#NewsBytesExclusive: क्या कोरोना वायरस भी बन सकता है अर्थराइटिस का कारण? जानें विशेषज्ञ की राय

जहां पहले अर्थराइटिस की समस्या अमूमन बुजुर्गों में देखने को मिलती थी, वहीं अब युवा भी इसका शिकार हो रहे हैं। इसका सबसे ज्यादा असर घुटनों और कूल्हों पर दिखाई देता है और इसमें मरीज का चलना-फिरना, उठना-बैठना तक मुश्किल हो जाता है। महामारी के दौरान बड़ा सवाल है कि क्या कोरोना वायरस भी अर्थराइटिस की समस्या का कारण बन सकता है? इसके बारे में हमने आर्थोपेडिक सर्जन अश्विनी कुमार से बात की, आइए जानते हैं उन्होंने क्या कुछ कहा।
डॉ कुमार का कहना है कि कोरोना के कारण अर्थराइटिस की समस्या दो तरह से हो सकती है। पहला, लोगों ने पहले के मुकाबले वॉकिंग और एक्सरसाइज आदि करना कम कर दिया है जिसके कारण मांसपेशियां कमजोर होकर शरीर के जोड़ों को प्रभावित करने लगती हैं और इससे अर्थराइटिस हो सकता है। दूसरा, अगर कोरोना के इलाज के लिए स्टेरॉयड्स (दवाई) का अधिक इस्तेमाल किया जाता है तो इससे हड्डियों को काफी नुकसान पहुंता है जिससे अर्थराइटिस हो सकता है।
जब हड्डियों के जोड़ों में यूरिक एसिड जमा होने लगता है या फिर शरीर में कैल्शियम की कमी होने पर उनमें सूजन आ जाती है और जोड़ों में मौजूद टिश्यू भी टूटकर नष्ट होने लगते हैं तो इस अवस्था को ही अर्थराइटिस कहा जाता है।
डॉ कुमार के मुताबिक, वैसे तो कई तरह के अर्थराइटिस होते हैं, लेकिन इनमें से सबसे अहम इंफ्लेमेटरी अर्थराइटिस और ऑस्टियोअर्थराइटिस है। इंफ्लेमेटरी अर्थराइटिस के दौरान पूरे शरीर में सूजन आने लगती है और यह किसी भी जोड़ को प्रभावित कर सकता है। इसका सबसे ज्यादा हाथों की उंगलियां और पैरों की उंगलियां आदि छोटे-छोटे जोड़ों पर प्रभाव पड़ता है। वहीं ऑस्टियोअर्थराइटिस का प्रभाव पहले घुटनों और फिर कूल्हों से लेकर रीढ़ की हड्डी तक पर पड़ता है।
इंफ्लेमेटरी अर्थराइटिस के लक्षण: हाथों और पैरों की उंगलियों में दर्द होना (कुछ लोगों में सुबह के समय यह दर्द ज्यादा होता है), सूजन आना, जल्दी थकान हो जाना, सांस लेने में तकलीफ होना और रोग प्रतिरोधक क्षमता का कमजोर होना और त्वचा पर रैशेज होना आदि। ऑस्टियोअर्थराइटिस के लक्षण: घुटनों में दर्द के चलना-फिरना मुश्किल होना, शरीर के मुख्य जोड़ों में भारीपन महसूस होना और जोड़ों के आस-पास गांठें बनना।
डॉ कुमार के अनुसार, अगर किसी व्यक्ति को कोरोना के बाद खुद में अर्थराइटिस के लक्षण दिखें तो वह डॉक्टर से संपर्क करे ताकि वह कुछ मेडिकल जांच करके बता सकें कि उसे यह बीमारी है या नहीं। इसके लिए डॉक्टर उसे एक्स-रे और MRI स्कैन कराने को कह सकता है। अगर डॉक्टर को व्यक्ति में इंफ्लेमेटरी अर्थराइटिस होने की संभावना दिखाई देती है तो वह उसे ESR टेस्ट, CRP टेस्ट और एंटी-CCP टेस्ट कराने की सलाह दे सकते हैं।
डॉ कुमार ने बताया कि सिर्फ इंफ्लेमेटरी अर्थराइटिस से ग्रस्त लोगों को ही कोरोना संक्रमण का अधिक खतरा होता है क्योंकि इसमें खून में सूजन आ जाती है जिसके कारण शरीर खुद को ही नुकसान पहुंचाने लगता है। इसके कारण रोग प्रतिरोधक क्षमता भी कमजोर होने लगती है और कोरोना कमजोर रोग प्रतिरोधक क्षमता वालों को पहले अपनी चपेट में लेता है। बात अगर ऑस्टियोअर्थराइटिस की करें तो इससे ग्रस्त लोगों को कोरोना का अधिक खतरा नहीं है।
