिनसे मिलकर शरीर बनता है। माना जाता है कि ये दोष पांच मूल तत्व (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश) से उत्पन्न होते हैं। अब सवाल यह कि शरीर के तीनों दोष कोरोना से कैसे प्रभावित होते हैं? इसके बारे में हमने आयुर्वेदिक विशेषज्ञ डॉ अमरनाथ पांडे से बात की, जानिए उन्होंने क्या कहा।
इस तरह का होता है वात दोष युक्त शरीर
डॉ अमरनाथ के मुताबिक, वात युक्त शरीर के स्वामी वायु और आकाश होते हैं। बनावट: इन लोगों का वजन तेजी से नहीं बढ़ता और इनका मेटाबॉलिज्म अच्छा होता है। वहीं, इनकी त्वचा रूखी होती है। स्वभाव: ऐसे लोग बहुत ऊर्जावान और फिट होते हैं और इनमें कामेच्छा अधिक होती है और ये बातूनी किस्म के होते हैं। मानसिक स्थिति: ये काफी प्रतिभाशाली होते हैं और अपनी भावनाओं को तुरंत इजहार कर देते। हालांकि, इनका आत्मविश्वास कम होता है।
ऐसा होता है पित्त युक्त शरीर
डॉ अमरनाथ ने बताया कि पित्त युक्त शरीर का स्वामी आग है। बनावट: ऐसे लोग मध्यम कद-काठी के होते हैं और इन्हें गर्मी अधिक लगती है। वहीं, इनकी त्वचा कोमल होती है और इनमें ऊर्जा का स्तर अधिक रहता है। स्वभाव: इन लोगों की कामेच्छा अधिक होती है और इनके बोलने की टोन ऊंची होती है। मानसिक स्थिति: इस तरह के लोग आत्मविश्वास और महत्वाकांक्षा से भरपूर होते हैं। हमेशा आकर्षण का केंद्र बने रहना चाहते हैं।
कफ युक्त शरीर पहचाने का तरीका
डॉ अमरनाथ के अनुसार, कफ युक्त शरीर के स्वामी जल और पृथ्वी होते हैं। बनावट: इनके कंधे और कमर का हिस्सा अधिक चौड़ा होता है और इनका शरीर मजबूत होता है। स्वभाव: इस तरह के लोग भोजन के बहुत शौकीन होते हैं और थोड़े आलसी होते हैं। वहीं, इनमें सहने की क्षमता अधिक होती है और ये समूह में रहना अधिक पसंद करते हैं। मानसिक स्थिति: इन्हें सीखने में समय लगता है और ये भावनात्मक होते हैं।
तीनों दोषों पर कोरोना का क्या प्रभाव पड़ता है?
डॉ अमरनाथ का कहना है कि कोरोना वायरस एक ऐसी महामारी है, जो शरीर के तीनों दोषों को प्रभावित करती है। हालांकि, अगर कोरोना से ग्रस्त व्यक्ति में संक्रमण के हल्के लक्षण है तो समझ जाइए कि इसमें वात और कफ दोष की भागीदारी है। वहीं, अगर कोरोना के रोगी की स्थिति काफी गंभीर हो जाती है तो इसका मतलब संक्रमण में वात और पित्त दोष के साथ रक्तधातु की भागीदारी है।
कौन-से दोष से ग्रस्त व्यक्ति को कोरोना का अधिक खतरा है?
इस बारे में डॉ अमरनाथ का कहना है कि इसके लिए हम कभी भी एक दोष को जिम्मेदार नहीं ठहरा सकते। उनके मुताबिक, हमेशा दो दोष का असंतुलन ही कोरोना के खतरे को बढ़ा सकता है। उदाहरण के लिए पित्त दोष और वात दोष से ग्रस्त व्यक्ति को कोरोना का अधिक खतरा रहता है। इन दोषों के अधिक असंतुलन से ही व्यक्ति की जान पर बात आ सकती है।
क्या कोरोना से ग्रस्त व्यक्ति के लिए आयुर्वेदिक उपचार है?
डॉ अमरनाथ ने कहा कि कोरोना से ग्रस्त व्यक्ति के लिए आयुर्वेदिक उपचार है। उनके अनुसार, आयुर्वेदिक उपचार के लिए कई ऐसी जड़ी-बुटियों और चीजों का इस्तेमाल किया जाता है, जो शरीर के तीनों दोष और सातों धातु (रस, रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा और शुक्र) पर काम करके बीमारी के जोखिम को कम करने में मदद कर सकती हैं। इस वजह से आयुष मंत्रालय ने कोरोना से बचाव के लिए आयुर्वेदिक नुस्खों पर अधिक जोर दिया।
आयुर्वेदिक दवाएं शरीर में गर्मी पैदा करती हैं?
इस बारे में डॉ अमरनाथ ने का कहना है कि आयुर्वेदिक दवाएं शरीर में गर्मी पैदा नहीं करती हैं। हालांकि, ऐसा व्यक्ति के शरीर में मौजूद पित्त दोष की अधिकता के कारण होना संभव है क्योंकि ऐसे व्यक्ति पर अग्नि तत्व का प्रभाव अधिक होता है। डॉ के अनुसार, आयुर्वेदिक दवाएं सिर्फ त्रिदोष यानि वात, पित्त और कफ को संतुलित करने का काम करती हैं, इसलिए यह कहना कि आयुर्वेदिक दवाएं शरीर में गर्मी पैदा करती हैं, उचित नहीं है।
आयुष मंत्रालय की आयुष 64 दवा कोरोना रोगियों के लिए फायदेमंद है?
