#NewsBytesExplainer: अमेरिकी विश्वविद्यालयों में आरक्षण खत्म करने का मामला क्या है?
क्या है खबर?
अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक और विवादित फैसला सुनाते हुए विश्वविद्यालयों में प्रवेश के लिए नस्ल और जातीयता के आधार पर आरक्षण को खत्म कर दिया है। इससे दशकों पुरानी सकारात्मक विभेद (अफरमेटिव एक्शन) कही जाने वाली प्रथा को बड़ा झटका लगा है।
फैसले पर अब राजनीति भी होने लगी है। राष्ट्रपति जो बाइडन ने इस पर आपत्ति जताई है।
आइए समझते हैं कि पूरा मामला क्या है।
नीति
क्या है सकारात्मक विभेद नीति?
1960 के दशक के नागरिक अधिकार आंदोलन की पृष्ठभूमि में साल 1978 में अमेरिका के विश्वविद्यालयों में जाति और नस्ल के आधार पर आरक्षण की व्यवस्था की गई थी। इसका उद्देश्य समाज के वंचित और भेदभाव के शिकार वर्ग को लाभ पहुंचाना था।
यह नीति अश्वेत, हिस्पैनिक (स्पेन या स्पैनिश भाषी देशों से संबंधित) और अन्य अल्पसंख्यक छात्रों को ज्यादा से ज्यादा उच्च शिक्षा में मौके देने के लिए शुरू की गई थी।
शुरुआत
कोर्ट में कैसे पहुंचा मामला?
अमेरिका में 'स्टूडेंट्स फॉर फेयर एडमिशंस' नामक एक संस्था है। ये सकारात्मक विभेद नीति की विरोधी है और इसकी स्थापना रूढ़िवादी कार्यकर्ता एडवर्ड ब्लम ने की थी।
इस संस्था ने हार्वर्ड विश्वविद्यालय और उत्तरी कैरोलिना विश्वविद्यालय की प्रवेश नीति में नस्ल और जाति के आधार पर गैरकानूनी भेदभाव का आरोप लगाया था।
दोनों विश्वविद्यालयों की प्रवेश नीति को लेकर संस्था ने अलग-अलग मामले कोर्ट में दायर किए थे।
कोर्ट
संस्था ने विश्वविद्यालयों पर क्या आरोप लगाए थे?
संस्था का कहना था कि हार्वर्ड विश्वविद्यालय की प्रवेश नीति में एशियाई-अमेरिकी नागरिकों के साथ गैरकानूनी भेदभाव किया जाता है। इसी तरह उत्तरी कैरोलिना विश्वविद्यालय में श्वेत और एशियाई-अमेरिकी आवेदकों के साथ गैरकानूनी भेदभाव किया जाता है।
संस्था ने कोर्ट में कहा था कि हार्वर्ड की नस्ल पर आधारित प्रवेश नीति 1964 के नागरिक अधिकार अधिनियम के शीर्षक VI का उल्लंघन करती है, जो नस्ल, रंग या राष्ट्रीयता के आधार पर भेदभाव को रोकता है।
फैसला
कोर्ट ने क्या फैसला सुनाया?
हार्वर्ड विश्वविद्यालय से जुड़े मामले में कोर्ट ने 6-2 से और उत्तरी कैरोलिना विश्वविद्यालय वाले मामले में 6-3 से उनके खिलाफ फैसला सुनाया।
मुख्य न्यायाधीश जॉन रॉबर्ट ने कहा, "सकारात्मक विभेद सही नीयत के साथ लागू किया गया था, लेकिन यह हमेशा नहीं चल सकता। यह अन्य छात्रों के साथ असंवैधानिक भेदभाव है। छात्रों को उनके अनुभव और काबिलियत के आधार पर मौके मिलने चाहिए, न कि नस्ल के आधार पर। प्रवेश नीति 'बेतुकी और असंवैधानिक' है।"
जज
फैसले से असहमति जताने वाले जजों ने क्या कहा?
पीठ में शामिल न्यायामूर्ति केतनजी ब्राउन जैकसन ने कहा कि निश्चित तौर पर ये फैसला हम सबके लिए त्रासदी है।
एक अन्य न्यायमूर्ति सोनिया सोतोमयोर ने अपने नोट में लिखा, "यह फैसला दशकों की मिसाल और महत्वपूर्ण प्रगति को पीछे ले जाता है। यह मानता है कि महत्वपूर्ण लाभ प्राप्त करने के लिए कॉलेज प्रवेश में दौड़ का अब सीमित तरीके से उपयोग नहीं किया जा सकता है। जाति को नजरअंदाज करने से समाज में समानता नहीं आएगी।"
विरोध
अमेरिकी सरकार का फैसले पर क्या कहना है?
बाइडन ने कोर्ट के फैसले पर असहमति जताई है।
उन्होंने कहा, "अमेरिका में भेदभाव अभी भी मौजूद है। कोर्ट का फैसला इसमें कोई बदलाव नहीं करता है। मेरा मानना है कि हमारे कॉलेज तब मजबूत होते हैं, जब वे नस्लीय रूप से विविध होते हैं। हम इस निर्णय को अंतिम निर्णय नहीं मान सकते।"
पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने फैसले को शानदार बताते हुए कहा कि आज का दिन जबरदस्त है।