इस बारे में डॉ कुमार का कहना है कि अभी तक कोरोना वैक्सीन के साइड इफेक्ट्स को लेकर जितनी भी रिसर्च हुई हैं, उनमें ऐसा कुछ भी सामने नहीं आया है। इसलिए यह कहना गलत होगा कि कोरोना वैक्सीन से अर्थराइटिस हो सकता है। हालांकि कुछ लोगों को कोरोना वैक्सीन लगवाने के बाद एक-दो दिन के लिए जोड़ों में दर्द हो जाता है, लेकिन यह वैक्सीन के कारण होने वाला सामान्य साइड इफेक्ट है।
डॉ कुमार का इस बारे में यह कहना है कि कोरोना अभी तक हमारे लिए एक रहस्य बना हुआ है और हमें अभी तक यह नहीं पता है कि कोरोना का इलाज किस दवा से किया जा सकता है। इसलिए अभी तक कोरोना के इलाज के लिए कई तरह के प्रयोग चल रहे है। इस वजह से कोरोना के इलाज के लिए अन्य मेडिकल फील्ड की दवाओें का इस्तेमाल किया जा रहा है जिसमें हड्डियों की दवाएं भी शामिल हैं।
डॉ कुमार ने बताया कि अर्थराइटिस का इलाज दो तरह (दवा और सर्जरी) से किया जा सकता है। दवा: दर्द और सूजन को कम करने, जोड़ों की प्रक्रिया में सुधार करने और जोड़ों के खराब होने के जोखिम को दूर करने के लिए डॉक्टर कुछ खास दवाएं देते हैं। सर्जरी: अगर समस्या गंभीर हो जाती है तो डॉक्टर सर्जरी कराने की भी सलाह दे सकते हैं जिसमें जॉइंट रिप्लेसमेंट आदि प्रक्रिया को अपनाया जा सकता है।
डॉ कुमार का कहना है कि अगर कोरोना के बाद किसी व्यक्ति को ऑस्टियोअर्थराइटिस होता है या फिर किसी को पहले से ऑस्टियोअर्थराइटिस है तो उसे अपनी डाइट में कैल्शियम और उच्च प्रोटीन युक्त खाद्य पदार्थों को शामिल करना चाहिए। कैल्शियम के लिए लोग अपनी डाइट में दूध और दुग्ध उत्पादों, हरी पत्तेदार सब्जियां, साबुत अनाज, खट्टे फल और अंजीर आदि चीजों को शामिल कर सकते हैं। वहीं प्रोटीन के लिए सोयाबीन, टोफू, दालें और ओट्स आदि खाएं।
डॉ कुमार ने बताया कि इंफ्लेमेटरी अर्थराइटिस से ग्रसित लोगों को ऐसे ही कोई भी खाद्य पदार्थ डाइट में शामिल करने की सलाह नहीं दी जाती है। इसके लिए पहले उनकी अर्थराइटिस की स्थिति के बारे में जानना जरूरी है।
डॉ कुमार के मुताबिक, अर्थराइटिस के जोखिम को कम करने में योगासन और एक्सरसाइज काफी मदद कर सकते हैं। योगासनों की बात करें तो अर्थराइटिस रोगियों के लिए सूर्य नमस्कार, उत्कटासन, गोमुखासन, मकरासन, वीरासन और वृक्षासन का रोजाना अभ्यास करना लाभदायक है। वहीं एक्सरसाइज में आप वेट ट्रेनिंग, साइड लैटरल डंबल रेज, टॉवल स्ट्रेच, सूमो स्वॉट जैक और स्टेंडिंग बारबेल कर्ल आदि को अपने वर्कआउट रूटीन में शामिल कर सकते हैं।
डॉ कुमार ने कहा कि अगर आप अर्थराइटिस से बचकर रहना चाहते हैं तो अपने शरीर खासकर हड्डियों के प्रति सचेत रहें। बेहतर होगा कि आप अपनी डाइट में पोषक तत्वों से भरपूर खाद्य पदार्थों को शामिल करें और जंक फूड, अल्कोहल और धूम्रपान आदि से दूरी बना लें क्योंकि इनसे समस्या बढ़ती है। ऐसी मुद्रा में बैठने या चलने से बचें जिससे प्रभावित जोड़ पर तनाव आए। नियमित आठ से दस घंटे की नींद लें।