अटल बिहारी वाजपेयी के साथ कैसे कश्मीर मुद्दा सुलझाने के करीब थे परवेज मुशर्रफ?
क्या है खबर?
पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ का आज 79 साल की उम्र में निधन हो गया। वह पिछले काफी समय से एमीलॉयडोसिस नामक गंभीर बीमारी से पीड़ित थे। उन्होंने दुबई के अस्पताल में अंतिम सांस ली।
बड़ी बात यह है कि अपने कार्यकाल में वह भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के साथ कश्मीर मुद्दे को सुलझाने के करीब पहुंच गए थे, लेकिन अंतिम क्षणों में समझौता नहीं हो पाया।
आइए इसके बारे में विस्तार से जानते हैं।
जिक्र
पाकिस्तान के पूर्व विदेश मंत्री खुर्शीद की किताब में मिलता है जिक्र
कश्मीर मुद्दे का हल निकालने के करीब पहुंचने की बात का विस्तृत जिक्र पाकिस्तान के पूर्व विदेश मंत्री खुर्शीद महमूद कसूरी की लिखी किताब 'नाइदर ए हॉक नॉर ए डव' में किया गया है।
इसमें लिखा है कि कश्मीर मुद्दे का समाधान दोनों सरकारों के हाथ में था और दोनों सरकार ऐसा करना थी चाह रही थीं, लेकिन ऐसा नहीं हो सका। अब सवाल ये है कि आखिर दोनों सरकारों की इच्छा के बाद भी यह क्यों नहीं हुआ।
समझौता
साल 2001 की आगरा शिखर वार्ता में होना था समझौता
दोनों देशों के बीच यह समझौता 2001 की आगरा शिखर वार्ता में किया जाना था। करगिल युद्ध के करीब दो साल बाद जब 2001 में मुशर्रफ भारत आए तो उस वक्त भी करगिल युद्ध के जख्म ताजा थे, लेकिन उम्मीद जताई जा रही थी कि शायद कड़वाहट कुछ कम होगी।
इतिहास में उस सम्मेलन को भारत-पाकिस्तान संबंधों में सुधार की संभावना को लेकर याद किया जाता है, लेकिन दोनों देशों के बीच बात बनते-बनते रह गई थी।
जानकारी
मुशर्रफ ने समझौते के लिए रखे थे चार प्रस्ताव
कहा जाता है कि आगरा शिखर वार्ता में मुशर्रफ ने कश्मीर मुद्दे पर समझौते के चार प्रस्ताव रखे थे और अटल बिहारी भी उन पर सहमत थे, लेकिन आखिर में यह नहीं हो सका। ऐसे में आइए जानते हैं कि वो चार प्रस्ताव कौनसे थे।
#1
LoC से सैनिकों की चरणबद्ध वापसी
मुशर्रफ का पहला प्रस्ताव था कि कश्मीर में नियंत्रण रेखा (LoC) के दोनों ओर लाखों सैनिक तैनात हैं। ऐसे में भारत और पाकिस्तान दोनों को स्थायी शांति के लिए क्षेत्र में अपने सैनिकों को वापस बुलाना होगा।
हालांकि, सैनिकों की यह वापसी चरणबद्ध तरीके से होगी और इस पर दोनों पक्षों को आपसी सहमति से काम करना होगा।
कहा जाता है कि मुशर्रफ के इस प्रस्ताव से भारत भी सहमत था और आगे बढ़ने को तैयार था।
#2
कश्मीर की सीमाओं में कोई बदलाव न करने का प्रस्ताव
मुशर्रफ का दूसरा प्रस्ताव था कि कश्मीर की मौजूद सीमाओं में कोई बदलाव नहीं होगा। हालांकि, जम्मू-कश्मीर के लोगों को LoC के पार आवागामन की स्वतंत्र अनुमति होगी।
