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    दुनिया-जहां: दिवालिया होने की कगार पर कैसे पहुंचा श्रीलंका और अभी क्या स्थिति?
    दुनिया-जहां: दिवालिया होने की कगार पर कैसे पहुंचा श्रीलंका और अभी क्या स्थिति?

    दुनिया-जहां: दिवालिया होने की कगार पर कैसे पहुंचा श्रीलंका और अभी क्या स्थिति?

    लेखन मुकुल तोमर
    Jan 16, 2022
    06:22 pm

    क्या है खबर?

    भारत का पड़ोसी देश श्रीलंका आर्थिक संकट का सामना कर रहा है और यहां महंगाई दर आसमान छू रही है। एक महीने में यहां खाने की चीजें 15 प्रतिशत तक महंगी हो चुकी हैं और आलू 200 रुपये किलो बिक रहा है।

    कर्ज में डूबा श्रीलंका दिवालिया होने की तरफ बढ़ रहा है और कई रिपोर्ट्स में कहा गया है कि वह इस साल इसका ऐलान कर सकता है।

    आइये जानते हैं कि श्रीलंका में ये स्थिति कैसे पैदा हुई।

    जानकारी

    सबसे पहले जानें क्या होता है दिवालिया होना?

    जब किसी देश पर इतना कर्ज हो जाता है कि वो उसको चुका नहीं पाता तो वह दिवालिया हो जाता है। मौजूदा समय में विदेशी मुद्रा भंडार और विदेशी कर्ज के अनुपात के हिसाब से देखा जाता है कि कौन देश दिवालिया होने वाला है।

    कर्ज

    श्रीलंका की क्या स्थिति?

    अंतरराष्ट्रीय समाचार एजेंसी AFP के अनुसार, श्रीलंका पर 26 अरब डॉलर का कर्ज है जो उसने मुख्य तौर पर भारत, चीन और जापान से लिया है। चीन का उस पर पांच अरब डॉलर का कर्ज है और पिछले साल उसने चीन से एक अरब डॉलर का अतिरिक्त कर्ज भी लिया था।

    श्रीलंका को ये कर्ज किश्तों में चुकाना है और देश के वित्त मंत्री बासिल राजपक्षे के मुताबिक, 2022 में देश को लगभग 7 अरब डॉलर का कर्ज चुकाना है।

    विदेशी मुद्रा भंडार

    विदेशी मुद्रा भंडार की क्या स्थिति?

    श्रीलंका के पास नवंबर, 2021 में 1.6 अरब डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार था जो मात्र तीन हफ्ते के आयात बिल को भरने के लिए पर्याप्त था।

    पिछले दो सालों में इसमें काफी गिरावट दर्ज की गई है। 2019 के अंत में श्रीलंका का विदेशी मुद्रा भंडार 7.6 अरब डॉलर था जिससे पांच महीने का आयात बिल चुकाया जा सकता था।

    2020 में यह गिरकर 5.7 अरब डॉलर पर आ गया और अब 1.6 अरब डॉलर है।

    डाटा

    18 जनवरी तक चुकाना है 50 करोड़ डॉलर का कर्ज, नहीं तो हो जाएगा दिवालिया

    श्रीलंका को 50 करोड़ डॉलर के इंटरनेशनल बॉन्ड को तो 18 जनवरी तक ही चुकाना है और अगर वो ऐसा नहीं कर पाता तो वो दिवालिया हो जाएगा। देश की सरकार ने समय से ये कर्ज चुकाने की बात कही है।

    कारण

    श्रीलंका इस स्थिति में कैसे पहुंचा?

    श्रीलंका के आर्थिक संकट की शुरूआत कोविड महामारी के आगमन के साथ हुई। इस महामारी से पर्यटन पर बहुत बुरा असर पड़ा जिसकी देश की GDP में 10 प्रतिशत से अधिक की भागेदारी है।

    पर्यटन पर इस नकारात्मक प्रभाव के कारण देश में दो लाख से अधिक लोग अपनी नौकरी गंवा चुके हैं।

    पर्यटन से मिलने वाले विदेशी मुद्रा भी 2019 में 7.5 अरब डॉलर से गिरकर जुलाई, 2021 में 2.8 अरब डॉलर पर आ गई है।

    अन्य कारण

    संकट के और क्या कारण?

    कोविड महामारी और पर्यटक में नुकसान श्रीलंका की इस स्थिति के लिए अकेले जिम्मेदार नहीं हैं और अन्य कई चीजों का भी इस आर्थिक संकट में अहम भूमिका है।

    इनमें राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे की सरकार द्वारा अधिक खर्च, टैक्स में कटौती के कारण सरकार की आमदनी में गिरावट और चीन के कर्ज की अदायगी आदि शामिल हैं।

    इसके अलावा खेती को पूरी तरह जैविक करने के फैसले से भी खाद्य पदार्थों और अर्थव्यवस्था पर असर पड़ा।

    आम जनता

    महंगाई और गरीबी की क्या स्थिति?

    आर्थिक संकट के कारण श्रीलंका में महंगाई रिकॉर्ड स्तर पर है और हर महीने चीजों की कीमत में 10-11 प्रतिशत वृद्धि हो रही है।

    दुकानदार एक लीटर दूध की पैकेट को 100-100 ग्राम करके बेच रहे हैं क्योंकि कोई ग्राहक एक लीटर दूध खरीदने की स्थिति में नहीं है। 100 ग्राम हरी मिर्च 71 रुपये में मिल रही है।

    स्थिति यह है कि महामारी की शुरूआत से अब तक पांच लाख लोग गरीबी रेखा से नीचे जा चुके हैं।

    कोशिश

    श्रीलंकाई सरकार क्या कर रही है?

    इस आर्थिक संकट से बाहर निकलने के लिए श्रीलंका की सरकार विदेशी मदद का रास्ता अख्तियार कर रही है। उसने अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) से लोन मांगा है।

    इसके अलावा उसने भारत से भी आर्थिक मदद मांगी है और हाल ही में भारत ने उसे 90 करोड़ डॉलर की मदद दी भी है। भारत उसे कुल 1.5 अरब डॉलर तक की मदद दे सकता है।

    चीन और बांग्लादेश से मदद हासिल करने की कोशिश भी की जा रही है।

    जानकारी

    आम नागरिकों की मदद के लिए क्या किया जा रहा है?

    आम लोगों को राहत देने के लिए सरकार ने 1.2 अरब डॉलर के राहत पैकेज का ऐलान किया है। नुकसान झेलने वाले किसानों को सब्सिडी दी जाएगी। इसके अलावा खाद्य पदार्थों की तय कीमत पर बिक्री सुनिश्चित करने के लिए सेना को लगाया गया है।

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