#NewsBytesExplainer: स्वीडन में बकरीद पर मस्जिद के सामने कुरान जलाने से संबंधित पूरा विवाद क्या है?
स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम की सेंट्रल मस्जिद के बाहर ईद-उल-अजहा (बकरीद) के मौके पर कोर्ट से अनुमति लेने के बाद कुरान जलाए जाने का मामला सामने आया है। इस घटना को लेकर कई मुस्लिम देशों के साथ-साथ अमेरिका और रूस ने भी आक्रोश जताया है। इनका कहना है कि यह मुस्लिम समुदाय के लोगों की धार्मिक भावनाएं भड़काने वाला कृत्य है। आइए जानते हैं कि स्वीडन में ऐसा किसने किया और इस पर पूरा विवाद क्या है।
किसने मांगी थी अनुमति?
स्वीडन कोर्ट से 37 वर्षीय सलवान मोमिका ने मस्जिद के बाहर प्रदर्शन करने और कुरान जलाने की अनुमति मांगी थी, जिसे स्वीकार कर लिया गया। कोर्ट के आदेश के बाद बकरीद के मौके पर स्वीडन की पुलिस ने भी मोमिका को कुरान को जलाकर प्रदर्शन करने की अनुमति दे दी। मोमिका को सिर्फ एक दिन प्रदर्शन की अनुमति मिली। उन्होंने पुलिस के कुरान जलाने की अनुमति न देने पर कोर्ट का रुख किया था।
क्यों मिली प्रदर्शन की अनुमति?
कोर्ट ने यह कहकर मोमिका को प्रदर्शन को मंजूरी दी थी कि हर किसी को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार है और पुलिस द्वारा सावर्जनिक प्रदर्शनों की अनुमति दी जानी चाहिए। कोर्ट ने कहा, "देश के संविधान के तहत प्रदर्शनकारियों के पास तब तक एकजुट होने और प्रदर्शन करने का अधिकार है, जब तक कि देश की सुरक्षा के लिए खतरा न हो।" फरवरी में मोमिका को इराकी दूतावास के बाहर कुरान जलाकर प्रदर्शन करने से रोका गया था।
प्रदर्शन के दौरान क्या हुआ?
रॉयटर्स के अनुसार, स्वीडन की सबसे बड़ी मस्जिद के बाहर मोमिका और एक अन्य प्रदर्शनकारी ने पहले कुरान के पन्ने फाड़े और फिर इसे आग के हवाले कर दिया। इसके बाद मोमिका ने स्वीडन का झंडा भी लहराया था।
प्रदर्शनकारी मोमिका ने क्या कहा?
मोमिका ने कहा, "मैं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की अहमियत पर ध्यान दिलवाना चाहता था। यह लोकतंत्र है और अगर वो यह कहेंगे कि मैं ऐसा नहीं कर सकता तो लोकतंत्र खतरे में है।" उन्होंने आगे कहा, "यह प्रदर्शन मुस्लिमों के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन उनके विचारों और मान्यताओं के खिलाफ हैं। दुनिया में मुस्लिम धर्म का बहुत नकारात्मक असर पड़ा है और कुरान पर पूरी दुनिया में प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए।"
पहले भी स्वीडन में जलाई गई थी कुरान
2023 की शुरुआत में भी स्वीडन में तुर्की के दूतावास के बाहर कुछ लोगों ने प्रदर्शन किया था और कुरान जला दी थी। तब तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप अर्दोआन ने इस पर कड़ी आपत्ति जताई थी। उन्होंने स्वीडन से कहा था, "अगर आप तुर्की के मुसलमानों के धार्मिक भावनाओं का सम्मान नहीं करेंगे तो हमारी तरफ से आपको उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (NATO) में समर्थन नहीं मिलेगा।" NATO में शामिल होने के लिए स्वीडन को तुर्की का समर्थन चाहिए।
मौजूदा घटना पर स्वीडन के प्रधानमंत्री ने क्या कहा?
