असल दुनिया की परिस्थितियों में 94 प्रतिशत प्रभावी पाई गई फाइजर की कोरोना वैक्सीन
क्या है खबर?
फाइजर और बायोएनटेक की कोरोना वायरस वैक्सीन को असली दुनिया और परिस्थितियों में 94 प्रतिशत प्रभावी पाया गया है जो ट्रायल के दौरान सामने आए 95 प्रशितशत के आंकड़े के लगभग बराबर है।
इजरायल में 12 लाख लोगों पर हुई एक स्टडी में वैक्सीन को इतना प्रभावी पाया गया है। इसे कोरोना वैक्सीनों के असल दुनिया में काम करने और महामारी को काबू में करने में वैक्सीनेशन अभियान की अहम भूमिका का पहला सबूत माना जा रहा है।
स्टडी
इस तरह से की गई स्टडी
बुधवार को 'न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन' में प्रकाशित हुई इस स्टडी में शामिल छह लाख लोग ऐसे थे जिन्हें वैक्सीनेशन अभियान के तहत वैक्सीन दी गई थी, वहीं छह लाख ऐसे थे जिन्हें वैक्सीन नहीं दी गई थी।
इन दोनों समूहों के लोगों की उम्र, लिंग, भौगोलिक, मेडिकल और अन्य चीजों को मिलाते हुए उनकी तुलना की गई। इस तुलना में वैक्सीन को दूसरी खुराक के सात दिन बाद लक्षणात्मक कोरोना के खिलाफ 94 प्रतिशत प्रभावी पाया गया।
स्टडी
ट्रांसमिशन चैन को तोड़ने में भी सक्षम है वैक्सीन
स्टडी में यह भी सामने आया है कि वैक्सीन संभवतः संक्रमण के खिलाफ एक मजबूत सुरक्षात्मक लाभ भी प्रदान करती है जो कोरोना वायरस के प्रसार को रोक कर ट्रांसमिशन चैन को तोड़ने का करता है।
हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के शोधकर्ता और इस स्टडी के लेखकों में शामिल डॉ बेन रेइस ने समाचार एजेंसी AFP से कहा, "यह असल दुनिया की परिस्थितियों में वैक्सीन के प्रभावी होने का पहला पीयर रिव्यूड बड़ा सबूत है।"
ट्रायल
अंतिम चरण के ट्रायल में 95 प्रतिशत प्रभावी पाई गई थी वैक्सीन
बता दें कि पिछले साल नवंबर में आए इंसानी ट्रायल के अंतिम चरण के नतीजों में फाइजर और उसकी सहयोगी जर्मन कंपनी बायोनटेक की इस वैक्सीन को 95 प्रतिशत प्रभावी पाया गया था।
इसके साथ ही कंपनी ने यह भी दावा किया है कि वैक्सीन सुरक्षा मानकों पर खरी उतरी है। विश्लेषण में यह हर उम्र के लोगों के लिए कारगर पाई गई थी। किसी भी वॉलेंटियर में कोई गंभीर साइट इफेक्ट भी नहीं देखने को मिला था।
तकनीक
नई mRNA तकनीक के जरिए बनाई गई है फाइजर की वैक्सीन
फाइजर की यह कोरोना वैक्सीन एक नई तकनीक पर आधारित है और इसे mRNA तकनीक के जरिए बनाया गया है।
इस तकनीक में वायरस के जिनोम का प्रयोग कर कृत्रिम RNA बनाया जाता है जो सेल्स में जाकर उन्हें कोरोना वायरस की स्पाइक प्रोटीन बनाने का निर्देश देता है।
इन स्पाइक प्रोटीन की पहचान कर सेल्स कोरोना की एंटीबॉडीज बनाने लग जाती हैं। मॉडर्न की वैक्सीन भी इसी तकनीक पर काम करती है।
जानकारी
यह है फाइजर वैक्सीन की सबसे बड़ी खामी
हालांकि इस वैक्सीन को माइनस 70 डिग्री तापमान पर स्टोर करने और इसके लिए अलग से कोल्ड चैन की जरूरत है और इसी कारण दुनिया के ज्यादातर देशों में इसका प्रयोग लगभग असंभव है। अभी मुख्यतौर पर पश्चिमी देशों में इसका उपयोग हो रहा है।