कोरोना: अमेरिका और यूरोप में किशोरों पर इस्तेमाल होगी फाइजर की वैक्सीन, जल्द मिलेगी मंजूरी
अमेरिका और यूरोप 12-15 साल के किशोरों पर इस्तेमाल के लिए फाइजर की कोरोना वैक्सीन को मंजूरी देने पर विचार कर रहे हैं। अगले हफ्ते तक इस संबंध में अंतिम फैसला लिया जा सकता है। अगर इस वैक्सीन को मंजूरी मिलती है तो दोनों जगहें वैक्सीनेशन अभियान के दायरे में और लोग जुड़ सकेंगे। अभी तक अमेरिका और यूरोप में इस वैक्सीन को 16 साल से अधिक उम्र के लोगों पर आपातकालीन मंजूरी के तहत इस्तेमाल किया जा रहा है।
किशोरों पर कितनी प्रभावी रही है यह वैक्सीन?
फाइजर का कहना है कि 12-15 साल के किशोरों पर उसकी वैक्सीन 100 प्रतिशत प्रभावी पाई गई थी, जिसका मतलब है कि वैक्सीन लेने वाले किसी भी किशोर को कोरोना संक्रमण नहीं हुआ था। 31 मार्च को फाइजर ने बताया था कि तीसरे चरण के ट्रायल में 12-15 साल के 2,260 किशोरों को वैक्सीन लगाई गई थी। उनमें इस वैक्सीन की 100 प्रतिशत प्रभावकारिता देखी गई और उनके शरीर में वायरस के खिलाफ मजबूत एंटीबॉडीज पाई गईं।
बच्चों में देखे गए बड़ो जैसे ही साइड इफेक्ट्स
फाइजर के अनुसार, ट्रायल के दौरान बच्चों में बड़ो जैसे ही साइफ इफेक्ट्स देखने को मिले। दर्द, बुखार, ठंड और थकान मुख्य लक्षण रहे। कंपनी ट्रायल में शामिल रहे बच्चों पर अगले दो साल तक नजर रखेगी ताकि दीर्घकालिक सुरक्षा और प्रभावकारिकता के बारे में पता लगाया जा सके। फाइजर के CEO एल्बर्ट बोरली ने एक बयान में कहा था कि उन्हें अगले स्कूली साल की शुरूआत से पहले किशोरों का वैक्सीनेेशन शुरू होने की उम्मीद है।
"बच्चों को मिली है पर्याप्त सुरक्षा"
फाइजर के साथ मिलकर इस वैक्सीन को विकसित करने वाली कंपनी बायोएनटेक के प्रमुख ने एक बयान में कहा था कि शुरुआती नतीजों से पता चला है कि बच्चों को इस वैक्सीन से पर्याप्त सुरक्षा मिलती है। यह बहुत जरूरी है कि बच्चे वापस से स्कूल लौट पाएं और संक्रमण के खतरे के बिना अपने दोस्तों और परिवारों से मिल सके। गौरतलब है कि कोरोना के नए वेरिएंट के कारण बच्चों और किशोरों में भी संक्रमण फैल रहा है।
व्यस्कों पर 95 फीसदी प्रभावी पाई गई वैक्सीन
बता दें कि पिछले साल 16 साल से अधिक उम्र के लोगों पर हुए ट्रायल में फाइजर की इस वैक्सीन को 95 प्रतिशत प्रभावी पाया गया था। वैक्सीन सुरक्षा मानकों पर भी खरी उतरी थी। विश्लेषण में यह हर उम्र के लोगों के लिए कारगर पाई गई थी। किसी भी वॉलेंटियर में कोई गंभीर साइट इफेक्ट भी नहीं देखने को मिला था। इजरायल में असल दुनिया की परिस्थितियों में भी इसे 94 प्रतिशत प्रभावी पाया गया था।
mRNA तकनीक के जरिए बनाई गई है फाइजर की वैक्सीन
फाइजर की यह कोरोना वैक्सीन एक नई तकनीक पर आधारित है और इसे mRNA तकनीक के जरिए बनाया गया है। इस तकनीक में वायरस के जिनोम का प्रयोग कर कृत्रिम RNA बनाया जाता है जो सेल्स में जाकर उन्हें कोरोना वायरस की स्पाइक प्रोटीन बनाने का निर्देश देता है। इन स्पाइक प्रोटीन की पहचान कर सेल्स कोरोना की एंटीबॉडीज बनाने लग जाती हैं। मॉडर्न की वैक्सीन भी इसी तकनीक पर काम करती है।