स्वीडन के प्रधानमंत्री उल्फ क्रिस्टर्शन ने कहा, "यह प्रदर्शन कानून के दायरे में आता है, लेकिन जो हुआ वह अनुचित था। इस घटना के बाद NATO की सदस्यता हासिल करने की कोशिश पर क्या असर पड़ेगा, मैं इस बात पर टिप्पणी नहीं करना चाहता।"
घटना पर मुस्लिम देशों ने क्या कहा?
सऊदी अरब ने घटना की निंदा करते हुए कहा, "इन घृणित और बार-बार किए जा रहे कृत्यों को किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं किया जा सकता है। ऐसे कृत्य नफरत और नस्लवाद को उकसाते हैं। ये सहिष्णुता, संयम और चरमपंथ खत्म करने के मूल्यों को आगे बढ़ाने के अंतरराष्ट्रीय प्रयासों के विरुद्ध हैं।" सऊदी अरब के अलावा संयुक्त अरब अमीरात (UAE) ,पाकिस्तान, इराक, ईरान, मिस्र, सीरिया, यमन और कुवैत जैसे देशों ने इस घटना की निंदा की है।
तुर्की ने घटना पर क्या कहा?
तुर्की के विदेश मंत्री हकन फिदान ने स्वीडन में कुरान जलाने की घटना को जघन्य कृत्य करार दिया है। उन्होंने ट्विटर पर लिखा, 'ईद-उल-अजहा के मौके पर स्वीडन में इस्लाम की पवित्र किताब कुरान जलाने की मैं कड़ी निंदा करता हूं।अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर इस तरह के इस्लाम विरोधी कृत्यों की अनुमति देना अस्वीकार्य है। इस तरह के जघन्य कृत्यों को अनदेखा करना भी अपराध में सहभागी होने के समान है।'
अमेरिका और रूस ने क्या कहा है?
अमेरिका और रूस ने भी स्वीडन में कुरान जलाने की घटना पर बयान जारी किया है। अमेरिकी विदेश मंत्रालय के उप प्रवक्ता वेदांत पटेल ने कहा कि धार्मिक ग्रंथों को जलाना दुखद है और इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता। रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने घटना की निंदा करते हुए कहा कि पवित्र कुरान के अपमान को कुछ देशों में अपराध के रूप में नहीं देखा जाता है, लेकिन रूस में इसके लिए दंड का प्रावधान है।
इस्लामिक देशों के संगठन OIC ने भी दी तीखी प्रतिक्रिया
इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) ने इस घटना को लेकर कहा कि यह घृणित कृत्य पवित्र कुरान और अन्य इस्लामी मूल्यों और प्रतीकों की पवित्रता का उल्लंघन करने का प्रयास है। OIC महासचिव हिसेन ब्राहिम ताहा ने कहा, "हम इस बात पर जोर देते हैं कि सभी देश संयुक्त राष्ट्र के चार्टर के तहत सभी लोगों के लिए मानवाधिकार और मौलिक स्वतंत्रता सुनिश्चित करें। सभी देश रंग, लिंग, भाषा, धर्म, नस्ल और राजनीतिक भेदभाव के बिना सभी को मानवाधिकार प्रदान करें।"
न्यूजबाइट्स प्लस
OIC 57 देशों का एक वैश्विक संगठन है और इसके सारे सदस्य मुस्लिम बहुल देश हैं। संगठन की स्थापना 1969 में हुई थी और यह खुद को 'मुस्लिम समाज की सामूहिक आवाज' के तौर पर परिभाषित करता है। संगठन के माध्यम से इस्लामी देश मुस्लिम समुदाय से जुड़े राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक मुद्दों पर विचार-विमर्श करते हैं। संयुक्त राष्ट्र (UN) के बाद यह दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा अंतर-सरकारी संगठन है। पाकिस्तान भी इसमें शामिल है।