यदि भारत इसे स्वीकार करता तो उसे पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) पर पाकिस्तान की संप्रभुता को स्वीकार करना होता और बदले में पाकिस्तान को भी भारत की ओर से जम्मू-कश्मीर के हिस्से में किए गए दावे पर भारतीय आधिपत्य स्वीकार करना होता।
#3
जम्मू-कश्मीर के लिए स्वायत्तता की अनुमति
पाकिस्तान लंबे समय से 'कश्मीरियों के आत्मनिर्णय' का सहयोगी रहा है, लेकिन मुशर्रफ अधिक स्वायत्तता के पक्ष में इसे छोड़ने को तैयार थे।
इससे भी भारत सरकार को कोई आपत्ति नहीं थी, क्योंकि जम्मू-कश्मीर में पहले से ही अनुच्छेद 370 लागू था।
यदि यह समझौता हो जाता तो जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 हमेशा के लिए बना रहता और शुरू से इस मामले को उठाने वाली भाजपा को अपने रुख से पीछे हटना पड़ता।
#4
भारत और पाकिस्तान के साथ जम्मू-कश्मीर में एक संयुक्त निगरानी तंत्र
मुशर्रफ का चौथा प्रस्ताव भारत, पाकिस्तान और कश्मीर को शामिल करते हुए जम्मू-कश्मीर में एक संयुक्त निगरानी तंत्र स्थापित करना था। इसमें मुशर्रफ का जोर स्थानीय कश्मीरी नेतृत्व को शामिल करने का था।
हालांकि, 2001 की आगरा शिखर वार्ता के विफल होने के कई सालों बाद मुशर्रफ ने दावा किया था कि इस मामले पर भारतीय पक्ष समझौते से पीछे हट गया था, जबकि मसौदा प्रस्ताव हस्ताक्षर के लिए तैयार था।
कारण
समझौते के विफल होने का क्या था कारण?
पाकिस्तान के पूर्व विदेश मंत्री कसूरी ने अपनी किताब में इस समझौते के विफल होने के लिए कश्मीर के अलगाववादी नेता सैयद अली शाह गिलानी को जिम्मेदार ठहराया था।
उन्होंने लिखा था, 'उन्होंने (गिलानी) राष्ट्रपति मुशर्रफ के चार सूत्री एजेंडे को अस्पष्ट बताया और UNSC प्रस्तावों की कश्मीर से प्रासंगिकता पर राष्ट्रपति के बयान की आलोचना की थी। हालांकि, अन्य कश्मीरी नेता समझौते के पक्ष में थे और गिलानी से सहमत नहीं थे।'
जिक्र
मुशर्रफ ने वार्ता के पांच साल बाद किया था मामले का जिक्र
आगरा शिखर वार्ता के पांच साल बाद 2006 में मुशर्रफ ने अपनी आत्मकथा 'इन द लाइन ऑफ फायर' में इसका जिक्र करते हुए लिखा था, 'रात 11 बजे प्रधानमंत्री वाजपेयी से मुलाकात हुई। मैंने उन्हें दो टूक शब्दों में कहा कि कोई ऐसा शख्स है जो हम दोनों के भी ऊपर है और जिसके आगे हम दोनों की ही नहीं चली।'
इसके बाद लालकृष्ण आडवाणी ने 'माई कंट्री माई लाइफ' में लिखा था कि मुशर्रफ का इशारा उनकी ओर था।
अन्य मत
आडवाणी के सवाल से चौंक गए थे मुशर्रफ
एक भारतीय पक्ष का दावा यह भी है आगरा शिखर वार्ता से पहले मुशर्रफ ने प्रत्यर्पण संधि पर हामी भरी थी।
उस दौरान आडवाणी ने कहा था कि इस संधि के लागू होने से पहले अगर पाकिस्तान 1993 के मुंबई धमाकों के आरोपी दाऊद इब्राहिम को भारत सौंप दें तो शांति प्रक्रिया आगे बढ़ाने में बड़ी मदद मिलेगी। इससे मुशर्रफ चौंक गए थे।
इसके बाद सम्मेलन हुआ, लेकिन वह विफल रहा और समझौते पर हस्ताक्षर नहीं हो पाए।