दुनिया-जहां: रूस और यूक्रेन के बीच विवाद का केंद्र बना NATO क्या है?

पूरी दुनिया की निगाहें इन दिनों रूस और यूक्रेन की सीमा पर टिकी हुई हैं। रूस ने यूक्रेन से लगती सीमा पर डेढ़ लाख से अधिक सैनिक तैनात किए हैं और अमेरिका ने आशंका जताई है कि वह किसी भी समय हमला कर सकता है। यूक्रेन और रूस के बीच पिछले कुछ महीनों से बढ़ रहे तनाव की कई वजहों में से एक बड़ी वजह नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गेनाइजेशन (NATO) है। दुनिया-जहां में आज इसी के बारे में समझते हैं।
यूक्रेन को लेकर तनाव के कई छोटे-छोटे कारण हैं, लेकिन इसकी मुख्य वजह यूक्रेन की पश्चिमी यूरोप और NATO से बढ़ती नजदीकियां हैं। दरअसल, यूक्रेन पश्चिमी यूरोप के करीब जा रहा है और NATO में शामिल होना चाहता है, जो शीत युद्ध के समय रूस के खिलाफ बना एक सैन्य गठबंधन है। रूस की चिंता है कि अगर यूक्रेन NATO में शामिल होता है तो NATO के सैन्य ठिकाने बिल्कुल उसकी सीमा के पास आ जाएंगे।
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने अमेरिका और पश्चिमी देशों से 'कानूनी गारंटी' मांगी है कि यूक्रेन को NATO में शामिल नहीं कराया जाएगा। साथ ही उन्होंने पूर्वी यूरोप में NATO की सैन्य गतिविधियों पर रोक लगाने की मांग भी की है। दूसरी तरफ यूक्रेन जल्द NATO में शामिल होना चाहता है। यूक्रेनियन राष्ट्रपति वोलोडिमीर जेलेंस्की ने शनिवार को म्यूनिख सुरक्षा सम्मेलन में मांग की कि यूक्रेन को NATO में शामिल करने की स्पष्ट समयसीमा तय की जाए।
नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी के जरिये 4 अप्रैल, 1949 को एक सैन्य गठबंधन NATO की शुरुआत हुई थी। दूसरे विश्वयुद्ध के बाद सोवियत संघ के विस्तार को रोकने के लिए इसका गठन किया गया था। बेल्जियम, कनाडा, डेनमार्क, फ्रांस, आइसलैंड, इटली, लग्जमबर्ग, द नीदरलैंड्स, नॉर्वे, पुर्तगाल, इंग्लैंड और अमेरिका को इसके संस्थापक सदस्यों में गिना जाता है। आगे चलकर ग्रीस, तुर्की, बुल्गारिया, जर्मनी, स्पेन, चेक रिपब्लिक, हंगरी, पोलैंड आदि देश भी इसमें शामिल हो गए।
इस ट्रीटी (संधि) का मुख्य प्रावधान इसके अनुच्छेद 5 में लिखा गया है। इसमें कहा गया है कि किसी भी एक या एक से ज्यादा सदस्य देशों के खिलाफ कोई सैन्य आक्रमण होता है तो यह संधि पर हस्ताक्षर करने वाले सभी देशों के खिलाफ आक्रमण माना जाएगा। इसके खिलाफ सभी सदस्य देश मिलकर आत्मरक्षा के अधिकार का प्रयोग करते हुए नॉर्थ अटलांटिक इलाके में शांति बहाली के लिए सेना के इस्तेमाल समेत सभी जरूरी कदम उठाएंगे।
NATO ने पहली बार 11 सितंबर को अमेरिका में आतंकी हमले के बाद अनुच्छेद 5 का इस्तेमाल किया था। वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हुए इस हमले में करीब 3,000 लोगों की मौत हुई थी।
अनुच्छेद 6 में संधि की भौगोलिक सीमा को 'यूरोप और उत्तरी अमेरिका में किसी भी क्षेत्र पर सैन्य हमले' को कवर करने के रूप में परिभाषित किया गया है। इसके बाकी अनुच्छेदों में सदस्य देशों के लोकतांत्रिक संस्थानों को मजबूत करने, साझी सैन्य क्षमता का विकास, एक-दूसरे से सलाह लेना और दूसरे यूरोपीय देशों को आमंत्रित करने जैसे प्रावधान जोड़े गए हैं। इसका मुख्यालय बेल्जियम में है और फिलहाल इसके सदस्यों की संख्या 30 है।
इसकी स्थापना के शुरुआती दो दशकों में NATO सेनाओं के लिए बेस, एयरफील्ड, पाइपलाइन, नेटवर्क और डिपो जैसे ढांचे बनाने के लिए तीन बिलियन डॉलर खर्च किए गए थे। सभी सदस्य देशों ने इसमें योगदान दिया था, लेकिन करीब एक तिहाई फंडिंग अकेले अमेरिका से मिली थी। NATO की फंडिंग का इस्तेमाल आमतौर पर सैन्य उपकरणों के लिए नहीं होता है। सदस्य देश ही NATO सेना को जरूरी हथियार और उपकरण मुहैया कराते हैं।
NATO में राजनैतिक और सैन्य गतिविधियों के लिए अलग-अलग संगठन बने हुए हैं। नॉर्थ अटलांटिक काउंसिल और न्यूक्लियर स्ट्रैटजी ग्रुप राजनैतिक मामले देखता है, जबकि सैन्य कामों के लिए मिलिट्री कमेटी बनी हुई है, जिसमें सदस्य देशों के सैन्य अधिकारी शामिल होते हैं।
NATO गैर-सदस्य देशों में सैनिकों की तैनाती को लेकर प्रतिबद्ध नहीं है। ऐसे में सवाल उठता है कि यूक्रेन के सदस्य न होने पर भी वह यूक्रेन की मदद क्यों करेगा? दरअसल, यूक्रेन NATO का साझेदार है और 1997 में दोनों ने मिलकर एक आयोग का गठन किया था, जिससे दोनों के बीच संबंध मजबूत हुए थे। इसके अलावा यूक्रेन ने 2008 में सदस्यता के लिए आवेदन भी किया था। हालांकि, बाद में यह प्रक्रिया रोक दी गई थी।
रूस की तरफ से हमले के गहरे होते बादलों के बीच NATO ने अपनी सेनाओं की तैयारियों को बढ़ा दिया है। NATO स्थिति पर नजर बनाए हुए हैं और सभी जरूरी कदम उठा रहा है। सदस्य देशों ने अपने सैनिकों को स्टैंडबाय पर रखा है और कई बटालियन, विमानों और समुद्री जहाजों को इलाके में तैनात करना शुरू कर दिया है। अमेरिका ने पोलैंड में 3,000 अतिरिक्त सैनिकों की तैनाती का आदेश दिया है।