डॉ अमरनाथ ने बताया कि आयुष मंत्रालय के द्वारा पेश की गई आयुष 64 दवा का सेवन कोरोना मरीजों के लिए काफी फायदेमंद है क्योंकि ऐसी दवा बीमारी के लक्षणों पर नहीं बल्कि इसकी जड़ पर काम करती है। इससे उनका मतलब यह है कि आयुष 64 दवा बनाते समय ऐसी सामग्रियों का इस्तेमाल किया गया है, जो व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के साथ-साथ शरीर के तीनों दोषों को संतुलित करने में मदद करें।
आयुर्वेदिक दवाईयों को असर करने में काफी समय क्यों लगता है?
डॉ अमरनाथ के मुताबिक, आयुर्वेदिक दवाईयों को असर करने में काफी समय इसलिए लगता है क्योंकि वे किसी भी समस्या या बीमारी की जड़ पर काम करती हैं। वहीं, आयुर्वेदिक दवाओं के सेवन से शरीर पर कोई नकारात्मक असर नहीं पड़ता है। इस वजह से कई मामले में आयुर्वेदिक दवाओं के सेवन से पूर्ण रूप से राहत मिलने में समय लगता है। वहीं, कुछ मामलों में आयुर्वेदिक दवाएं एलोपैथी दवाओं की तरह तेजी से काम कर सकती हैं।
दोषों से ग्रस्त व्यक्ति को अपनी डाइट में किन-किन चीजों को शामिल करना चाहिए?
डॉ अमरनाथ ने बताया कि दोषों से ग्रसित लोगों को ऐसे ही कोई भी खाद्य पदार्थ डाइट में शामिल करने की सलाह नहीं दी जाती है। इसके लिए पहले उनके शरीर में मौजूद दोषों की स्थिति के बारे में जानना जरूरी है। उदाहरण के लिए अगर किसी व्यक्ति के शरीर में वात दोष अधिक और कफ दोष कम तो उसी के मुताबिक खाद्य पदार्थों का सेवन करें और उसी के अनुसार खान-पान का परहेज।
क्या शारीरिक दोष को ध्यान में रखकर अपना वर्कआउट रूटीन सेट करना चाहिए?
डॉ अमरनाथ का कहना है कि व्यक्ति को अपने शारीरिक दोष की स्थिति के अनुसार ही अपने वर्कआउट रूटीन को सेट करना चाहिए। हालांकि, अगर व्यक्ति को अपने दोषों के बारे में नहीं पता है तो उसे रोजाना कुछ मिनट सूर्य नमस्कार, अनुलोम-विलोम और कपालभाति प्राणायामों का अभ्यास करना चाहिए। इसके अलावा, वह मेडिटेशन कर सकता है। इसके लिए किसी शांत जगह पर बैठकर अपने मन को शांत रखते हुए अपनी सांस लेने और छोड़ने की प्रक्रिया पर ध्यान दें।
शरीर में मौजूद दोषों का कैसे पता लगाया जा सकता है?
शरीर में मौजूद दोषों का पता लगाने के लिए किसी नाड़ी वैद्य या फिर आयुर्वेदाचार्या से संपर्क करें क्योंकि वे नाड़ी परीक्षा के जरिए आपको आसानी से बता सकते हैं कि आपके शरीर में किन-किन दोषों का प्रभाव अधिक या कम है। बता दें कि नाड़ी परीक्षा का मतलब नसों की जांच। इसके लिए विशेषज्ञ तीन-पांच मिनट के लिए हाथ की नस को पकड़ते हैं और बता देते हैं कि व्यक्ति के शरीर में मौजूद दोषों की स्थिति क्या है।
ये टिप्स शरीर के तीनों दोषों को संतुलित रखते हुए बढ़ा सकते हैं रोग प्रतिरोधक क्षमता
डॉ अमरनाथ ने कहा कि ऐसी कई घरेलू चीजें हैं, जिनका सेवन न सिर्फ शरीर के तीनों दोषों में संतुलन कायम कर सकता है बल्कि रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ा सकते हैं। इसके लिए उन्होने गिलोय के रस का सेवन करने की सलाह दी है। वहीं, उनके मुताबिक खान-पान में तुलसी और हल्दी जैसी चीजों को शामिल करना अच्छा है। इसके साथ ही समय से उठने और सोने का नियम बनाएं और शारीरिक सक्रियता पर ध्यान दें।
आयुर्वेद के प्रति जागरूकता होना बहुत जरूरी- डॉ अमरनाथ
डॉ अमरनाथ ने बताया कि लोगों को कोरोना आने के बाद इस बात का अहसास हुआ है कि आयुर्वेद कोई चिकित्सा पद्धति है, जो इस संक्रमण के जोखिम को कम करने में मदद कर सकती है। अब लोगों ने आयुष मंत्रालय के दिशा-निर्देशों को ध्यान में रखते हुए गर्म पानी पीना, काड़े का सेवन करना, घर का खाना खाना और हल्दी वाला दूध पीना आदि शुरू कर दिया है, जबकि पहले लोग इन चीजों पर ध्यान भी नहीं देते थे।