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    क्या होती है केंद्रीय कैबिनेट और कैसे होता है इसका गठन? जानें खास बातें

    क्या होती है केंद्रीय कैबिनेट और कैसे होता है इसका गठन? जानें खास बातें

    लेखन मुकुल तोमर
    May 30, 2019
    01:45 pm

    क्या है खबर?

    नरेंद्र मोदी की प्रधानमंत्री पद की शपथ के बीच सबकी नजरें उनकी कैबिनेट पर हैं।

    कैबिनेट में किसको क्या जगह दी जाए, इसका हल निकालने के लिए मोदी ने भारतीय जनता पार्टी अध्यक्ष अमित शाह के साथ मंगलवार रात 5 घंटे और बुधवार 3 घंटे विचार विमर्श किया।

    ये मैराथन बैठकें ये बताने के लिए पर्याप्त हैं कि केंद्रीय कैबिनेट का गठन कितना मुश्किल कार्य है।

    आइए इसके गठन के समय ध्यान रखी जाने वाली बातें जानते हैं।

    जानकारी

    क्या होती है केंद्रीय कैबिनेट?

    भारत सरकार के मंत्रिमंडल में दो तरह के मंत्री होते हैं- कैबिनेट और राज्य मंत्री।

    मंत्रालयों का प्रभार संभालने वाले वरिष्ठ मंत्रियों को कैबिनेट मंत्री कहा जाता है, जबकि राज्य मंत्री उनके जूनियर सहयोगी होते हैं।

    कैबिनेट मंत्रियों के समूह को केंद्रीय कैबिनेट कहते हैं और ये सरकार के कामकाज से जुड़े अहम फैसले लेती है।

    सभी कैबिनेट मंत्री प्रधानमंत्री को रिपोर्ट देते हैं।

    मंत्रालयों के निर्धारण में विजयी पार्टी और उसके सहयोगियों का आपसी तालमेल और अंकगणित अहम है।

    जानकारी

    कौन बन सकता है मंत्रिमंडल का हिस्सा?

    किसी भी व्यक्ति को मंत्रिमंडल का हिस्सा बनाया जा सकता है। अगर वो व्यक्ति संसद का हिस्सा नहीं है तो उसे 6 महीने के अंदर लोकसभा या राज्य सभा के जरिए चुनकर संसद में आना होता है।

    चुनौती

    सभी को उचित प्रतिनिधित्व अहम चुनौती

    जब भी केंद्रीय कैबिनेट का गठन होता है तो ये ध्यान रखा जाता है कि ये भारत की विविधताओं का उचित प्रतिनिधित्व करे।

    इसमें हर क्षेत्र, समुदाय और वर्ग से आए लोगों को शामिल किया जाता है।

    साथ ही युवा और अनुभवी चेहरों का बेहतर तालमेल बनाने की कोशिश भी की जाती है।

    जब गठबंधन की सरकार बनती है तो ये प्रक्रिया और मुश्किल हो जाती है और सहयोगियों को भी उचित प्रतिनिधित्व देने की जरूरत होती है।

    वाजपेयी सरकार

    कैसी थी वाजपेयी की कैबिनेट?

    देश में गठबंधन की पहली सफल सरकार अटल बिहारी वाजपेयी ने 1999-2004 के बीच चलाई थी।

    वाजपेयी के सामने अपने दल के तमाम गुटों के साथ-साथ शिवसेना, जनता दल (यूनाइटेड) और अकाली दल जैसे सहयोगियों को साथ लेकर चलने की चुनौती भी थी।

    वह इसमें सफल साबित हुए और उन्होने अपने मंत्रालय में सभी क्षेत्रों, समुदायों और सहयोगियों को जगह दी।

    वाजपेयी ने रक्षा जैसा अहम मंत्रालय भी अपनी सहयोगी समता पार्टी के नेता जॉर्ज फर्नांडिस को दे दिया।

    UPA कैबिनेट

    UPA में कांग्रेस ने अपने पास रखे अहम मंत्रालय

    वाजपेयी के बाद मनमोहन सिंह के नेतृत्व में 10 साल तक UPA गठबंधन की सरकार रही।

    दोनों गठबंधन में मुख्य अंतर ये रहा कि कांग्रेस ने गृह, रक्षा, विदेश और वित्त जैसे अहम मंत्रालय किसी भी सहयोगी को नहीं दिए।

    UPA सरकार की कैबिनेट में भी सभी वर्गों, क्षेत्रों और सहयोगियों को उचित प्रतिनिधित्व दिया गया, खासकर 2009 में बनी UPA-2 में।

    UPA-2 में अल्पसंख्यकों और पिछले समुदायों के नेताओं को बेहतर प्रतिनिधित्व दिया गया।

    NDA-1

    मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में सहयोगियों को कम जगह

    अगर मोदी सरकार के पहले कार्यकाल की कैबिनेट की बात करें तो यह वाजपेयी और मनमोहन सिंह की सरकारों से अलग नजर आई।

    कैबिनेट में गिनती के NDA सहयोगियों को शामिल जरूर किया गया, लेकिन उन्हें भी कम महत्वपूर्ण मंत्रालय दिए गए।

    JD(U) को तो कैबिनेट में जगह ही नहीं मिली।

    कैबिनेट में अल्पसंख्यकों और दलितों को भी उचित प्रतिनिधित्व नहीं देखने को मिला।

    इसका सबसे बड़ा कारण भाजपा का अपने दम पर बहुमत से ज्यादा 282 सीटें मिलना रहा।

    NDA-2

    इन कारणों से इस बार अलग होगी कैबिनेट

    कुल 303 सीटें जीतने वाली भाजपा की इस बार की कैबिनेट में NDA सहयोगियों को बेहतर प्रतिनिधित्व मिल सकता है।

    इसके दो कारण हैं। पहला, पार्टी को राज्य सभा में बिल पास कराने के लिए इनकी जरूरत पड़ेगी।

    दूसरा, NDA से अलग होने पर क्षेत्रीय पार्टियां आगे जाकर उसे नुकसान पहुंचा सकती हैं।

    भाजपा अखिल भारतीय पार्टी की छवि बनाने पर भी ध्यान दे रही है, इसलिए कैबिनेट में सभी क्षेत्रों और समुदायों को उचित प्रतिनिधित्व मिलने की उम्मीद है।

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